मुर्दाबाद के नारो के बीच संविधान और आंबेडकर


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समकालीन परिपेक्ष मे घटित होने वाली निराशाजनक घटनाये निश्चित ही चिंता का विषय है. भारतीय लोकतंत्र जहा हम सभी को अभिव्यक्ती की स्वतंत्रता प्रदान करता है वही बुनियादी अधिकरो के साथ कुछ कर्तव्य भी निर्धारित करता है. भारतीय जनता को स्वतंत्र्य, समता, न्याय और बंधुता के उपयोजन का आश्वासन देने वाले सर्वोच्च ग्रंथ संविधान हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था कि निव है. सभी प्रकार की विषमता मूलक रचना नष्ट कर संविधान के माध्यम से डॉ. आंबेडकर जैसे महापुरुषोने नवं समाज के निर्माण हेतू प्रयास किया था. मात्र, लोकतंत्र को नकार देने वाले और जाती, धर्म, लिंगभेद आधारित समाज की रचना को लागू कराने के अत्त्याग्रही सनातनवादी मानसिकता के वाहक तत्व संविधान को ही जलाकर देश मे दहशत का वातावरण निर्माण करना चाहते है.

ऑगस्ट क्रांती दिवस के अवसर पर तथाकथित ‘आझाद सेना’ द्वारा आरक्षण के विरोध मे आंदोलन चलाया गया. इसी बीच हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी डॉ. बाबासाहब आंबेडकर मुर्दाबाद नारो के बीच भारतीय संविधान को भी जला दिया गया. यह घटना देश के किसी छूटे हुवे कोने मे नही बल्की राजधानी दिल्ली के ‘संसद मार्ग’ पर पुलीस की मौजुदगी मे हुई. इसी बीच इस संविधान विरोधी तबके ने देश के ‘एस. सी. / एस. टी.’ समुदाय के विरोध मे भी नारे लगाये.

आज देश जहा आने वाले १५ अगस्त को आजादी के ७० साल के महोत्सव को मनाने जा रहा है वही इस घटना ने समुची लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने बृहद प्रश्न चिन्ह खडा कर दिया है. क्या इस तबके कि यह कृती केवल ‘भारतीय संविधान’ नामक कागजी दस्तऐवज जलाने भर ही सीमित है ? क्या आंबेडकर मुर्दाबाद के नारे केवल एक व्यक्ती विरोध है ? क्या एस. सी. / एस.टी. समुदाय के विरोध मे लगे नारे उस तबके की भावनात्मक कृती भर थी ? क्या यह सारा राष्ट्रद्रोही क्रियाकलाप केवल जन समूह की तात्कालिक क्रोध कृती थी ? यह और ऐसे कई प्रश्न आज हमारे दिल मे उठ रहे है.

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इसी बीच, महाराष्ट्र के पूना और नालासोपारा मे तीन हिंदुत्ववादी दहशदगर्दो को बिस जिंदा बम और अन्य जानलेवा शस्त्रो के साथ गिरफ्तार किया गया. हिंदू राष्ट्र की घोषणा इस देश मे निश्चित ही नई नही है. लेकीन, इस घटना ने देश की व्यवस्था के विरोध मे अन्य बडी साजिशे चल रही होने की आशंका को हकीकत होने के तथ्य को भी मजबुती प्रदान की है.

क्या संविधान जलाया जाना, आधुनिक समतामुलक समाज के जनक डॉ. आंबेडकर के विरोध मे नारे प्रदर्शन, एस. सी. / एस. सी. समुदाय के विरोध मे नारेबाजी और तीन हिंदुत्ववादी दहशदगर्दो कि गिरफ्तारी इन सभी घटनावो के बीच कोई समान शृंखला है ? निश्चित ही बदलते दौर मे भी देश के हमेशा से दबाये गये बहुसंख्य दलित, पिछडे, आदिवासी, अल्पसंख्याक समाज को नकार कर मानवतावाद को अमान्य करने वाले तथाकथित धर्माधारीत राष्ट्र निर्माण कि दिशा मे उठाया गया यह एक कदम है. जीसके माध्यम से देश का माहोल और खराब कर दहशत का वातावरण निर्माण करना है. बाबासाहब ने ” अगर एक व्यक्ती किसी व्यक्ती के खिलाप अपराध करता है, तो राज्य एवं न्यायपालिका उसे दंडीत कर सकती है, लेकिन एक समाज ही समाज के विरोध मे अपराध करता है तो क्या किया जाय ?” यह प्रश्न उपस्थित किया था. आज कानून एवं सुव्यवस्था के राज्य द्वारा दिये गये आश्वासन के बीच मे भी यह सवाल प्रासंगिक लगता है. इसी प्रश्न का उत्तर हमे विवेकाधिष्टीत समाज के रूप मे खोजना होगा. और निश्चित ही हमारी समझ, विवेक को बढाना होगा.

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भारतीय स्वतंत्रता के दौर मे जहा ‘भारत मे लोकतंत्र टिक ही नही सकता’ के दावे दुनियभर के कथित विद्वान कर रहे थे वही आज हमारे देश ने दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र के रूप मे उभर कर विश्व के सामने अपना आदर्श प्रस्तुत किया है. इसका निःसंशय श्रेय हमारे संविधान को जाता है. जीसने हजारो सालो से चलती विषमता को नष्ट कर ‘एकमय समाज’ के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया. आज जरूरत है उसी लोकतंत्र को बचाने कि. संविधान को बचाने की.

और, रही बात महापुरुषो के विरोध कि, तो वह किसीं जाती बिरादरी के नही होते. वे सभी के है. माफ करे लेकिन आप सूरज पर थुक नही सकते. हो सकता है, आप महामानव को नष्ट करे, उनके पुतले भी गिराये लेकिन आप उनके विचारो को नष्ट नही कर सकते. आंबेडकर ने इस देश के मानविकरण की प्रक्रिया को गतिशील कर नवं समाज की निव रखी है. जीससे एक नही लाखो आंबेडकर का निर्माण होगा. निश्चित ही हमारा ऐतिहासिक संघर्ष जाती, वर्ग, धर्म, लिंग भेद आदी संकुचित कारक तत्त्वो के खिलाप और समता के पक्ष मे है. जो संविधान और आंबेडकर के मार्ग से चलता रहेग. जीसमे हम सभी एक है.

संविधान जिंदाबाद, आंबेडकर जिंदाबाद.

लेखक – कुणाल रामटेके
विद्यार्थी, दलित आदिवासी अध्ययन एवं कृती विभाग, टाटा सामाजिक विज्ञान संस्था, मुंबई.

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