मण्डल-कमण्डल की महत्वपूर्ण सूचनाओं को समेटे हुए एक ऐतिहासिक दस्तावेज।
मा.कांशी राम साहब के ऐतिहासिक भाषण, खण्ड -7 की समीक्षा
मण्डल-कमण्डल की महत्वपूर्ण सूचनाओं को समेटे हुए एक ऐतिहासिक दस्तावेज।
कुछ ही दिन पहले, मा.कांशी राम साहब के ऐतिहासिक भाषण का सातवां खण्ड डाक से मिला। इसे पढ़ने के बाद, भारतीय राजनीति के उस बहुत ही ऐतिहासिक और निर्णायक मोड़(6 जनवरी 1992 – 27 दिसंबर 1993) के बारे में जानकारी मिली, जिस पर आज की मौजूदा राजनीति टिकी हुई है। इसमें, पहले साहब कांशी राम द्वारा पिछड़ी जातियों की शासन-प्रशासन में भागीदारी को लेकर चलाये गए मण्डल आंदोलन और फिर इसे ही दबाने के लिए RSS-BJP द्वारा खड़े किये गए बाबरी मस्जिद-राम मंदिर आंदोलन(कमण्डल) से जुड़ीं विस्तारपूर्वक जानकारियां हैं।
इस खण्ड से हमें पता चलता है कि जब 10 अगस्त 1985 को गुजरात से आरक्षण विरोधी आंदोलन शुरू हुआ तो तभी इसके जवाब में साहब कांशी राम ने दिल्ली से आरक्षण समर्थक आंदोलन छेड़ दिया था, जो 7 दिसंबर 1986 तक लगातार चला। 16-17 महीने लगातार चले इस आंदोलन के तहत उन्होंने पुरे देश में 5 सेमिनार, 1 हज़ार सिम्पोजियम(विषय पर विचार-विमर्श), 100 साइकिल रैलियाँ व 40 क्षेत्रीय सम्मेलन किये। 7 दिसंबर 1986 को इसका समापन लखनऊ में विशाल आरक्षण समर्थक समापन सम्मेलन कर किया गया था।
इस तरह उन्होंने मण्डल कमीशन मुद्दे पर 1990 में ज़ोर पकड़ने से कहीं पहले इसे लेकर एक देश व्यापी आंदोलन छेड़ दिया था, जिसके कारण आगे चलकर यह इतना बड़ा मुद्दा बन सका।
वो इस मुद्दे पर लगातार सक्रिय रहे। उनकी समझ इस विषय पर कितनी गहरी थी, इस बात का अंदाज़ा उनके 22 सितंबर 1992 को उरई, उत्तर प्रदेश के दिए गए एक भाषण के इस अंश से पता चलता है,
“शासन-प्रशासन में पिछड़े वर्ग की भागेदारी नज़र नहीं आती है, यह उनके साथ विश्वासघात की बड़ी लम्बी कहानी है, इसलिये हमारी जिम्मेदारी बन जाती है कि अपने साथियों को गुमराह होने से बचायें। आज मैं आरक्षण की ही बात कहने नहीं आया हूँ, यह बात तो पहले 16-17 महीने के संघर्ष में अच्छी तरह जान चुके हैं, पहचान चुके हैं। मैं तो यह बात कहने आया हूँ कि “जिन लोगों की शासन और प्रशासन में भागीदारी नहीं होती है वे अपने हितों की रक्षा नहीं कर सकते हैं और अन्त में ग़ुलाम बनकर रह जाते हैं। “अनुसूचित जाती-जनजाति की भागीदारी तय हुई है, वह पूरी नहीं हुई, परन्तु अन्य पिछड़े वर्ग की भागीदारी अभी तय ही नहीं हुई है।”
मण्डल रिपोर्ट एवं आरक्षण समर्थक सम्मेलन
उरई, 22 सितंबर, 1992, पृष्ठ 114
यह खण्ड एक बहुत बड़े रहस्य से भी पर्दा उठाता है। OBC जातियों के बहुत से बुद्धिजीवी और नेता, मण्डल कमीशन रिपोर्ट को लागू करने का बहुत बड़ा श्रेय, भूतपूर्व प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह को देते हैं। लेकिन साहब कांशी राम के भाषणों को पढ़ने के बाद, यह ग़लतफ़हमी पूरी तरह दूर हो जाती है। वी.पी.सिंह द्वारा मण्डल कमीशन रिपोर्ट को लागू करना तो बहुत दूर की बात है बल्कि किस तरह वो उलटे पर्दे के पीछे से इसे रोकने में लगे हुए थे – के बारे में भी हैरानीजनक जानकारी मिलती है।
खुद साहब कांशी राम के शब्दों में,
