बाबासाहेब आंबेडकर के सर्वश्रेष्ठ अनमोल विचार व कथन हिंदी तथा इंग्लिश में


Men are mortal. So are ideas. An idea needs propagation as much as a plant needs watering. Otherwise both will wither and die.

पुरुष नश्वर है और विचार भी। एक विचार को प्रसार की उतनी ही आवश्यकता है जितनी एक पौधे को पानी की। अन्यथा दोनों सूख और मर जायेंगे।

The conception of secular state is derived from the liberal democratic tradition of west. No institution which is maintained wholly out of state funds shall be used for the purpose of religious instruction irrespective of the question whether the religious instruction is given by the state or any other body.

धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा पश्चिम की उदार प्रजातांत्रिक परंपरा से प्राप्त होती है। राज्य निधि द्वारा संचालित किसी भी संस्था का इस्तेमाल धार्मिक शिक्षा के उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा चाहे वह धार्मिक शिक्षा राज्य या किसी अन्य संस्था द्वारा दी गई हो।

A historian ought to be exact, sincere and impartial; free from passion, unbiased by interest, fear, resentment or affection; and faithful to the truth, which is the mother of history the preserver of great actions, the enemy of oblivion, the witness of the past, the director of the future.

एक इतिहासकार जो इतिहास का जन्मदाता है, महान कार्यों का संरक्षक, गुमनामी का दुश्मन, अतीत का गवाह, भविष्य का निर्देशक है, सटीक, ईमानदार और निष्पक्ष होना चाहिए; जुनून से मुक्त, मतलब, भय, असंतोष या स्नेह से निष्पक्ष; और सच के प्रति वफादार होना चाहिए।

You must abolish your slavery yourselves. Do not depend for its abolition upon god or a superman. Remember that it is not enough that a people are numerically in the majority. They must be always watchful, strong and self-respecting to attain and maintain success. We must shape our course ourselves and by ourselves.

आपको अपनी गुलामी स्वयं खत्म करनी होगी। भगवान या एक महामानव पर इसके उन्मूलन के लिए निर्भर न रहें। याद रखें कि संख्यानुसार लोगों का बहुमत में होना पर्याप्त नहीं है। सफलता पाने और बनाए रखने के लिए उन्हें हमेशा सतर्क, मजबूत और स्वाभिमानी रहना होगा। हमें स्वयं अपनी राहों को आकार देना होगा।

In Hinduism, conscience, reason and independent thinking have no scope for development.

हिंदू धर्म में, विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।

The basic idea underlying religion is to create an atmosphere for the spiritual development of the individual. This being the situation, it is clear that you cannot develop your personality at all in Hinduism.

धर्म अंतर्निहित मूल विचार व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए एक माहौल बनाने के लिए है। इस स्थिति में, यह स्पष्ट है कि आप हिंदू धर्म में अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकते हैं।

The basis of my politics lies in the proposition that the Untouchables are not a sub-division or sub-section of Hindus, and that they are a separate and distinct element in the national life of India.

मेरी राजनीति का आधार इस प्रस्ताव में निहित है कि अछूत हिंदुओं का एक उप-विभाजन या उप-धारा नहीं है और वे भारत के राष्ट्रीय जीवन में एक अलग और विशिष्ट तत्व हैं।

Democracy is not a Form of Government, but a form of social organization.

लोकतंत्र सरकार का एक रूप नहीं है, बल्कि सामाजिक संगठन का एक रूप है।

A people and their religion must be judged by social standards based on social ethics. No other standard would have any meaning.

लोग और उनके धर्म का न्याय सामाजिक नैतिकता के आधार पर सामाजिक मानकों के द्वारा किया जाना चाहिए। किसी अन्य मानक का कोई अर्थ नहीं है।

If I find the constitution being misused, I shall be the first to burn it.

यदि मैंने संविधान का दुरुपयोग होते पाया, तो इसे सबसे पहले जलाने वाला मैं हूँगा।

I feel that the constitution is workable, it is flexible and it is strong enough to hold the country together both in peacetime and in wartime. Indeed, if I may say so, if things go wrong under the new Constitution, the reason will not be that we had a bad Constitution. What we will have to say is that Man was vile.

