दलित मशहूर गीतकार “शैलेन्द्र” को याद करते हुए


दलित प्रतिभापुंज मशहूर गीतकार “शैलेन्द्र” जी का जन्म आज ही के दिन 30 अगस्त 1921 को रावलपिंडी (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) में एक “धुसिया चर्मकार” जाति में हुआ था। वो एक महान गीतकार के साथ-साथ एक अच्छे कवि भी थे। इनका बचपन का नाम शंकरदास केसरीलाल था। उनके पिताजी ब्रिटिश मिलिट्री हॉस्पीटल में ठेकेदार थे।

शैलेन्द्र जी के पिताजी बाद में बीमार रहने लगे, बीमारी और आर्थिक तंगी के कारण उनका परिवार रावलपिंडी से मथुरा शिफ्ट हो गया, जहाँ उनके पिताजी के बड़े भाई रेलवे में नौकरी करते थे। मथुरा में उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि उन्हें और उनके भाईयों को बीड़ी पीने पर मजबूर होना पड़ता था जिससे उनकी भूख मर सके। इसके बाबजूद उन्होंने तमाम परेशानियों का सामना करते हुए अपनी इंटर तक की पढ़ाई पूरी की।

गरीबी के चलते वो अपनी बहन का इलाज तक करवाने मे सक्षम नहीं थे, जिस कारण उनकी बहन की मृत्यु हो गई। इन्हीं सब वजहों से उनका शंकर भगवान पर भी विश्वास उठ गया जिनपर उनकी असीम आस्था थी। अंततः उन्होंने ईश्वर को नकारते हुए उन्हें पत्थर की मूर्ति मान लिया था।

उसके बाद किसी भी तरह उन्होंने बंबई जाने का फैसला किया। वैसे तो दलित को जातिवाद का सामना हमेशा करना ही पड़ता है। उन्हें भी इसका सामना करना पड़ा। एक बार तो जब वो हॉकी खेल रहे थे तब कुछ सवर्ण छात्रों ने उनपर जातिवादी टिप्पणी करते हुए तंज कसा कि “अब ये लोग भी हॉकी खेलेंगे” ये बात उन्हें गहरे तक चुभी।

बाद में बंबई में माटुंगा रेलवे के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में काम मिल गया। इसके अलावा उन्हें कविताएँ व गीत लिखने का बहुत शौक था तो वो अक्सर कागज-कलम के साथ अकेले ही बैठे पाये जाते थे। उस समय आजादी की लड़ाई भी अंतिम चरण पर थी, तब चारों तरफ साम्प्रदायिक हिंसा भी फैली हुई थी, इसी बीच उन्होंने कविताएँ लिखीं, जिनमें “जलता है पंजाब” नामक कविता उस समय काफी चर्चित हुई।

बंबई में रहते हुए वो अक्सर काम से छूटने के बाद “प्रगतिशील लेखक संघ” में जाया करते थे, जो पृथ्वीराज कपूर के रॉयल ऑपेरा हाउस के सामने हुआ करता था। वहाँ पर कई कवि आते थे। वहीं एक बार शैलेन्द्र जी अपनी कविता पढ़कर सुना रहे थे तब राज कपूर को बहुत पसंद आ गई और उन्होंने तुरंत शैलेन्द्र जी को अपनी फिल्मों के लिए गीत लिखने का ऑफर दे दिया।

शैलेन्द्र जी राज कपूर के सबसे चहेते गीतकार थे। उनकी ज्यादातर फिल्मों में शैलेन्द्र जी के ही गीत गाये जाते थे। उन्होेंने़ कुल मिलाकर 800 गीत लिखे और उनके लिखे ज्यादातर गीतों को लोकप्रियता हासिल हुई। उन्होंने अपने ज्यादातर गीतों में समतामूलक समाज निर्माण और अपनी मानवतावादी विचारधारा को अभिव्यक्त किया।उन्होंने दबे-कुचले लोगों को नारा दिया था –

