यह सभयता पुरानी है।


यह सभयता हिंदुस्तानी है,

यह सभयता हिंदुस्तानी है।

महामारी आती जानी है,

गरीब ने जान गंवानी है

यह सभयता हिंदुस्तानी है।

दो चूंन की भूख में

इंसान ने गुलामी निभानी है

मज़दूर की मेहनत की कमाई पर

गिद्धों ने आंख गढ़ानी है

यह सभयता हिंदुस्तानी है।

मेहनत कश की उम्र ऐसे ही बीत जानी है

जो बोझ ढोये देश का

उसी पर लाठी चलानी है

रोटी की तलाश में निकले जो

उसी ने गोली खानी है

यह सभयता हिंदुस्तानी है।

विदेश में बैठे शासक वर्ग ने

अय्याशी से ज़िन्दगी बितानी है।

महेंगे आलीशान जहाज़ों में

उनको सुरक्षित वापस लानी है

मेहनत कश की भूख की

तुम्हे कोई परवाह तक नही जतानी है

यह सभयता हिंदुस्तानी है।

बच्चों ने घांस खाकर

अंतड़ियां अपनी सुखानी है

आलीशान सरकारी बंगले में बैठ कर

बाबू शर्मा ने उसे फिट बतानी है

यह सभयता हिन्दुस्तानी है।

पत्थर के भगवानो को

सोने के कवच पहनानी है

भूख लगे जो उनको तोह

मुह पर बर्फी चिपकानी है

बीमारी से बचे रहे तोह

मास्क भी उन्हें लगानी है

अरबों खरबों के दान को

तिजोरी में भरते जानी है

गरीब भूख से मर जाये मगर

तिजोरी की चाबी नही दिखानी है

यह सभयता हिंदुस्तानी है।

पैदल घर को लौटे जो

सर पर लेकर अपनी ज़िन्दगानी है

बीमारी नही है कारण इसका

भूख से जान नही गंवानी है

मीलों का सफर है साहिब यह

पैरों में छाले पढ़ जानी है

हौसले देखो इनके मगर

दुख सुख में साथ निभानी है

मगर हुक्मरानों को क्या फर्क

गरीब ने ही तोह जान गंवानी है

यह सभयता हिंदुस्तानी है

यह सभयता नई नही

हज़ारों साल पुरानी है

जाती में बांट कर इन्हे

ग़ुलामी जो करवानी है

चालाकी देखो इनकी यह

भगवान की देन बतानी है

नासमझ थे जो उन्हें

अंधविश्वास और पाखंड से मज़दूरी ही करवानी है

यह सभयता हिंदुस्तानी है।

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