मैं संविधान को व्यावहारिक मानता हूँ, यह लचीला है और इतना मजबूत भी कि यह राष्ट्र को शांतिकाल और युद्ध दोनों समय में एक साथ रख सकता है। वास्तव में, अगर मैं ऐसा कहूँ, कि अगर नए संविधान के तहत कुछ गलत हुआ, तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारे पास एक बुरा संविधान था। हमें यह कहना होगा कि मनुष्य नीच था।

Equality may be a fiction but nonetheless one must accept it as a governing principle.

समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी एक शासी सिद्धांत रूप में इसे स्वीकार करना चाहिए।

Life should be great rather than long.

जीवन लंबा होना कि बजाय महान होना चाहिए।

For a successful revolution it is not enough that there is discontent. What is required is a profound and thorough conviction of the justice, necessity and importance of political and social rights.

एक सफल क्रांति के लिए वहाँ असंतोष पर्याप्त नहीं है। राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों की न्याय, आवश्यकता और महत्वता का एक गहरा और पूरी तरह से दृढ़ विश्वास होना आवश्यक है।

Rights are real only if they are accompanied by remedies. It is no use giving rights if the aggrieved person has no legal remedy to which he can resort when his rights are invaded.

अधिकार तभी वास्तविक है जब उपाय उनके साथ हैं। यदी पीड़ित व्यक्ति को अपने अधिकारों पर आक्रमण पर सहारा लेने के लिए कोई कानूनी उपाय नहीं है तो ऐसे अधिकार देने का कोई लाभ नहीं है।

Democracy is not merely a form of Government. It is primarily a mode of associated living, of conjoint communicated experience. It is essentially an attitude of respect and reverence towards our fellow men.

लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है। यह मुख्य रूप से संयुक्त संप्रेषित अनुभव के जुड़े रहने की एक विधा है। यह अनिवार्य रूप से हमारे साथी मनुष्यों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का एक दृष्टिकोण है।

This condition obtains even where there is no slavery in the legal sense. It is found where as in caste system, some persons are forced to carry on the prescribed callings which are not their choice.

जहां कानूनी अर्थों में कोई गुलामी नहीं है वहां भी यह स्थिति उत्पन होती है। जाति व्यवस्था के रूप में यह पाया जाता है कि, कुछ लोग निर्धारित आजीविकाओं पर जाने के लिए मजबूर हैं, जो उनकी अपनी पसंद नहीं हैं।

History shows that where ethics and economics come in conflict, victory is always with economics. Vested interests have never been known to have willingly divested themselves unless there was sufficient force to compel them.

इतिहास से पता चलता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र संघर्ष में आते हैं, जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को स्वेच्छा से वापस लेने के लिए कभी नहीं जाना गया है जब तक कि उन्हें मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न हो।

Every man must have a philosophy of life, for everyone must have a standard by which to measure his conduct. And philosophy is nothing but a standard by which to measure.

हर मनुष्य के जीवन का एक दर्शन होना आवश्यक है, हर किसी के पास एक मानक होना आवश्यक है जिसके द्वारा वह अपने आचरण को माप सके। तथा दर्शन कुछ और नहीं बल्कि मापने के लिए एक मानक है।

Indians today are governed by two different ideologies. Their political ideal set in the preamble of the Constitution affirms a life of liberty, equality and fraternity. Their social ideal embodied in their religion denies them.

भारतीय आज दो अलग-अलग विचारधाराओं से संचालित होते हैं। उनके राजनीतिक आदर्श संविधान की प्रस्तावना में निहित स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के एक जीवन की पुष्टि करता है। उनके धर्म में सन्निहित उनके सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।

Unlike a drop of water which loses its identity when it joins the ocean, man does not lose his being in the society in which he lives. Man’s life is independent. He is born not for the development of the society alone, but for the development of his self.

जिस प्रकार पानी की एक बूंद समुद्र में मिलकर अपनी पहचान खो देती है, उसके विपरीत समाज में रह कर मनुष्य अपनी पहचान नहीं खोता। मनुष्य का जीवन स्वतंत्र है। वह सिर्फ समाज के विकास के लिए पैदा नहीं हुआ है, बल्कि उसके स्वयं के विकास के लिए हुआ है।

The fundamental principle of Buddhism is equality… Buddhism was called the religion of Shudras. There was only one man who raised his voice against separatism and Untouchability and that was Lord Buddha.