“हर जोर-जुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है”

बाद में उन्होंने फणीश्वरनाथ रेणु की अमर कहानी “मारे गए गुलफाम” पर आधारित “तीसरी कसम” नामक फिल्म का निर्माण किया। उन्होंने अपना सारा धन इस फिल्म को बनाने में लगा दिया, यहाँ तक कि उनपर कर्जा भी हो गया था। पर फिल्म पूरी तरह से असफल हो गई। जिसके बाद आर्थिक तंगी, ऊपर से कर्जे की मार ने उन्हें तोड़ दिया। वे गम्भीर रूप से से बीमार पड़ गए। जिन्हें वो अपना समझते थे वो भी इस मुसीबत की घड़ी में दूर-दूर तक नजर नहीं आए, इसका भी उन्हें गहरा धक्का लगा था और आखिरकार 14 दिसम्बर 1967 को मात्र 46 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

बाद में इसी “तीसरी कसम” फिल्म को जिसे असफलता हाथ लगी थी उसे मास्को अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में भारत की अाधिकारिक प्रविष्ठी होने का गौरव प्राप्त हुआ और पूरी दुनिया में इस फिल्म की प्रशंसा की गई। पर अफसोस उस पल को देखने के लिए शैलेन्द्र जी इस दुनिया में नहीं थे।

शैलेन्द्र जी को उनके गीतों के लिए तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। लेकिन इस महान दलित विभूति की ब्राह्मण/सवर्ण समाज और सरकार ने उनके जीते जी और मृत्यु के बाद भी हमेशा उपेक्षा ही की।

लेखक – सत्येंद्र सिंह

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6 Comments

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  1. 3
    Dr.Berwa

    Dear Mr. Satyendra Singh, thank you for posting “on our master lyricist/poet honorable Shailander ji.
    I new very little of this great poet and song writer that he belonged to a Chamar/Dalit community, but millions of Indians enjoyed his songs written by him in late Raj Kapoor’s films. I grew with them but never was aware of the fact that he was one of us .I vividly remember that it was 1963-64, I was a Pre-medical student @ D.A.V College Jullundhar,I saw Shailander ji film.First show ,”Teesri Kasam”.I was so impressed that I took some of my college friends to see it too . Songs were so beautiful even today at age of 70, still hum them to name a few–“Sajan re jhut mut bolo, vanha padal he jana hai, Mare ganye gulfa etc. I told my friends that this films will get a Presidential Award. The tragedy was he din’t get to see these honors when he was alive.
    I, personally speaking frame this writing by Mr. Satyendra Sing as a Tribute, in my mind for ever so long as I remember his songs of film, Teesri Kasam”.

  2. 4
    Dr A K Biswas

    I did not know that lyricist Sailendra belonged to scheduled caste. His works stand out as his memorial. I’ve seen several times his film, Teesri kasam which portrayed the rural life marked by poverty, neglect, feudal exploitation with great sensitivity and touch of uncommon creativity.
    The songs of the film are extraordinary asset.
    We should take pride that he was a man of great poetic talent who left his outstanding contribution in the world of cinema and music. Those who did not recognize him are blind. Today nobody underestimate Sailendra’s role in his field.
    Sailendra was great and will be remembered as such for ever.

  3. 5
    tariq

    शैलेंद्र जी के गीतों की सूची भी पोस्ट करना चाहिए। बहुत अच्छा लिखा था उन्होंने।

  4. 6
    Goutam Das

    I don’t understand why our people often complain that brahmanical government is denying them due regards. We must think that caste system was made to suppress our talents so if we show our talents then it is rather general that we will be badly ignored.
    What we should do is to take power in our hands ;to be law maker and to be judges. We should rely ourselves. And even more important is not to forget our commitment to society and values when in power like Ambedkar; K.R.Narayanan; Periyar; Kamaraj;Tec.

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