कबीर की विचारधारा से प्रभावित थे डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर


जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ।
भावार्थ: साधु से उसकी जाति मत पूछो बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करिये, उनसे ज्ञान लीजिए। मोल करना है तो तलवार का करो म्यान को पड़ी रहने दो।

यदि संत कबीर और डॉक्टर अंबेडकर की विचारधारा और दार्शनिकता को देखे तो दोनों में बहुत सी समानताएं हमें देखने को मिलती हैं। जिनमें सबसे मुख्य समानता यह की दोनों ने ही तथ्यों के आधार पर ब्राह्मणवादी परंपरा का पुरजोर रूप से विरोध किया और सामाजिक समरसता लाने के लिए आजीवन प्रयास किया।

डॉक्टर अंबेडकर आजीवन संत कबीर को अपना गुरु मानते आए और अंबेडकर को कबीर ने व्यक्तिगत तौर पर प्रभावित किया था। डॉक्टर अंबेडकर का परिवार कबीरपंथी था तो यहां पर साफ है कि कबीर की वाणी को सीखने का प्रयास उनके परिवार से ही हुआ। डा.आंबेडकर की धर्म की जो खोज बौद्धधर्म पर खत्म हुई थी, वहाँ तक वे कबीर के द्वारा ही पहुंचे थे।

postal stamp on guru kabir

कबीर पर भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट

बाबा साहब ने कबीर की दार्शनिक पद्धति को अपनाया कबीर की जो कविताएं रविंद्र नाथ टैगोर ने अंग्रेजी में रूपांतरण की थी। उन कविताओं में बाबासाहब पर काफी प्रभाव डाला जिस समय यह कविताएं रूपांतरित की गई उस समय डॉक्टर अंबेडकर 1916 में लंदन में राजनीति विज्ञान के छात्र थे।

संत कबीर का जो प्रभाव हमें डॉक्टर अंबेडकर पर देखने को मिलता है वह यह है कि डॉक्टर अंबेडकर और संत कबीर के समय की परिस्थितियां मूल रूप से समान थी।

यह भी पढ़ेंKabir: Pandit, You’ve Got it Wrong

बाबासाहब और कबीर के बीच लगभग 5 सदियों का अंतराल है परंतु हमें यहां पर तुलनात्मक अध्ययन करते हुए दोनों की सामाजिक राजनीतिक तथा धार्मिक परिस्थितियों पर समान रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है कि दोनों दार्शनिकों ने अपने अपने समय में समान परिस्थितियों को झेला।

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय ।
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ।

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।

कबीर जुलाहा जाति से थे जो कि निम्न वर्गीय जाती थी तथा डॉक्टर अंबेडकर एक महार जाति से थे वह भी एक निम्न स्तर की जाती थी तथा दोनों ही लोगों ने समाज में जातिप्रथा का सामना किया और दोनों की स्थिति एक अछूत के रूप में रही।

कबीर के समय मुस्लिम सल्तनत कायम थी। कबीर के समय में सत्ता के दो केंद्र थे एक मुल्ला और दूसरा पंडित यही दोनों केंद्र डॉक्टर अंबेडकर के समय में भी थे मुल्ला और पंडित दोनों अपने समुदायों में धर्म गुरुओं का काम कर रहे थे।

एक तरह से भी अल्लाह या भगवान के संदेश वाहक थे उनसे किसी प्रकार का सवाल तथा उनके विरुद्ध बोलने का साहस समाज में नहीं था कबीर उस समय यह सब देख रहे थे की मुल्ला और पंडित किस तरह से अपने -अपने समुदायों को धार्मिक अंधविश्वासों में जकड़े हुए हैं तथा उनका प्रयोग अपनी हितपूर्ति के लिए कर रहे है। कबीर जानते थे कि मुल्ला और पंडित समाज की भौतिक शक्ति होने के साथ-साथ बौद्धिक शक्ति भी थे।

साषत ब्राह्मण न मिलो, बैसनो मिलो चंडाल।
अंक माल दे भेटिए, मानो मिले गोपाल। (क.ग्र. पृष्ठ 28)

अर्थात, शाक्त और ब्राह्मण से मत मिलो, पर अगर चंडाल वैष्णव मिल जाये, तो उससे ऐसे गले मिलो, मानो गोपाल मिल गए हों। (इसमें व्यंग्य भी है, और सन्देश भी कि वह भटके हुए दलित भाई से प्रेम करना है।)

कबीर ने मुल्ला तथा पंडित दोनों से संवाद किया और कबीर का संवाद दोनों को ही पसंद नहीं आया। इसलिए कबीर ने ना हिंदू ना मुसलमान के सिद्धांत को अपनाया और इन दोनो मुल्ला और पंडित को नकारते हुए एक क्रांतिकारी नेतृत्व समाज को प्रदान किया। कबीर ने हिंदू व मुस्लिम धर्म ग्रंथो जैसे वेद -पुराण और कुरान के विरुद्ध आवाज उठाई और अपना एक अलग सौंदर्यशास्त्र विकसित किया। कबीर ने राम जो कि विष्णु के अवतार हैं उनको नहीं माना उनकी निगाह में अल्लाह और राम दोनों सगुण हैं। जबकि कबीर ने निर्गुण का आविष्कार किया जो कि वर्ण व्यवस्था और परलोक के विरुद्ध एक क्रांतिकारी खोज थी। उन्होंने निर्गुण राम को माना। इस दार्शनिकता ने डॉ.अंबेडकर को गहन रूप से प्रभावित किया।

यह भी पढ़ें – Why We Love Guru Kabir (And You Should, Too!)

बीसवीं शताब्दी में डॉक्टर अंबेडकर कबीर के इसी रास्ते पर चलते हुए ना हिंदू ना मुसलमान के सिद्धांत को अपनाया और हिंदू या मुस्लिम दोनों पर बराबर का प्रहार किया। इसी कारण वे हिंदू और मुस्लिम दोनों के नेतृत्व से दलित वर्गों को सूचित करने में सफल हुए अंबेडकर बौद्ध धर्म तक कबीर के द्वारा ही पहुंचे क्योंकि बुद्ध तक जो ले जाने वाली एक महत्वपूर्ण चीज थी वह थी। तर्क जो उन्हें मुल्लाह तथा पंडित हिंदू तथा मुसलमान कहीं दिखाई नहीं दी।

अंबेडकर कबीर के निर्गुणवाद से बहुत प्रभावित थे यही ज्ञान उन्हें बुद्ध के दर्शन में मिला। यदि बाबा साहब का महत्वपूर्ण भाषण जाति का विनाश पड़े तो उसमें शुरुआत से लेकर अंत तक कबीर दर्शन मौजूद है। जाति का विनाश भाषण को अगर पढ़ा जाए तो उसमें कबीर के जो तर्क थे सामाजिक विचार को लेकर वह उसमें मौजूद हैं तथा कबीर ने जिस प्रकार से ब्राह्मणवाद वर्ण व्यवस्था पर तार्किक रूप से प्रहार किया वह कहीं ना कहीं जाति का विनाश भाषण में देखने को मिलते हैं।

मुख्य संदर्भ https://www.forwardpress.in/2017/07/kabir-ke-nirgunvad-se-prabhavit-the-ambedkar/

क.ग्र. (कबीर ग्रंथावली, श्याम सुन्दरदस , नगरी प्रचारिणी सभा, काशी. संस्करण सं. 2034)

Author – Gulshan Kumar, Scholar, Political Science

यह भी पढ़ेंOn Kabir and Movement Away from Brahminism!

Sponsored Content

+ There are no comments

Add yours