बौद्ध धर्म के मौलिक सिद्धांत स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा है … बौद्ध धर्म शूद्रों का धर्म कहा जाता था। केवल एक ही व्यक्ति था जिसने अलगाववाद और अस्पृश्यता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और वे भगवान बुद्ध थे।

We must begin by acknowledging that there is a complete absence of two things in Indian Society. One of these is equality. On the social plane we have an India based on the principles of graded inequality, which means elevation for some and degradation for others. On the economic plane we have a society in which there are some who have immense wealth as against many who live in abject poverty.

हमें यह स्वीकार करना शुरू करना होगा कि भारतीय समाज में दो बातों का पूर्ण अभाव है। इनमें से एक समानता है। सामाजिक स्तर पर एक भारत ऐसा है जो श्रेणीबद्ध असमानता के सिद्धांतों पर आधारित है, इसका अर्थ कुछ के लिए पदोन्नति और कुछ के लिए गिरावट है। आर्थिक स्तर पर हमारे पास एक समाज है जिसमे कुछ के पास विशाल खजाना है जबकि ज्यादातर घोर गरीबी में रहते हैं।

From the point of view of annihilation of caste, the struggle of the saints did not have any effects on society. The value of a man is axiomatic and self-evident; it does not come to him from the gilding of Bhakti. The saints did not struggle to establish this point. On the contrary their struggle had very unhealthy effect on the depressed classes. It provided the Brahmins with an excuse to silence them by telling them that they would be respected if they attained the status of Chokhamela.

जाति के विनाश की दृष्टि से, संतों के संघर्ष का समाज पर कोई प्रभाव नहीं था। एक व्यक्ति के मूल्य स्वयंसिद्ध और स्वयं स्पष्ट हैं; यह उसे भक्ति करने से नहीं आये हैं। संतों ने इस बात को स्थापित करने के लिए संघर्ष नहीं किया। इसके विपरीत उनके संघर्ष का दलित वर्ग पर बहुत अस्वस्थ प्रभाव पड़ा है। इसने ब्राह्मणों को उन्हें चुप कराने का बहाना दे दिया है कि अगर वे सम्मान पाना चाहते हैं तो उन्हें चोखामेला का दर्जा प्राप्त करना होगा।

It is mischievously propagated by Hindu scriptures that by serving the upper classes the Shudras achieve salvation. Untouchability is another appellation of slavery. No race can be raised by destroying its self-respect. So if you really want to uplift the Untouchables, you must treat them in the social order as free citizens, free to carve out their destiny.

यह शरारत हिन्दू शास्त्रों द्वारा प्रचारित की गई कि उच्च वर्गों की सेवा करके शूद्र मोक्ष को प्राप्त करता है। अस्पृश्यता गुलामी की एक और पदवी है। कोई जाति अपने आत्म सम्मान को नष्ट करने से नहीं उठ सकती है। यदि आप वास्तव में अछूतों का उत्थान करना चाहते हैं, तो आपको उनसे सामाजिक व्यवस्था में स्वतंत्र नागरिक के रूप में व्यवहार करना होगा और उन्हें अपने भाग्य को रूप देने की आज़ादी देनी होगी।

Negatively I reject the Hindu social philosophy propounded in Bhagvad Gita, based as it is on the Triguna of Sankhya Philosophy which in my judgement is a cruel perversion of the philosophy of Kapila, and which had made the caste system of graded inequality the law of Hindu social life.

मैं भगवद गीता में प्रतिपादित हिन्दू सामाजिक दर्शन को नकारात्मक रूप में अस्वीकार करता हूँ, मेरे फैसले में यह कपिल के दर्शन की एक क्रूर विकृति है जो सांख्य दर्शन के त्रिगुण पर आधारित है और जिसने जाति व्यवस्था की वर्गीकृत असमानता को हिन्दू सामाजिक जीवन का कानून बनाया है।

Constitutional morality is not a natural sentiment. It has to be cultivated. We must realize that our people have yet to learn it. Democracy in India is only a top dressing on an Indian soil whish is essentially undemocratic.

