मायावती ने गरीबो-मजलूमों के हक़ के लिया दिया इस्तीफा, पढ़िए क्या लिखा


दिनांक 18.7.2017 को हमारी पार्टी बीएसपी द्वारा कार्य स्थगन की नोटिस रूल 267 के तहत दी गयी थी और उससे यह अनुरोध किया गया था कि पूरे देश में दलितों पर हो रहे अत्याचार और उसमें से खासकर अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के शब्बीरपुर गांव जिला सहारनपुर में हुये दलित-उत्पीड़न व उनकी हत्याओं के विषय पर सदन की सभी कार्यवाही रोककर चर्चा करायी जाये।

18.7.2017 पूर्वाहन 11 बजे राज्यसभा की बैठक शुरू हुई तो मैंने माननीय उपसभापति का ध्यान बीएसपी द्वारा दी गयी नोटिस की ओर दिलाया और उस पर मुझे बोलने की अनुमति देने का विरोध किया गया।

इस पर माननीया उप सभापति ने कहा कि आपकी नोटिस पर मैं आपको बोलने की अनुमति देता हूँ परन्तु इस पर तीन मिनट ही बोलियेगा। इस पर मैंने उसी वक्त कहा कि वह मामला ऐसा नही है जिस पर कि तीन मिनट में बात रखी जा सके। राज्य सभा के रूल में ऐसी कोई व्यवस्था नही की गयी है कि स्थगन नोटिस पर सिर्फ तीन मिनट का समय ही मिलेगा और उसके बाद फिर मैंने अपनी बात रखनी शुरू की।

जैसे ही मैंने अपनी बात सदन के समक्ष रखनी शुरू की तो तुरन्त ही सत्तापक्ष की ओर से उनके सांसद सदस्यों के साथ-साथ मंत्रीगण भी खड़े हो गये और मुझे बोलने से रोकना शुरू कर दिया तथा मुझे अपनी बात कहने पर वे लगातार विरोध उत्पन्न करने लगे। बीजेपी के संसद सदस्यों के साथ-साथ उनके मंत्रीगण भी मुझे इस महत्वपूर्ण विषय पर अपनी बात ना रखने देने के उद्देश्य से लगातार शोर-शराबा और विरोध उत्पन्न करते रहे।

इसके बावजूद भी मैंने शोर-शराबे के बीच अपनी पूरी बात सदन के समक्ष रखने की कोशिश की और कहा कि जब से केंद्र में बीजेपी व इनकी एनडीए की सरकार बनी है, तो तब से पूरे देश में और खासकर बीजेपी शासित राज्यों में तो इन्होंने अपनी जातिवादी, साम्प्रदायिक व पूंजीवादी मानसिकता के तहत चलकर अपने राजनैतिक स्वार्थ में व अपने नफे-नुकसान को भी सामने रखकर यहाँ विशेषकर गरीबों, दलितों, पिछड़ों, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों, मजदूरों, किसानों एवं मध्यमवर्ग के लोगों का विभिन्न स्तरों पर जो बड़े पैमाने पर शोषण व उत्पीड़न आदि किया है, जो अभी भी लगातार ज़ारी है, तो वह किसी से छुपा हुआ नही है।

यह बात कहते हुये मैंने कहा कि मुझे पूरे सदन का ध्यान खासतौर पर उत्तर प्रदेश में बीजेपी व उनकी सरकार द्वारा एक सोची-समझी राजनैतिक साजिश व स्वार्थ के तहत जिला सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में कराये गये दलित उत्पीड़न की घटना की तरफ दिलाना चाहती हूँ जिस पर पर्दा डालने के लिये बाद में उन्होंने यहाँ एक दलित संगठन को भी इस्तेमाल करके उसे जातीय हिंसा का नाम दे दिया है।

मैंने इतना ही कहा था कि सत्तापक्ष के ज्यादातर सांसद सदस्य और उनके साथ-साथ मंत्रीगण पुनः खड़े हो गये और वे मुझे अपनी बात कहने से रोकते रहे और नारे लगाते रहे। इस बात पर हमारी पार्टी के संसद सदस्यों के साथ-साथ विपक्ष के सदस्यों ने भी माननीया उप सभापति से आपत्ति दर्ज कराते हुये कहा कि सत्तापक्ष के लोगों को बैठाया जाये और सदन को सुचारू रूप से चलाते हुये बीएसपी की नेता को अपनी पूरी बात रखने दिया जाये।

