डॉ. अम्बेडकर और यहूदी लोग


Read in English from Dr Ambedkar And The Jewish People 

पचास वर्ष पहले बम्बई में एक मासिक यहूदी प्रकाशन (द ज्युइश एडवोकेट, नवम्बर, 1941) के संपादक के साथ विशेष साक्षात्कार में भारत के अत्यंत आदरणीय नेता ने उस सामाजिक व्यवस्था के संबंध में जो वहां (फिलीस्तीन में) स्थापित की गई है, फिलीस्तीन में यहूदियों के पथप्रदर्शक प्रयासों के लिए उनकी खुलकर प्रशंसा की |

वे और कोई नहीं। वे थे “भारतीय संविधान के निर्माता” और भारत में दलितवर्गों के नेता, डॉ. अम्बेडकर |डॉ. अम्बेडकर, जिनकी जन्मशताब्दी पूरे भारत में मनाई जा रही है, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में, उन विरले व्यक्तियों में से थे जो इजराइल (उस समय ब्रिटिश शासन के अधीन फिलीस्तीन) में यहूदी राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति जागरूक थे औरपरिणामस्वरूप उनसे सहानुभूति रखते थे।

यहूदी लोगों के साथ डॉ. अम्बेडकर के विशेष संबंधों को समझने के लिए सम्भवत: उसी वर्ष अर्थात्‌ 1941 में ‘बम्बई सेन्टीनल’ में प्रकाशित उनका लेख – ‘मोसेज एंड हिज सिगनिफिकेन्स’ पढ़ना चाहिए | बिबलिकल नेता मोसेस विषयक एक लघु निबंध की इस अद्वितीय कृति में डॉ. अम्बेडकर यहूदी लोगों के प्रति अपने विशेष दृष्टिकोण के आधार को उजागर करते हैं। मैं यह मानता हूं कि इसे एक बार फिर से मुद्रित करना ही उचित होगा।

“ओल्ड टैस्टामेंट में वर्णित यहूदियों की कहानी दिल को छूने वाली कहानी है। इस जैसी बहुत कम कहानियां हैं। यह सरल किन्तु रोमांचक भाषा में कही गई है। पराधीनता में अंतर्निहित करुणा और अन्ततोगत्वा यहूदियों का उत्थान उन लोगों की भावनाओं को प्रभावित किए बिना नहीं रह सकता जो उतने ही दलित हैं जितने यहूदी मिस्र में फराओ के काल में थे। लेकिन जो लोग दलित लोगों के उद्धार के लिए काम कर रहे हैं उनमें से प्रत्येक का हृदय मोसेस पर न्‍यौछावर हो जाएगा। मोसेस ने यहूदियों के उद्धार में महती भूमिका निभायी थी।”

“मोसेस ने यहूदियों के लिए क्‍या नहीं किया? वह उन्हें मिस्र से बाहर ले गए, बंधनों से बाहर ले गए, उन्होंने माउंट सिनई से टेन कमांडमेन्टस लाकर उनके धर्म की आधारशिला रखी। उन्होंने सामाजिक, सिविल और धार्मिक प्रयोजनों के लिए उन्हें कानून दिए तथा डेरा बनाने के अनुदेश दिए।”

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“मोसेस ने अनुयायियों के हाथों क्‍या कष्ट नहीं भोगा”? जब इजराइल के बालकों ने मिस्र छोड़ा और फराओं की सेना ने पीछा कर उन पर आक्रमण किया तो वे दुखी हुए और उन्होंने मोसेस से कहा- “चूंकि मित्र में कब्र नहीं हैं, इसलिए क्या आप हमें मरने के लिए दूर ले जा रहे हैं? जंगलों में मरने से तो बेहतर था मिस्रवासियों की सेवा करना |”

“इजराइली चलते-चलते एलिम पहुंचे और वहां पहुंचकर उन्होंने अपना डेरा डाला। वहां उन सबके लिए पर्याप्त पानी नहीं था। वे सब चिल्लाने लगे, हमें पानी दो, आप हमें मिस्र से बाहर किस लिए लाए हो, क्या हमें और हमारे बच्चों तथा हमारे जानवरों को प्यासे मारने के लिए यहां लाए हो ? वे उन पर पत्थर मारने के लिए तैयार थे क्योंकि वहां पानी नहीं था।“