संवैधानिक नैतिकता एक प्राकृतिक भावना नहीं है। यह अभी लाई जानी है। हमें यह महसूस करना होगा कि हमारे लोगों को अभी भी सीखना है। भारत में लोकतंत्र भारतीय ज़मीन पर सिर्फ एक परत है जो अनिवार्य रूप से अलोकतांत्रिक है।

Man is mortal. Everyone has to die some day or the other. But one must resolve to lay down one’s life in enriching the noble ideals of self-respect and in bettering one’s human life. We are not slaves. Nothing is more disgraceful for a brave man than to live life devoid of self-respect.

मनुष्य नश्वर है। हर किसी को कभी न कभी मरना है। लेकिन मनुष्य को अपने जीवन में आत्म-सम्मान के महान आदर्शों को समृद्ध बनाने और स्वयं के जीवन को बेहतर बनाने का फैसला करना होगा। हम दास नहीं हैं। एक बहादुर व्यक्ति के लिए आत्म-सम्मान से रहित जीवन जीने की तुलना में और अधिक शर्मनाक कुछ नहीं है।

In India, ‘Bhakti’ or what may be called the path of devotion or hero-worship plays a part in politics unequalled in magnitude by the part it plays in the politics of any other of the world. ‘Bhakti’ in religion may be a road to salvation of the soul. But in politics, ‘Bhakti’ or hero-worship is a sure road to degradation and to eventual dictatorship.

भारत में, ‘भक्ति’ या भक्ति मार्ग या नायक-भक्ति राजनीति में जो हिस्सा अदा करती है वह दुनिया के किसी भी अन्य देश की राजनीति के मुकाबले अतुल्य है। धर्म में ‘भक्ति’ आत्मा की मुक्ति के लिए एक मार्ग हो सकता है। लेकिन राजनीति में, ‘भक्ति’ या नायक-भक्ति यकीनन क्षरण करने के लिए और अंततः तानाशाही करने के लिए एक मार्ग है।

Untouchability has ruined the Untouchables, the Hindus and ultimately the nation as well. If the depressed classes gained their self-respect and freedom, they would contribute not only to their own progress and prosperity but by their industry, intellect and courage would contribute also to the strength and prosperity of the nation. If the tremendous energy Untouchables are at present required to fritter away in combating the stigma of Untouchability had been saved them, it would have been applied by them to the promotion of education and development of resources of their nation as a whole.

अस्पृश्यता ने अछूतों और हिंदुओं को बर्बाद कर दिया है, और आखिरकार राष्ट्र को भी। यदि दलित वर्ग अपने आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता की प्राप्त करे, तो वह केवल अपनी खुद की प्रगति और समृद्धि के लिए ही नहीं अपितु अपनी मेहनत, बुद्धि और साहस से राष्ट्र की शक्ति और समृद्धि के लिए भी योगदान करेगा। वर्तमान में अस्पृश्यता के कलंक का मुकाबला करने में अछूतों की जबरदस्त ऊर्जा को नष्ट होने से बचाना आवश्यक है, यह उनके द्वारा उनके पूरे देश में शिक्षा और संसाधनों के विकास को बढ़ावा देने के लिए लगानी होगी।

Caste cannot be abolished by inter caste dinners or stray instances of inter caste marriages. Caste is a state of mind. It is a disease of mind. The teachings of the Hindu religion are the root cause of this disease. We practice casteism and we observe Untouchability because we are enjoined to do so by the Hindu religion. A bitter thing cannot be made sweet. The taste of anything can be changed. But poison cannot be changed into nectar.

जाति अंतरजातीय रात्रिभोज या अंतरजातीय विवाह के आवारा उदाहरणों द्वारा समाप्त नहीं की जा  सकती। जाति मन की एक अवस्था है। यह मन की एक बीमारी है। हिन्दू धर्म की शिक्षाएं इस रोग का मूल कारण हैं। हम जातिवाद का अभ्यास और अस्पृश्यता का पालन करते हैं क्योंकि हिन्दू धर्म में ऐसा करने के लिए हमें निर्देश दिए गये है। एक कड़वी चीज़ को मिठाई नहीं बनाया जा सकता। किसी का भी स्वाद बदला जा सकता है। लेकिन जहर अमृत में नहीं बदला जा सकता।

What struck me most was that my community still continues to accept a position of humiliation only because caste Hindus persist in dominating over them. You must rely on your own strength, shake off the notion that you are in any way inferior to any community.