परन्तु अफ़सोस के साथ मुझे यह कहना पड़ रहा है कि माननीया उप सभापति ने सत्तापक्ष के लोगों को शांत कराने की जगह घण्टी बजाकर मुझे ही बैठने के लिये कहा और मुझे अपनी बात वही रोकने के लिये कहा क्योंकि तीन मिनट हो चुके हैं।

इस पर उप सभापति से बार-बार यह कहा कि राज्यसभा की रूल बुक में कहीं पर भी यह नही लिखा है कि स्थगन प्रस्ताव की नोटिस पर केवल का तीन मिनट का समय ही मिलेगा और जो तीन मिनट होते हैं वह भी ज्यादातर सत्तापक्ष ने शोर-शराबा मचा कर बर्बाद कर दिया और मुझे अपनी बात कहने से रोका गया।

मैंने यह भी कहा कि सहारनपुर काण्ड का मामला कोई मामूली नही है। अतः मुझे इस बात को संसद में रखने का पूरा मौका मिलना चाहिये। परन्तु माननीया सभापति से बार-बार अनुरोध करने के बावजूद भी मुझे और मौका दिया जाने से मना कर दिया गया।

इस पर मैंने पुनः जोर देकर अनुरोध करते हुये यह भी कहा कि अगर सत्तापक्ष अपनी बीजेपी की सरकारों में खुलेआम हो रहे दलितों के लगातार उत्पीड़न व हत्याओं के मामलों पर भी मैं राज्यसभा के सदन के अंदर नही बोल सकती तो फिर यहाँ पर मेरा सदन के सदस्य के रूप में आगे बने रहने का कोई औचित्य नही है और मैं अपने पद से इस्तीफा दे दूंगी।

लेकिन इसके बावजूद भी माननीया उप सभापति ने मुझे इस विषय पर आगे बोलने की इजाजत नही दीं और इस तरह मुझे मजबूर होकर सदन के अंदर इस बात को दोहराते हुये कहा कि अगर मुझे इस सदन के अंदर मेरे अपने खुद के दलित समाज पर आये-दिन हो रहे उत्पीड़न पर भी अपनी पूरी बात रखने की इजाजत नही दी जा रही है और चूँकि यहाँ मैं अपनी बात नही रख सकती हूँ तो फिर मैं अपने पद से इस्तीफा दे दूंगी और यह कहते हुये मैं सदन के बाहर आ गयी।

माननीया उप सभापति जी मुझे बड़े दुःख के साथ इस्तीफा देने का यह फैसला लेना पड़ रहा है कि देश में सर्व समाज में से खासकर जिन गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों व मुस्लिम एवं अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों आदि के हित व कल्याण के लिये मैंने अपनी पूरी जिंदगी समर्पित की है और यदि मुझे उनके हित व कल्याण की भी बात सत्तापक्ष के लोग अर्थात बीजेपी व इनके एनडीए के लोग नही रखने देंगे, तो फिर मुझे ऐसी स्थिति में माननीय इस सदन में बिलकुल भी रहने का औचित्य नही रहा है।

इसके साथ ही, यहाँ मैं यह बताना चाहती हूँ कि मैंने सन् 2003 में भी उत्तर प्रदेश में बीएसपी व बीजेपी की मिली-जुली सरकार में अपनी पार्टी की विचारधारा एवं सिद्धान्तों में बीजेपी का दखल होते हुये देखकर लगभग 15 महीने के अंदर ही अपने मुख्यमंत्री के पद से व इस सयुंक्त सरकार से भी इस्तीफा दे दिया था।

ऐसी स्थिति में मैंने आज दिनांक 18 जुलाई सन् 2017 को अपने राज्यसभा के पद से इस्तीफा देने का फैसला ले लिया है, जिसका मैंने आज माननीय सदन में ऐलान भी कर दिया था।

आपसे अनुरोध है कि मेरे इस इस्तीफे को स्वीकार करने का कष्ट करें।

The above text was the original resignation letter by Behan Mayawati.

The original resignation letter that Behan Mayawati had submitted was not accepted as the argument was the format of that was not as per the prescribed rules and she was made to write another resignation letter. So, she wrote one liner resignation letter as per some reports, the text of the second resignation letter I am not able to find but in the original resignation letter she had raised the voice for Dalits, Muslims and atrocities happening.

What I see the reason behind not accepting the original resignation letter was that Manuwadi system didn’t want to keep the record of atrocities on Dalits and minority communities. If original letter would have been accepted that would have gone on the record and would had long term effects and future generations would have known the reality and maybe taken inspiration. Now, as usual, Brahminical India killed the important record from Dalit history.

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