साहब कांशी राम और “दलित” शब्द का सवाल?
आज पुरे भारत और यहाँ तक की विश्व में “दलित” शब्द के इस्तेमाल को लेकर एक बहुत बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, जहाँ एक ओर ब्राह्मणवादी मीडिया और समाज इसे बढ़ा-चढ़ा कर इस्तेमाल कर रहा है, वहीं ST, SC, OBC की मूलनिवासी बहुजन जातियां भी इस विषय पर बटी हुई हैं। एक तरफ तो इन मूलनिवासी जातियों ने “दलित” शब्द को SC(अनुसूचित जातियां) की एक अलग पहचान के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, वहीं एक तरफ इनमें ऐसे लोग भी हैं, जो इस शब्द को एक ब्राह्मणवादी साजिश समझते हैं और इसे SC की जातियों के लिये प्रयोग करने को, उनके लिये बहुत घातक समझते हुये इसे पुरे ST, SC और OBC की एकता के लिये एक बहुत बड़ा खतरा भी मानते हैं। अगर हम “दलित” शब्द के अर्थ को जानने कि कोशिष करें, तो मुख्य तौर पर इसका मतलब “टूटा हुआ” है, लेकिन अगर इसे भारत कि SC जातियों के सन्दर्भ में देखे, तो इसका मतलब, तोड़े गये, गिराए गये, मांगने वाले, शोषित, गरीब, वंचित आदि बनता है। आधुनिक भारत में “सामाजिक क्रांति” के पितामह कहे जाने वाले “महात्मा जोतीराव फुले” से लेकर बाबासाहब अंबेडकर तक अनेकों महापुरषों ने , जिन्होंने ग़ैर-बराबरी के खिलाफ संघर्ष किया, “दलित” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए, साहब कांशी राम ने इसे बढ़ावा देना तो दूर रहा, बल्कि खुलकर इस शब्द का SC की जातियों के लिये इस्तेमाल करने का सख्त विरोध किया और एक-दो बार नहीं बल्कि अपने कई भाषणों और इंटरव्यू में इसके ख़िलाफ़ काफी सख़्त बयान दिये।
अगर हम उनके “फुले-शाहू-अंबेडकर” आंदोलन से जुड़ने के बाद के समय को देखें, तो हमे साफ तौर पर दिखता है कि जिस पहले संघठन को उन्होंने बनाया, उसका नाम उन्होंने “BAMCEF” रखा, जिसका पूरा नाम था, Backward and Minority Community Employees Federation, जिसका हिंदी में मतलब है, “पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज कर्मचारी संघ”। इसमें “Backward” शब्द उन्होंने पुरे ST,SC, OBC और इनमें से धर्म परिवर्तित हुई 6000 जातियों के लिये प्रयोग किया कि यह सभी जातियां आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ी हुई हैं न कि सिर्फ़ OBC की जातियों के लिये, जैसा की आम तौर पर किया जाता है। इसके बाद जो दूसरा संघठन उन्होंने बनाया, उसका नाम उन्होंने “DS-4” रखा और जिसका पूरा नाम था “दलित शोषित समाज संघर्ष समिति”, इसमें भी “दलित” शब्द का इस्तेमाल उन्होंने “दलित शोषित” के सन्दर्भ में किया, जिससे उनका मतलब फिर से पूरी ST,SC, OBC और इनमें से धर्म परिवर्तित हुई 6000 जातियों से था क्योकि उनका मानना था की यह सभी जातियां जोकि देश की आबादी का 85% हैं, इनका आर्थिक और सामाजिक शोषण हुआ है। तीसरा और आखरी संघठन, जिसकी नीव साहब कांशी राम ने रखी, वो थी “बहुजन समाज पार्टी” की और इसमें भी उन्होंने “बहुजन” शब्द का प्रयोग पुरे 85% समाज के लिए किया था। इन सारे उदाहरणों से हम यह साफ तौर पर देख सकते है कि साहब कांशी राम, हमेशा इस देश की 85% आबादी, जो 6000 जातियों में बटी हुई है को एक साथ जोड़ने वाले शब्दों का ही प्रयोग करते थे और “दलित” शब्द भी अगर उन्होंने इस्तेमाल किया, तो पुरे 85% समाज के लिये किया न की सिर्फ़ SC की जातियों के लिये।