मुझे सबसे बड़ा झटका इस बात का है कि मेरा समुदाय अभी भी अपमान की स्थिति को  इसलिए स्वीकार करता है क्योंकि जाति के हिंदु अब भी उन पर हावी हैं। आपको अपने स्वयं के बल पर भरोसा करना होगा, आप इस धारणा को झकझोर समाप्त कर दो कि आप किसी भी तरह से किसी भी समुदाय से नीच हो।

The minorities in India have loyally accepted the rule of the majority whish is basically a communal majority and not a political majority. It is for the majority to realize its duty not to discriminate against minorities. Whether the minorities will continue or will vanish must depend upon this habit of majority. The moment the majority looses the habit of discriminating against the minority, the minorities can have no ground to exist. They will vanish.

भारत में अल्पसंख्यकों ने राजभक्तिपूर्वक बहुमत के शासन को स्वीकार कर लिया है जो मूल रूप से एक सांप्रदायिक बहुमत है और एक राजनीतिक बहुमत नहीं है। बहुमत को अपने कर्तव्य का एहसास करना है कि उसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव नहीं करना है। अल्पसंख्यक रहेंगे या नहीं यह बहुमत की इस आदत पर निर्भर करेगा। जिस पल बहुमत अल्पसंख्यक के खिलाफ भेदभाव की आदत छोड़ देगा, अल्पसंख्यकों के मौजूद रहने का कोई कारण नहीं रहेगा। वे गायब हो जायेंगे।

Why does a human body become deceased? The reason is that as long as the human body is not free from suffering, mind cannot be happy. If a man lacks enthusiasm, either his body or mind is in a deceased condition…. Now what saps the enthusiasm in man? If there is no enthusiasm, life becomes drudgery – a mere burden to be dragged. Nothing can be achieved if there is no enthusiasm. The main reason for this lack of enthusiasm on the part of a man is that an individual looses the hope of getting an opportunity to elevate Himself. Hopelessness leads to lack of enthusiasm. The mind in such cases becomes deceased…. When is enthusiasm created? When one breaths an atmosphere where one is sure of getting the legitimate reward for one’s labor, only then one feels enriched by enthusiasm and inspiration.

क्यों एक मानव शरीर मृतक बन जाता है? इसका कारण है कि जब तक मानव शरीर पीड़ा से मुक्त नहीं है, मन खुश नहीं हो सकता है। यदि एक व्यक्ति में उत्साह का अभाव है, तो उसका शरीर या मन मृतक हालत में है …। व्यक्ति में से उत्साह कौन निकालता है? यदि कोई उत्साह नहीं है, तो जीवन कठिन परिश्रम हो जाता है – घसीटने के लिए एक बोझ मात्र। यदि उत्साह नहीं है तो कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। एक व्यक्ति की ओर से उत्साह की इस कमी का मुख्य कारण उसकी तरक्की करने का अवसर प्राप्त करने की आशा खोने से है। निराशा से उत्साह की कमी हो जाती है। ऐसे मामलों में मन मृतक हो जाता है …। उत्साह कब आता है? जब वह ऐसे माहौल में साँस लेता है जहाँ उसे अपने श्रम के लिए वैध इनाम मिलने का विश्वास होता है, उसके बाद ही वह एक उत्साह और प्रेरणा से समृद्ध महसूस करता है।

The true function of law consists in repairing the faults in society. Unfortunately ancient societies never dared to assume the function of repairing their own defects; consequently they decayed. This country has seen the conflict between ecclesiastical law and secular law long before Europeans sought to challenge the authority of the Pope. Kautilya’s Arthshastra lays down the foundation of secular law. In India unfortunately ecclesiastical law triumphed over secular law. In my opinion this was the one of the greatest disasters in the country. The unprogressive nature of the Hindu society was due to the notion that the law cannot be changed.