“मोसेस माउंट सिनई पर गए और वहीं पर ठहर गए। यहूदी तुरंत आरों के पास गए और उनसे बोले, ‘हमारे लिए ऐसा देवता बनाओ जो हमारे सामने आएं, क्योंकि इस मोसेस के लिए जो हमें मिस्र देश से बाहर लाया है, हमें इस बात का कोई दुख नहीं है कि उसका क्‍या हो गया है।”

उनके नेतृत्व को भी चुनौती दी गई। ओल्ड टैस्टामेंट में लेखबद्ध है कि मरियम और आरों मोसेस के खिलाफ बोले थे, क्‍योंकि उन्होंने यूथोपियाई स्त्री से विवाह कर लिया था। उन्होंने कहा था – “क्या ईश्वर केवल मोसेस के माध्यम से बोलते हैं? क्या वह हमारे माध्यम से भी नहीं बोलते ?” फिर भी मोसेस ने उनकी निन्‍दा, उनकी गालियां, झेलीं, उनकी अधीरता को सहन किया और पूरे दिल से उनकी सेवा की।

“जैसाकि ओल्ड टैस्टामेंट में सच कहा गया है, इजराइल में मोसेस जैसा कोई पैगम्बर नहीं हुआ जिन्हें ईश्वर से साक्षात्कार हुआ हो।’ मोसेस यहूदियों के महान नेता ही नहीं थे बल्कि वे ऐसे नेता थे जिनके जन्म के लिए कोई भी दलित समुदाय प्रार्थना करेगा |”

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“निष्क्रमणों की कहानी में और मोसेस के नेतृत्व में दूसरों की कितनी भी रुचि रही हो मेरे लिए वे नित्य प्रेरणा और आशा के स्रोत रहे हैं।

“मुझे विश्वास है, जिस प्रकार यहूदियों के लिए आशा की जमीन थी उसी प्रकार दलित वर्गों की नियति में भी आशा की जमीन होगी । मुझे भरोसा है कि जिस प्रकार यहूदी अपनी आशा की जमीन पर पहुंचे थे उसी प्रकार अंत में दलित वर्ग भी अपनी आशा भूमि पर पहुंच जाएंगे।“

“मैं आज भारत में दलित वर्गों की वही हालत देखता हूं जो यहूदियों की मिस्र में दासता के दौरान थी। मोसेस के रूप में मुझे एक ऐसा नेता दिखाई पड़ता है, जिसे अपने लोगों के प्रति असीम स्नेह ने कठिनाइयों का सामना करने और तिरस्कार झेलने का अदम्य साहस प्रदान किया है।”

“मैं यह स्वीकार करता हूं कि यदि मुझे दलित वर्गों के उद्धार के प्रयास में कोई चीज प्रेरणा देती है तो वह मोसेस की कहानी है। मोसेस ने यहूदियों को दासता से मुक्त कराने का कृतघ्न, किन्तु महान कार्य, किया था।” स्वाभाविक ही है, यहूदी लोगों ने डॉ. अम्बेडकर और उनके जीवन कर्म की हमेशा भूरिभूरि प्रशंसा की है। समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लिए उनका संघर्ष उन लोगों के दिलों पर छाया है जिन्हें अपनी आशा के देश अर्थात्‌ इजराइल से निष्कासन से सैकड़ों वर्षो तक इस कारण भेदभाव और अत्याचार का कष्ट भोगना पड़ा था क्‍योंकि वे अपने यहां बहुसंख्यक लोगों से भिन्‍न थे।

हम इजराइल वासी आज तक इजराइल को पुन: राष्ट्रीय स्वदेश बनाने के संघर्ष में डॉ. अम्बेडकर के समर्थन के लिए गर्व करते हैं।

(सौजन्य : इजराइल से समाचार)

प्रजा बंधु, तारीख 30 दिसम्बर, 1991

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2 Comments

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  1. 1
    Yogendra dawar

    बहुत शानदार जानकारी ….प्रेरणा स्रोतों है । एक पीढी को आगे लाने के लिए कितना संघर्ष करना पढता है ।

  2. 2
    Prakash Chandra

    बहुत ही अच्छी जानकारी दी है धन्यवाद इस प्रयास के लिए।

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