मंदिर नहीं है हमारा अंतिम लक्ष्य


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डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर जी ने अछूत वर्ग के मंदिर प्रवेश के लिए दो मुख्य आंदोलन चलाये थे। पूना के “पार्वतीवाई मंदिर” और नासिक के “कालाराम मंदिर” के लिए।

बाबा साहेब के द्वारा इन आंदोलनों का चलाने का मतलब यह नहीं था कि अछूतों से उन्हें मंदिरों में पूजा करवानी है। बल्कि उन्होंने अछूत वर्गों में ऊर्जा पैदा करने व उनकी वास्तविक स्थिति का बोध कराने के लिए इस मार्ग को चुना था। बाबा साहेब ने 14 फरवरी 1933 को एक वक्तव्य भी प्रेस को दिया था, जिसमें उन्होंने अछूतों में स्वाभिमान की भावना पैदा करने के साथ-साथ हिन्दुओं को भी अपने लक्ष्य के बारे में अवगत कराया था। बाबा साहेब ने कहा –

दलितों के लिए मंदिर खुलें या न खुलें, इस प्रश्न पर हिन्दुओं को सोचना है ना कि दलितों को, इसके लिए आंदोलनों को करना बुरा है तो हिन्दू मंदिरों को खोलें और सुसभ्य व्यक्ति बनें। यदि वे हिन्दू ही बने रहना चाहते हैं, तो मंदिरों के दरबाजे बंद रखें।

वे भाड़ में जाएं, दलितों को मंदिरों में जाने की कोई चिंता नहीं है। हिन्दू इस बात पर भी विचार करें कि क्या मंदिर प्रवेश हिन्दू समाज में दलितों के सामाजिक स्तर को उठाने के अंतिम उद्देश्य हैं? या उनके उत्थान की दिशा में यह पहला कदम है?

यदि यह पहला कदम है तो अंतिम लक्ष्य क्या है? यदि मंदिर प्रवेश अंतिम लक्ष्य है, तो दलित वर्गों के लोग उसका समर्थन कभी नहीं करेंगे। दलितों का अंतिम लक्ष्य है “सत्ता में भागीदारी”

Author – Satyendra Singh

Read also:  Important Points from Professor Kesava Kumar's Talk on ‘Reconstruction in Philosophy by Babasaheb Ambedkar’

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1 comment

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  1. 1
    Dr.Berwa

    Why the hell Dalits want to got a Hindu temple .rather they should go a BUddhist Vihar, a path shown to us by our late Messiah Dr.Ambedkar? So long as you are a Hindu, you will be continue to be treated as Chuhra/ chamars.

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