कानून का असली काम समाज में दोषों की मरम्मत करना है। दुर्भाग्य से प्राचीन समाजों ने अपने स्वयं के दोषों की मरम्मत के काम की कल्पना की हिम्मत कभी नहीं की; फलस्वरूप वे सड़ गए। इस देश ने यूरोपीयों की पोप की सत्ता को चुनौती देने की मांग से बहुत समय पहले चर्च संबंधी कानून और धर्मनिरपेक्ष कानून के बीच का संघर्ष देखा है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने धर्मनिरपेक्ष कानून की नींव रखी। भारत में दुर्भाग्य से चर्च संबंधी कानून ने धर्मनिरपेक्ष कानून पर विजय पाई। मेरी राय में यह देश में सबसे बड़ी आपदाओं में से एक थी। हिन्दू समाज का प्रगति न करना इस धारणा की वजह से था कि प्रकृतिक कानून बदला नहीं जा सकता है।

Civilization has never been a continuous process. There were states and societies which at one time had been civilized. In the course of time something happened which made these societies stagnant and decayed. This could be illustrated by India’s history itself. There could be no doubt that one of the countries which could boast of ancient civilization is India. When the inhabitants of Europe were living under the barbaric conditions, this country had reached the highest peak of civilization, it had parliamentary institutions when the people of Europe were mere nomads.

सभ्यता एक सतत प्रक्रिया कभी नहीं रही। यहाँ राज्य और समाज थे जो एक समय में सभ्य थे। समय के पाठ्यक्रम में कुछ ऐसा हुआ कि ये समाज स्थिर हुए और सड़ गए। यह खुद भारत के इतिहास से साफ हो सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत उन देशों में से एक है जो प्राचीन सभ्यता का दावा कर सकते हैं। जब यूरोप के निवासी बर्बर हालातों के तहत जी रहे थे, यह देश सभ्यता की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच गया था, जब यूरोप के लोग मात्र खानाबदोश थे इसके पास संसदीय संस्थाएं थी।

I measure the progress of a community by the degree of progress which women have achieved.

मैं एक समुदाय की प्रगति महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति के आधार पर मापता हूँ।

Anyone who studies working of the system of social economy based on private enterprise and pursuit of personal gain will realize how it undermines, if it does not actually violate the individual rights on which democracy rests. How many have to relinquish their rights in order to gain their living? How many have to subject themselves to be governed by private employers?

जो कोई भी निजी उद्यम और व्यक्तिगत लाभ की खोज पर आधारित सामाजिक अर्थव्यवस्था की व्यवस्था की कार्यप्रणाली का अध्ययन करता है एहसास होगा कि कैसे यह व्यक्ति के अधिकारों का, जिस पर लोकतंत्र टिकी हुई है, का अगर वास्तव में उल्लंघन न सही, नजरअंदाज करती है। कितने लोगों को जीवन जीने के क्रम में अपने अधिकारों को त्यागना पड़ता है? कितने लोगों को स्वयं को निजी नियोक्ताओं द्वारा शासित होना पड़ता है?

India is a peculiar country and her nationalists and patriots are a peculiar people. A patriot and a nationalist in India is one who sees with open eyes his fellow men treated as being less than man. But his humanity does not rise in protest. He knows that men and women for no cause are denied their rights. But it does not prick his civil sense of helpful action. He finds a whole class of people shut out from public employment. But it does not rouse his sense of justice and fair play. Hundreds of evil practices that injure man and society are perceived by him. But they do not sicken him with disgust. The patriot’s one cry is power for him and his class. I am glad I do not belong to that class of patriots. I belong to that class which takes its stand on democracy and which seeks to destroy monopoly in every form. Our aim is to realize in practice our ideal of one man one value in all walks of life – political, economical and social.

