मोदी सरकार खा गयी ओबीसी का हक़ – मेडिकल दाखिले में ओबीसी का आरक्षण केवल 2 प्रतिशत


केंद्रीय चिकित्सा प्रवेश समिति की ओर से देश में 63835 मेडिकल सीटों के लिये हुई नीट की परीक्षा में ओबीसी को 27 के बजाय केवल 2 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। नियम के मुताबिक ओबीसी को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत एवं अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण रहता है और इसी के हिसाब से सीटों का वितरण होना चाहिए। लेकिन व्यवहार में ओबीसी को केवल 2 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।

कुल 63835 सीटों में से राष्ट्रीय स्तर के कोटे में 9575 सीटें हैं। 27 प्रतिशत आरक्षण के हिसाब से ओबीसी को इसमें 2585 सीटें मिलनी चाहिए, लेकिन मेडिकल काउंसिलिंग कमेटी ने अपनी वेबसाइट पर सूची में नेशनल कोटे की जो सीट मेट्रिक्स कॉलेजों के नाम सहित डाली हैं, उसका विस्तृत अध्ययन करने पर ये बात सामने आई है कि नेशनल कोटे में ओबीसी को सिर्फ 68 सीटें दी गई हैं।

इस तरह से  ओबीसी को 27 प्रतिशत की जगह केवल 2 प्रतिशत सीटें दी जा रही हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उसके हिस्से की बाकी 25 प्रतिशत सीटें अनारक्षित कर दी गई हैं। इस तरह से मौजूदा सरकार पिछड़े वर्गों के छात्रों को मेडिकल में दाखिले से रोक रही है और मोदी सरकार अब खुलकर ओबीसी विरोधी कदम उठा रही है।

विडंबना यह है कि सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि ओबीसी को अब अनारक्षित सीटें नहीं दी जाएंगी और ओबीसी को सीटें सरकार आरक्षित कर ही नहीं रही है या केवल नाम मात्र के लिए कर रही है। मेडिकल काउंसिलिंग कमेटी ने जो 181 मेडीकल कॉलेजों की 3711 सीटों की जो सूची  प्रकाशित कर सीट मेट्रिक्स वेबससाइट पर डाली है उसमें 15 प्रतिशत कोटे के लिए अनुसूचित जाति को 14.95 प्रतिशत यानी 555 सीटें,  अनुसूचित जनजाति को 7.46 प्रतिशत यानी 277 सीटें आरक्षित की गई हैं। उसी प्रकार पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 1.83 प्रतिशत यानी केवल 68 सीटें आरक्षित की हैं। अनारक्षित (सवर्णो के लिए आरक्षित) के लिए 2811 यानी 75.74 प्रतिशत सीटें रखी गई हैं।

MBBS Seats for OBC Reservation

सुप्रीम कोर्ट के 10 अप्रैल 2008 के केस ‘अशोका कुमार ठाकुर बनाम केंद्र सरकार’ के निर्णय में भी ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की बात कही गई  है। इसके बाद भी ओबीसी के साथ छलकपट करके ओबीसी समाज के छात्रों को शिक्षा से वंचित रखने का षडयंत्र सरकार कर रही है। इतना सब होने के बाद भी ओबीसी के जनप्रतिनिधियों ने सरकार के सामने ढंग से बात नहीं उठाई है। हालाँकि अभी इस मामले की जानकारी दिए जाने पर समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा है कि ये दाखिला नीति ओबीसी के छात्रों के खिलाफ है, और वे संसद के मॉनसून सत्र में ये मामला पुरजोर तरीके से उठाएँगे।