साहब कांशी राम ने कई जनसभाओं में खुलकर “दलित” शब्द का विरोध किया और नागपुर कि एक सभा में उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में तो अब मीडिया वाले उन्हें “दलितों का नेता” नहीं कह पाते हैं, लेकिन जब वो महाराष्ट्र में आते हैं तो मीडिया जानबूझकर यहाँ उन्हें “दलितों का नेता” कहकर प्रचार करता है। लेकिन वो तो “दलितिंग” के बहुत खिलाफ हैं और “दलितिंग” से उनका मतलब है “मांगने वाले” और वो तो कुछ मांगने वाले नहीं बल्कि अपने समाज को तैयार कर रहे हैं कि वो अब शाषक बनकर देने वाले बने। अक्टूबर,1998 को मलेशिया की राजधानी, कुआला लुम्पुर में हुए ऐतिहासिक पहले “विश्व दलित सम्मेलन” में मुख्य मेहमान के तौर पर भाषण देते हुए पुरे भारत और दुनिया में बसे SC कि जातियों से जुड़े नेताओं और बुद्धिजीवियों के बीच उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि,
“दलितपन” एक प्रकार का भीकमँगा पन बन गया है, जिस प्रकार कोई भिकारी कभी शासक नही बन सकता है, उसी प्रकार बिना अपना “दलितपन” छोड़े कोई समाज शासक नही बन सकता।”
इस विश्व स्तरीय सम्मेलन में जहां उन्होंने “बहुजन” की विचारधारा पर ज़ोर दिया, वही पूरी दुनिया के सामने “दलित” शब्द से हो रहे नुकसान से भी अपने समाज को सावधान किया।
इसके अलावा पत्रकारों को दिए गये कई अलग-अलग इंटरव्यूओ में भी जब कभी “दलित” से जुड़े हुए सवाल उनसे पूछे गये, तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से इसके विरोध में अपने विचार रखें और इसके प्रयोग को लेकर अपना विरोध जताया। 1989 को “चौथी दुनिया” को दिये अपने एक इंटरव्यू में जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि “दलितों के हितों कि रक्षा के लिये कही “दलितिस्तान” जैसा नारा देने की ज़रूरत तो नहीं पड़ेगी?” तो उन्होंने इसके जवाब में कहा कि “नहीं, बहुजन का नारा है, भारत देश हमारा है। वैसे भी हम केवल दलितों की ही बात नहीं करते, हम तो बहुजन की बात करते है, मैं दलित शब्द का प्रयोग भी नहीं करता, मैं तो बहुजन की बात करता हूँ।” इसी तरह 1992 में “संडे” को दिये एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि आप इस मांग से सहमत हैं कि अगला राष्ट्रपति अनुसूचित जाती से होना चाहिये ? तो इसके जवाब में उन्होंने साफ कहा कि मैं मांगने के ख़िलाफ़ हूँ और अपने लोगों को “Demand”(मांग) के लिये नहीं बल्कि “Command”(नियंत्रण) के लिये तैयार कर रहा हूँ और मांगने का इस समय मतलब है “दलितपन”। “दलितपन” मांगने वालों का ही सुधरा हुआ नाम है और मैं मांगने के विरुद्ध हूँ। जब मशहूर TV कार्यक्रम, “आप की अदालत” में रजत शर्मा ने उनसे सवाल पूछा कि “आप ब्राह्मणों के ख़िलाफ़ हैं दूसरी तरफ़ दलितों के नेता हैं” तो उन्होंने पलटकर जवाब देते हुए कहा “मैं दलितों का नेता नहीं हूँ, लोग कहते हैं, आप जैसे लोग कहते हैं, मैं बहुजन का “Organiser”(संघठक) हूँ और बहुजन समाज बना रहां हूँ।
इन सब दिये गये हवालों के अलावा, साहब कांशी राम का एक और ऐसा भाषण भी है, जिसे पढ़ने के बाद उनके “दलित” शब्द के प्रति न सिर्फ विरोध का पता चलता हैं, बल्कि उन्हें इस शब्द से कितनी चीड़ थी, यह भी साफ़ समझ में आ सकता है। यह भाषण उन्होंने 14 अप्रैल, 1999 को बाबासाहब अंबेडकर के जन्मदिन के अवसर पर, नई दिल्ली के “Constitution Club” में दिया था और इसे मैं “बहुजन संघठक” के 26 अप्रैल से 2 मई, 1999 के अंक से यहां दे रहा हूँ ताकि हम उनके विचारों को और भी अच्छी तरह से समझ सके।
“उत्तर प्रदेश अन्य सूबों के मुक़ाबले में आगे क्यों है ? क्योंकि उत्तर प्रदेश में “बहुजन समाज” बना है। मैं ज़्यादातर “दलित” शब्द का इस्तेमाल नहीं करता हूँ क्योंकि मैं कहता हूँ कि जब हमें हुक्मरान बनना है तो मैं “बहुजन” शब्द का इस्तेमाल करता हूँ क्योंकि “दलित” रहकर दलित लोग इस देश के हुक्मरान नहीं बन सकते। यह बात सही है कि “बहुजन समाज” का आधार दलित समाज है। बुनियाद में दलित समाज है और उनको आधार बनना भी चाहिये क्योंकि उनके साथ सबसे ज़्यादा अन्याय अत्याचार हुआ है, जिनको हुक्मरान बनकर अन्याय-अत्याचार का अंत करने कि सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, तो सबसे पहले इस मूवमेंट(आंदोलन) का