भारत एक अजीब देश है और उसके राष्ट्रवादी और देशभक्त अजीब लोग हैं। भारत में एक देशभक्त और एक राष्ट्रवादी वह है जो खुली आँखों से देखता है कि उसके अपने साथी मनुष्यों के साथ मनुष्यों जैसा व्यव्हार नहीं होता। लेकिन उसकी मानवता इसका विरोध नहीं करती है। वह जनता है कि बिना कारण के पुरुषों और महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर रखा है। लेकिन यह मददगार कार्रवाई के लिए उनकी नागरिक भावना को चुभन नहीं देता है। वह पाता है कि लोगों की एक पूरी श्रेणी सरकारी नौकरियों से वंचित है। लेकिन वह न्याय और निष्पक्ष होने की अपनी भावना को नहीं जगाता है। मनुष्य और समाज को घायल करने वाली सैकड़ों बुरी प्रथाएं उसके द्वारा मनाइ जाती हैं। लेकिन वे उसे घृणा का अनुभव नहीं देती है। देशभक्त का एकमात्र रोना उसे और उसके वर्ग के लिए शक्ति है। मैं खुश हूँ कि मैं देशभक्तों के उस वर्ग से सम्बन्ध नहीं रखता हूँ। मैं उस वर्ग से आता हूँ जो लोकतंत्र पर अपना रुख रखता है और जो हर रूप में एकाधिकार को नष्ट करना चाहता है। हमारा उद्देश्य जीवन के सभी क्षेत्रों – राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक में एक व्यक्ति एक मूल्य के हमारे आदर्श के अभ्यास का एहसास करना है।

Walter Bagehot defined democracy as ‘Government by discussion’. Abraham Lincoln defined democracy as ‘ A Government of the people, by the people and for the people’.

वाल्टर बगेहोत ने ‘चर्चा से सरकार’ के रूप में लोकतंत्र को परिभाषित किया। अब्राहम लिंकन ने ‘लोगों की, लोगों द्वारा और लोगों के लिए एक सरकार’ के रूप में लोकतंत्र को परिभाषित किया।

My definition of democracy is – A form and a method of Government whereby revolutionary changes in the social life are brought about without bloodshed. That is the real test. It is perhaps the severest test. But when you are judging the quality of the material you must put it to the severest test.

लोकतंत्र की मेरी परिभाषा है – सरकार का एक रूप और एक पद्धति जिससे सामाजिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन बिना रक्तपात के लाया जाता है। यही असली परीक्षा है। यह शायद सबसे गंभीर परीक्षा है। लेकिन यदि आप सामग्री की गुणवत्ता की पहचान कर रहे हैं तो आपको उसका सबसे गंभीर परीक्षण करना पड़ेगा।

What we must do is not to content ourselves with mere political democracy. We must make our political democracy a social democracy as well. Political democracy cannot last unless there is at the base of it, a social democracy. What does social democracy mean? It means a way of life which recognizes liberty, equality and fraternity as the principles of life. These principles of liberty, equality and fraternity are not to be treated as separate items. They form a union in the sense that, to divorce one from the other is to defeat the very purpose of democracy. Liberty cannot be divorced from equality, nor can liberty and equality be divorced from fraternity.

हमें मात्र राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं होना है। हमें हमारे राजनीतिक लोकतंत्र को एक सामाजिक लोकतंत्र बनाना है। राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं रह सकता जब तक यह एक सामाजिक लोकतंत्र पर ना टिका हो। सामाजिक लोकतंत्र का क्या अर्थ है? इसका अर्थ जीवन का एक तरीका है जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के सिद्धांतों को पहचानता है। स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के इन सिद्धांतों को अलग वस्तुओं के रूप में नहीं देख सकते। ये इस तरह से एक संघ के रूप में हैं कि एक का दुसरे से तलाक लोकतंत्र के उद्देश्य को समाप्त कर देगा। स्वतंत्रता का समानता से तलाक नहीं किया जा सकता, और न ही स्वतंत्रता और समानता का भाईचारे से तलाक किया जा सकता है।

Without social union, political unity is difficult to be achieved. If achieved, it would be as precarious as a summer sapling, liable to be uprooted by the gust of wind. With mere political unity, India may be a state. But to be a state is not to be a nation and a state which is not a nation has small prospects of survival in the struggle of existence. This is especially true where nationalism – the most dynamic force of modern times, is seeking everywhere to free itself by the destruction and disruption of all mixed states. The danger to a mixed and composite state, therefore lies not so much in external aggression as in the internal resurgence of nationalities which are fragmented, entrapped, suppressed and held against their will.

