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कलमकारों के क़त्ल पर रूह कुरेदती सूरज कुमार बौद्ध की कविता – कलम की आवाज़

नरेंद्र दाभोलकर, कलबुर्गी, पनसारे, और अब गौरी लंकेश। आए दिन अनेक लेखकों, पत्रकारों, कलमकारों को मौत की घाट उतार दिया गया। इन बेबाक आवाजों का गुनाह सिर्फ इतना है कि ये साम्प्रदायिक मानसिकता एवं फ़ासी…

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मुझे भविष्य का समतामूलक समाज दिखाई दे रहा है – सूरज कुमार बौद्ध

देश को तथाकथित नजरिए से ही सही पर आजाद हुए 70 साल हो चुके हैं लेकिन भारत की बहुसंख्य आबादी आज भी दाने दाने को मोहताज है। भारत की गिनती आज भी भूखमरी से पीड़ित देशों में होती है। राष्ट्रभक्ति, देशभक्…

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प्रसव वेदना – एक कहानी

चमारों का गांव ना सड़क ना कोई मरघट। गांव से शहर की तरफ जाने वाली सड़क तक पहुँचने के बीच तकरीबन ढेड़ किलोमीटर खेतों की पगडंडियों से गुजरकर जाना पड़ता था।

श्रावण का महीना था, बरसात हो रखी थी कि फु…

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रोहित वेमुला के भारतीय वामपंथ पर विचार

रोहित वेमुला को हॉस्टल से निकाला तो पाँच छात्रों के साथ था, पर जब वो निकला तो उसके साथ संघर्ष करने के लिए पाँच नहीं सैकड़ों छात्रों का हुजूम निकला। उसके साथ जब “अंबेडकर स्टूडेंन्ट्स एसोसियशन” के छा…

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डॉ. अम्बेडकर का मूल चिंतन है स्त्री चिंतन

भी तक दलित महिला आन्दोलन गैर दलित महिला आन्दोलन से जुड़ने व उनके साथ मिलकर काम करने में विश्वास रखता था। पर गैर दलित महिला आन्दोलन की सवर्ण मानसिकता से ग्रसित स्त्री नेता दलित महिलाओं से भेदभाव करत…

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दलित महिला कारवां और डॉ. अम्बेडकर

‘दलित समाज ने कितनी प्रगति की है इसे मैं दलित स्त्री की प्रगति से तौलता हूं,’ जैसी गंभीर और विचारोत्तेजक व स्त्रियों के घोर पक्ष में की गई टिप्पणी के टिप्पणीकार डा. अम्बेडकर द्वारा स्त्रियों के पक्…

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