भाजपा के सागर से सांसद लक्ष्मीनारायण यादव ने भी ओबीसी के आरक्षण को 27 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत किए जाने पर हैरानी जताई है और आश्वासन दिया है कि वो इस मुद्दे को उठाएँगे। राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के खेमेंद्र कटारे ने मेडिकल काउंसिलिंग कमेटी के इस कदम के खिलाफ न्यायालय जाने का फैसला किया है। मेडिकल काउंसिल की वेबसाइट (mcc.nic.in) पर राष्ट्रीय कोटे की सूची को प्रकाशित किया गया है। इसमें महाराष्ट्र के 21 कॉलेजों के नाम हैं जिनमें ज्यादातर सरकारी मेडीकल कॉलेज ही हैं। बेरार टाइम्स ने इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट छापी है। पुणे के बीजे मेडिकल कॉलेज 23 सीटें अनारक्षित, 4 एससी और 3 एसटी के लिए हैं। जुहू मेडिकल कॉलेज 18 सीटें अनारक्षित, 4 एससी, 1 एसटी, सोलापुर मेडिकल कॉलेज में 18 सीटें अनारक्षित, 3 एससी और एक एसटी सीट हैं।

इसी तरह से नागपुर शासकीय मेडिकल कॉलेज में 24 अनारक्षित, 5 एससी, और 1 एसटी की सीट हैं। औरंगाबाद मेडिकल में कॉलेज 17 अनारक्षित, 3 एससी, 2 एसटी सीटें हैं। मुंबई के जेजे हॉस्पिटल कॉलेज में 23 अनारक्षित, 4 एससी, 3 एसटी सीटें दी गई हैं।  अकोला मेडिकल कॉलेज में 17 अनारक्षित, 3 एससी, 2 एसटी की सीटें हैं। लातूर मेडिकल कॉलेज में 18 अनारक्षित, 4 एससी, एक एसटी सीट हैं और चंद्रपुर मेडिकल कॉलेज में 12 अनारक्षित, 2 एससी और एक एसटी सीट है। इसी तरह से गोंदिया मेडिकल कॉलेज में 11 अनारक्षित, 3 एससी, एक एसटी सीट है। नांदेड़ मेडिकल कॉलेज में भी ओबीसी के लिए कोई सीट नहीं है। इसमें 11 अनारक्षित, 2 एससी और 2 एसटी की ही सीटें हैं।  मिराज मेडिकल कॉलेज में 18 अनारक्षित,  3 एससी, 2 एसटी सीटें रखी हैं। महाराष्ट्र के अन्य मेडिकल कॉलेजों में देखें तो आयजीएमसी नागपुर में 18 अनारक्षित, चार एससी, एक एसटी सीट है। एलटीएम कॉलेज मुंबई में 17 अनारक्षित, 3 एससी, और 2 एसटी सीटें हैं। कोल्हापुर मेडीकल कॉलेज में भी 17 अनारक्षित, 3 एससी, 2 एसटी सीटें हैं। ठाणे मेडिकल कॉलेज में 8 अनारक्षित, एक एससी सीट है।

मुंबई मेडिकल कॉलेज में 20 अनारक्षित, 5 एससी, 2 एसटी सीटें हैं। धुळे मेडिकल कॉलेज में 11 अनारक्षित, 2 एसटी, 2 एससी सीटें रखी गई हैं। यवतमाळ मेडिकल कॉलेज में 18 अनारक्षित, 3 एससी, 1 एसटी सीट है। आंबेजोगाई मेडिकल कॉलेज में 12 अनारक्षित, 2 एससी, एक एसटी सीट है। इसी तरह, टीएनएमसी मेडिकल कॉलेज मुंबई में 13 अनारक्षित, 3 एससी, और 2 सीटें एसटी के लिये आरक्षित की गई हैं। इस तरह से महाराष्ट्र के इन मेडिकल कॉलेजों मे एक भी सीट ओबीसी के लिये आरक्षित नहीं की गई है। यही स्थिति मध्य प्रदेश में है। मध्यप्रदेश के बीएमसी मेडिकल कॉलेज सागर में 12 सीटें अनारक्षित, 2 एससी, और 1 एसटी के लिए है। भोपाल के मेडिकल कॉलेज में 18 अनारक्षित, 3 एससी, 2 एसटी की सीटें हैं। ग्वालियर के मेडिकल कॉलेज में 17 सीटें अनारक्षित, 4 एससी, 2 एसटी की सीटें हैं। इंदौर मेडिकल कॉलेज में 17 अनारक्षित, 4 एससी, और 2 एसटी की सीटें हैं। इसी तरह से जबलपुर में नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में 19 अनारक्षित, 3 एससी और 1 एसटी के लिए रखी गई हैं। एसएस मेडिकल कॉलेज रीवा में 11 सीटें अनारक्षित, 3 एससी और 1 एसटी के लिए आरक्षित की गई हैं। इस तरह से मध्य प्रदेश में भी ओबीसी केलिए एक भी सीट नहीं रखी गई है।