सामाजिक संघ के बिना, राजनीतिक एकता प्राप्त करना मुश्किल है। यदि प्राप्त हो भी गई, तो यह उतनी अनिश्चित होगी जितना गर्मियों में एक पौधा, जिसे हवा का झोंका जड़ से उखाड़ देता है। मात्र राजनीतिक एकता के साथ,  भारत एक राज्य हो सकता है। लेकिन एक राज्य होना एक राष्ट्र होना नहीं है और एक राज्य जो एक राष्ट्र नहीं है, अस्तित्व के संघर्ष में जीवित रहने की संभावनाएं कम होती हैं। यह विशेष रूप से सत्य है कि राष्ट्रवाद जो आधुनिक समय में सबसे गतिशील बल है, हर जगह सभी मिश्रित राज्यों के विनाश और विघटन से खुद को मुक्त करने की तलाश में है। एक मिश्रित और समग्र राज्य के आंतरिक पुनरुत्थान के लिए खतरा, बाह्य आक्रमण में इतना निहित नहीं है जितना उसकी खंडित, फंसी, दबी और उसकी इच्छा के खिलाफ आयोजित राष्ट्रीयता में है।

It is disgraceful to live at the cost of one’s self-respect. Self-respect is the most vital factor in life. Without it, man is a cipher. To live worthily with self-respect, one has to overcome difficulties. It is out of hard and ceaseless struggle alone that one derives strength, confidence and recognition.

आत्म-सम्मान की कीमत पर जीना शर्मनाक है। आत्म सम्मान जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कारक है। इसके बिना, आदमी कुछ नहीं है। आत्म-सम्मान के साथ जीने के लिए, कठिनाइयों पर काबू पाना पड़ता है। केवल कड़ी मेहनत और निरंतर संघर्ष से ही शक्ति, आत्मविश्वास और मान्यता प्राप्त करता है।

Emerson has said that consistency is a virtue of an ass. No thinking human being can be tied down to a view once expressed in the name of consistency. More important than consistency is responsibility. A responsible person must learn to unlearn what he has learned. A responsible person must have the courage to rethink and change his thoughts. Of course there must be good and sufficient reason for unlearning what he has learned and for recasting his thoughts. There can be no finality in rethinking.

एमर्सन ने कहा कि स्थिरता गधे का एक गुण है। किसी भी विचारक को स्थिरता के नाम पर व्यक्त एक नज़रिए से नहीं बांधा जा सकता है। जिम्मेदारी स्थिरता से अधिक महत्वपूर्ण है। एक जिम्मेदार व्यक्ति को सीखे को अनसीखा करना सीखना होगा। एक जिम्मेदार व्यक्ति के पास पुनर्विचार और अपने विचारों को बदलने के लिए साहस होना चाहिए। बेशक सीखे को अनसीखा करने और अपने विचारों को पुनर्गठित करने के लिए अच्छे और पर्याप्त कारण होने चाहिए। पुनर्विचार करने में कुछ अंतिम नहीं हो सकता।

On the 26th January 1950, we are going to enter into a life of contradictions. In politics we will have equality and in social and economic life we will have inequality. In politics we will be recognizing the principle of one man one vote and one vote one value. In our social and economic life, we shall by reason of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one value. How long shall we continue to live this life of contradictions? How long shall we continue to deny equality in our social and economic life? If we continue to deny it for long, we will do so only by putting our political democracy in peril. We must remove this contradiction at the earliest possible moment else those who suffer from inequality will blow up the structure of democracy which this Constituent Assembly has so laboriously built up.

26 जनवरी 1950 को, हम विरोधाभासों के एक जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमें समानता होगी और सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में हमें असमानता होगी। राजनीति में हम एक व्यक्ति एक वोट और एक वोट एक मूल्य के सिद्धांत को पहचानेगें। हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में, हम अपने सामाजिक और आर्थिक संरचना के कारण, एक व्यक्ति एक मूल्य के सिद्धांत से इनकार करना जारी रखेंगे। कब तक हम विरोधाभासों के इस जीवन को जीना जारी रखेंगे? कब तक हम अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता से इनकार करना जारी रखेंगे? यदि हम लंबे समय के लिए इससे इनकार करना जारी रखते हैं, तो हम केवल हमारे राजनीतिक लोकतंत्र को मुसीबत में डालेंगे। इस विरोधाभास को जल्दी दूर करना होगा अन्यथा असमानता से ग्रस्त लोग लोकतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे जिसे संविधान सभा ने इतनी मुश्किल से बनाया।

Translated into Hindi by – Mukesh Kumar

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