बेस(आधार) उनको ही बनना चाहिये। लेकिन “दलित” रहते हुए हम लोग हुक्मरान नहीं बन सकते, इसलिये मज़बूत होना होगा क्योंकि मज़बूत लोग ही हुक्मरान बन सकते हैं दलित नहीं। जब महाराष्ट्र में “दलित पैंथर” के लोग अपनी बात कहते थे तो मैं बड़ा परेशान होता था कि ये बात तो ठीक कहते हैं, लेकिन यह अपने आपको क्या कहते थे ? कि हम “दलित पैंथर” हैं। तब मैं उनको कहता था की भई पैंथर तो मांस खाता है और खून पीता है। लेकिन अगर पैंथर “दलित” होगा तो क्या घास खायेगा ? उसको घास खाना पड़ेगा क्योंकि Nature (स्वभाव) के अनुसार उसको मांस खाना चाहिये और खून पीना चाहिये। इसी तरह हमारे एक साथी है जो जनता दल के नेता हैं, श्री राम विलास पासवान, उन्होंने “दलित सेना” बनाई तो उनको भी मेरी सलाह थी कि भई सेना तो मज़बूत होनी चाहिये क्योंकि जिस तरह पैंथर दलित होगा तो घास खाएगा और सेना दलित होगी तो मार खायेगी। फिर यदि मार ही खानी है तो सेना बनाने की क्या ज़रूरत है। मार खाने के लिये किसी संघठन कि क्या ज़रूरत है, सेना बनानी है तो मज़बूत बनानी चाहिये जो मार कम खाये और मार ज़्यादा खिलाये। इसी तरह अगर हमे हुक्मरान बनना है तो हमें बहुजन बनना होगा।”
साहब कांशी राम, 14 April, 1999, New Delhi.
उनके भाषण के इस अंश को पढ़कर शायद ही अब कोई इस ग़लतफ़हमी में रहे कि हमें “दलित” शब्द का इस्तेमाल “अनुसूचित जाती” के लोगों के लिये करना चाहिये या नहीं ? किसी भी क्रांति में शब्दों का बहुत महत्त्व होता है और हमें इस बात का हमेशा ख्याल रखना चाहिये कि हम ऐसे शब्दों का प्रयोग करें, जिससे हमारे समाज का फ़ायदा हो सके न कि नुकसान और किसी भी हालत में ऐसे शब्दों को कभी भी बढ़ावा नहीं देना चाहिये, जो हमें ब्राह्मणवादी लोगों के द्वारा दिये गये हो। हम देख सकते है कि पूरा ब्राह्मणवादी मीडिया और समाज “दलित” शब्द को जान बूझकर सिर्फ़ SC कि जातियों के लिये ही इस्तेमाल करता है क्योंकि वो इसे SC से जोड़कर सिर्फ 15% आबादी तक सीमित करना चाहता है। साथ ही क्योंकि इस शब्द का अर्थ “टुटा हुआ” और गरीब, दबाया हुआ आदि बनता है, तो स्वाभाविक है कि जो समाज इसे अपने साथ जोड़ेगा तो उसका मानसिक स्तर भी गिरा ही रहेगा और “क्रांतियां” वही लोग लाते हैं जिनमे जोश हो न कि निराशा। आप कभी भी ब्राह्मणवादी मीडिया और लोगों को “मूलनिवासी” शब्द का इस्तेमाल करते नहीं देखेंगे, जबकि पुरे देश के चप्पे-चप्पे में आज इस शब्द की गूंज है कि ST, SC, OBC इस देश के मूलनिवासी है और साहब कांशी राम ने भी अनेकों बार जन सभाओं में इस शब्द का प्रयोग किया है और न ही आप कभी अपने विरोधियों को ST, SC, OBC के लिये “बहुजन” शब्द का व्यवहार करते देखेंगे। आखिर कारण क्या है ? कारण यह है कि ब्राह्मणवादी लोगों को यह मालूम है कि इन शब्दों को इस्तेमाल करने से इन सभी की एक पहचान बनती है और 6000 में बाटे गये इस समाज में आपसी भाईचारा बनता है जो वो किसी भी सूरत में बनने नहीं देना चाहते।
अगर हमें भारत में एक मानवतावादी और बराबरी पर आधारित समाज बनाना है और अपने महापुरषों के दिखाए रास्ते पर चलना है तो हमें उनके विचारों को काफी गहराई से समझ कर ब्राह्मणवादी साजिशों से सावधान रहना होगा। हमें “दलित” या ऐसे और भी मनोबल को तोड़ने वाले शब्दों से, जिन्हें ब्राह्मणवादी लोगों ने बढ़ावा दिया हैं के प्रयोग को बंद कर, ऐसे शब्दों को बढ़ावा देना हैं जिससे हम न सिर्फ अपने समाज का मनोबल बढ़ाये बल्कि पुरे ST, SC और OBC में 6000 जातियों में बाटे गये अपने समाज को एक साथ जोड़ सकें। यही सही मायने में 9 अक्टूबर, 2017 को साहब कांशी राम के ग्यारवें परिनिर्वाण पर उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
सतविंदर मदारा, Sept 2, 2017
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