यही स्थिति छत्तीसगढ़ की है। छत्तीसगढ़ मेडिकल इंस्टीट्यूट बिलासपुर, शासकीय मेडिकल कॉलेज अंबिकापुर, राजनादंगाव, जगदलपुर, रायगढ़ और राजधानी रायपुर के मेडिकल कॉलेजों में भी ओबीसी के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं की गई। यही स्थिति कमोबेश अन्य राज्यों में है। नेशनल कोटे में कुल 9575 सीटों में से जहाँ 27 प्रतिशत आरक्षण के हिसाब से ओबीसी को 2585 सीटें मिलनी चाहिए, वहीं मेडिकल काउंसिलिंग कमेटी उसे केवल 68 सीटें दे रही है, और ये भी तय है कि अनारक्षित सीटों पर ओबीसी को मौका मिलना नहीं है।

(लेखक- महेंद्र नारायण सिंह यादव वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक चिंतक हैं। Source – madhyamarg)

OBC जागेगा तब ही ब्रह्मनिस्म भागेगा।

दिलीप मंडल लिखते है –

मुझे नहीं लगता कि ओबीसी के बारे में मैं मुझे अब कुछ भी लिखना चाहिए. उन्हें फर्क ही नहीं पड़ता. इस साल MBBS एडमिशन के लिए ऑल इंडिया की 3705 सीटों में OBC को 2% सीट यानी 68 सीटें मिली हैं. जिस समाज के सबसे पढ़े लिखे तबके को अपने संवैधानिक हिस्से की 27% सीटों की चोरी से फर्क नहीं पड़ता और जो अपने और अपने बच्चों के भविष्य को लेकर सचेत नहीं हैं, उन्हें गुलामी से कौन मुक्त करा सकता है? वे सचमुच गोबर पाथने, मूली की खेती करने, ट्यूशन पढ़ाने और मोबाइल रिपेयर की दुकान चलाने के ही काबिल हैं.

ओबीसी दरअसल एक महात्वाकांक्षा विहीन, मरा हुआ समाज है. दलित सबसे बुरी स्थिति में भी देश का शासक बनने का सपना देखता है. इसके लिए मार भी खाता है. पर जिद नहीं छोड़ता. ओबीसी में ऐसी कोई इच्छा ही नहीं है. उसके साथ जो हो रहा है, उसी का वह हकदार है.

आप जानते हैं कि इतनी बड़ी हकमारी के खिलाफ सिर्फ एक ओबीसी नेता बोल सकता है. वही बोलेगा भी. वही बोलता रहा है. इसकी कीमत भी चुकाता रहा है.

ऊना हो या रोहित वेमुला, जुनैद हो या अखलाक, ओबीसी की इंजीनियरिंग सीटों की चोरी हो या कोई और सवाल वहां से आपके लिए समर्थन की एक गरजदार आवाज हर बार आई है. RSS ने जब आरक्षण पर बुरी नजर डाली थी, तो वह नेता गरज उठा था और भागवत की धोती गीली हो गई थी.

RSS अपने सबसे बड़े दुश्मन के रूप में उसे पहचानता है.

लेकिन क्या ओबीसी अपने उस हितैषी नेता को पहचानता है?

जी, मैं Lalu Prasad Yadav और Tejashwi Yadav की बात कर रहा हूं.

इन्हें आज आपके समर्थन की जरूरत है. लेकिन आपको कहां इन सबकी फिक्र है?

दलित और माइनॉरिटी हर तरह से लालू के साथ है. लेकिन ओबीसी के बारे में यह नहीं कहा जा सकता.

भांड़ में जाइए आप लोग. इसी के काबिल है ओबीसी.

आपको नरेंद्र मोदी 2% सीट और राममंदिर देगा. वहीं भजन गाइए.

बताइए, महात्मा फुले इन्हें देश का राजा बनाना चाहते थे.

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