“वी.पी.सिंह ने मंडल कमीशन की बात तब कही जब उन्होंने इसे रोकने का पूरा प्रबन्ध कर लिया। जज श्री रंगनाथ मिश्र को मुख्य न्यायधीश बना लिया तब मण्डल रिपोर्ट लागू करने की बात का नतीजा सामने है। रिपोर्ट आज तक लागू नहीं हो सकी।”
पृष्ठ 84
वी.पी.सिंह पर मण्डल कमीशन लागू करने के लिए दबाव बने, इसके लिए उन्होंने “चुनावी वादा पूरा करो, वरना कुर्सी खाली करो” का ऐतिहासिक नारा भी दिया, जो की पूरे देश में गूंजा।
इसी जगह वो एक और भी बहुत महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताते हैं,
“तमिलनाडु की ब्राह्मण मुख्यमंत्री(जयललिता) मण्डल कमीशन का समर्थन कर हिन्दी भाषी क्षेत्र के अन्य पिछड़ी जातियों को गुमराह कर रहीं हैं कि हम आप सभी के हितैषी हैं, जब कि तमिलनाडु में कुल 68 प्रतिशत आरक्षण आरक्षित है, जिसे 68 से 52 प्रतिशत पर लाना चाहती हैं।”
यह खण्ड एक दूसरा अहम पहलु भी सामने लाता है। जब साहब कांशी राम ने मण्डल आंदोलन द्वारा पुरे देश की पिछड़ी जातियों की भागीदारी का सवाल उठाया तो इसी से बौखला कर सवर्णों के नेतृत्व वाली RSS और भारतीय जनता पार्टी ने इसे दबाने के लिए बाबरी मस्जिद-राम मंदिर मुद्दे को जानबूझकर तूल दिया।
“कमण्डल” की आड़ में “मण्डल” को दबाने के खेले जा रहे इस ब्राह्मणवादी खेल में वो एक के बाद एक; भाजपा, कांग्रेस और जनता दल, सभी को बेनकाब करते हैं। हालात बिगड़ते देख वो दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों की एकता पर ज़ोर डालते हैं और मुलायम सिंह यादव के साथ नज़दीकी बढ़ाते हुए उन्हें वी.पी.सिंह, चंद्रशेखर, चंद्रास्वामी जैसे ब्राह्मणवादी नेताओं से दूर रहने की सलाह भी देते हैं।
वो बहुजन समाज को सावधान करते हैं कि अगर दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक एकजुट न हुए तो भाजपा देश की सत्ता तक पहुँच सकती है।
इसका असर होता है और जब 1993 में उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव हुए, तो उन्होंने मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर रामरथ पर सवार RSS-भाजपा को धूल चटा दी और “मिले मुलायम कांशी राम हवा हो गए जय श्री राम” का नारा देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सुर्ख़ियों में आया।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि, “मा.कांशी राम साहब के ऐतिहासिक भाषण, खण्ड -7” मण्डल-कमण्डल के दौर में किये गए उनके संघर्ष और विचारधारा को और भी बेहतर समझने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हालांकि पुरे बहुजन समाज को उनके संघर्ष और विचारों को जानने की बहुत ज़रूरत है, लेकिन यह खण्ड पिछड़ी जातियों और मुसलमानों के लिए खास मायने रखता है और उन्हें तो इसे ज़रूर ही पढ़ना चाहिए।
माननीय अनंत राव अकेला जी द्वारा संपादित, “मा.कांशी राम साहब के ऐतिहासिक भाषण” के सभी खण्डों में से यह सातवां खण्ड, एक अलग ही पहचान रखेगा। इसे हम सब तक पहुँचाने के लिए उनका बहुत-बहुत धन्यवाद और शेष रह गए खण्डों का बेसबरी से इंतज़ार रहेगा।
— सतविंदर मदारा
इस सातवें और दूसरे खण्डों को मंगवाने के लिए माननीय अनंत राव अकेला जी को इस नंबर पर संपर्क करें – 9319294963
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