जो लोग करोड़ों लोगों को अछूत और अपराधी मानते हो उन्हें आजादी मांगने का हक नहीं – बाबासाहेब अम्बेडकर
अस्पृश्यों के एकमात्र नेता और भारत सरकार के कार्यकारी मंडल के सदस्य डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर दिनांक 14 जनवरी, 1946 को सुबह मद्रास मेल से सोलापुर आए।
सुबह सोलापुर नगरपालिका और जिला लोकल बोर्ड संस्था की ओर से हरिभाई देवकरण हाईस्कूल के के. रा. ब. मुले स्मारक मंदिर में डॉ. अम्बेडकर को प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया गया। इस अवसर पर शहर के प्रमुख व्यवसायी, डॉक्टर्स, सरकारी अधिकारी, वकील आदि आमंत्रित गण्य-मान्य उपस्थित थे।
शुरुआत में नगरपालिका की ओर से प्रदान किए जाने वाले प्रशस्ति-पत्र का मसौदा नगराध्यक्ष रा. ब. नागप्पा अण्णा अफजूलपुरकर ने पढ़ कर सुनाया। फिर प्रशस्ति-पत्र डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को प्रदान किया गया। उसके बाद जिला बोर्ड की ओर से प्रदान किया जाने वाला प्रशस्ति-पत्र बोर्ड के अध्यक्ष श्री जी. डी. साठे ने पढ़ कर सुनाया और प्रदान किया। प्रशस्ति-पत्रों के स्वीकार करने के बाद डॉ. अम्बेडकर ने कहा –
मैं बहुत आभारी हूं कि मुझे प्रशस्ति-पत्र प्रदान किए. गए। सोलापुर शहर मेरे लिए अपरिचित नहीं। मैं कई बार यहां आया हूं। राजनीति और सामाजिक कारों का प्रचार भी किया हे। सच में देखा जाए तो मेरे सार्वजनिक कार्य की शुरुआत सोलापुर से ही हुई हे। स्व. रा. ब. मुले ने अस्पृश्यों के लिए बोर्डिंग खोला और खुशी की बात है कि उनका काम उनके भाई डॉ. भालचंद्र राव बनाम काकासाहब मुले ने बढ़िया ढंग से आगे चलाया है।
भारत सरकार का अब तक का इतिहास देखें तो पता चलता है कि कर वसूलना तथा कानून और व्यवस्था पर नजर रखना यही दो उद्देश्य उनके सामने थे। हालांकि वर्तमान में इनमें कुछ बदलाव आया है। देश की दरिद्रता दुनिया के इतिहास में अपनी ही तरह की मिसाल है। सब मानेंगे कि इसी दरिद्रता को मिटाने का उद्देश्य हमने अपने सामने रखा है। दिल्ली में पुनर्गठन का काम बड़े जोरों से चल रहा हे। रहने की सुविधा, शिक्षा, व्यवसाय और उद्योग आदि पर केंद्र सरकार की 90 प्रतिशत ऊर्जा व्यय हो रही है। इस काम में स्थानीय बोर्ड, महानगरपालिका की मदद लेने की नीति अपनाने की व्यवस्था बनाई जाने वाली है।
मैं अभी मंत्री हूं। केंद्र सरकार की ओर से मजदूरों के हितो के बारे में अधिक ध्यान दिया जा रहा हे। 1930 में इस मुद्दे को लेकर रॉयल कमीशन का गठन किया गया था। इस आयोग ने कई सूचनाएं की थीं। 1930 से 1942 तक का इतिहास देखने से यह पता चलेगा कि इस बारे में कुछ भी काम नहीं हुआ है, लेकिन 1942 से अर्थात् मेरे मंत्री पद ग्रहण करने के बाद से आज 1946 तक केवल 3 वषों में विकास हुआ दिखाई देगा। यह आत्मप्रशंसा नहीं, बल्कि वास्तविकता है। 1920 से आज तक केंद्रीय एसेंब्ली में मजदूरों के केवल एक प्रतिनिधि को लिया जाता था। आज आप देखेंगे कि लोकसभा में 3 मजदूर प्रतिनिधि है। अब तक काउंसिल ऑफ स्टेटस् में एक भी मजदूर प्रतिनिधि लिया जाता था, लेकिन अब से एक प्रतिनिधि वहां भी लिया जाएगा।
आगामी केंद्रीय एसेंब्ली की बैठक में 10 बिल पेश होने वाले हें जो मजदूरों के हित में होंगे। इनके मसौदे मैंने तैयार किए हें। इससे पता चलेगा कि किस तरह देश में सामाजिक और आर्थिक दरिद्रता को दूर करने की कोशिशें जारी है।
देश की सामाजिक स्थितियां अजीब हो गई हैं। देश के छह करोड़ लोगों को अछूत मानने वाले और छुआछूत का पालन करने वाले लोग इस देश में है। इस देश में अपराधों को व्यवसाय के तौर पर उपजीविका का साधन बनाने वाले 25 लाख लोग हें। इतिहास बताता है कि आठ हजार वर्ष पूर्व इस देश में संस्कृति का निर्माण हुआ। ऐसे भी करोडों लोग हें, जिन्हें यह नहीं पता कि केसे कपडे पहनें, खाना क्या खाएं आदि। जो सामर्थ्यवान हैं उन पर यह जिम्मेदारी है। देश आजाद हो कहने वालों पर यह जिम्मेदारी और ज्यादा है। जो लोग करोड़ों लोगों को अछूत ओर अपराधी मानते हें उन्हें आजादी मांगने का हक केसे हो सकता है? इस जिम्मेदारी को टाला नहीं जा सकता।
आजादी मांगना बहुत आसान हेै। मुझसे कई बार पूछा जाता हे कि डॉ. साहेब “आप काँग्रेस में क्यों नहीं शामिल हो जाते? आपका सम्मान बढ़ेगा, हर रोज अखबार में मौके की जगह पर आपका नाम छपेगा/’ लेकिन मुझे यह मंजूर नहीं। बोलने से अधिक काम करने की जरूरत होती है। मैं कहीं भी जाऊं, जब ऐसी स्थितियों से सामना होता है तो मन व्यथित होता हे। अस्पृश्यता निवारण का असली काम मैं ही कर रहा हूं।
असल में यह काम स्पृश्य समाज के नेताओं का हेै। अंग्रेजों से आजादी मांगने वालों को अपने देश की छुआछूत की समस्या के निवारण का काम हाथ में लेना चाहिए। स्वराज मांगने वाले इन लोगों के बारे में अंग्रेज मन ही मन क्या सोचते है, इसका मुझे अहसास है। जितनी जल्दी अस्पृश्यता नष्ट होगी उतनी ही जल्दी हमें आजादी मिलेगी (स्वराज हाथ में आएगा)। यह निश्चित हे कि उसके बगैर स्वराज नहीं मिलेगा।
जनता, 15 जनवरी, 1946
+ There are no comments
Add yours