“तीसरा मोर्चा”(Non BJP, Non Congress) नहीं “महागठबंधन”(Non BJP + Congress) करेगा RSS-BJP का सफाया


कर्नाटक विधान सभा चुनाव, जो कि 2019 लोक सभा चुनावों का सेमी फाइनल था – के नतीजों ने एक बात साफ कर दी है कि देश से RSS-BJP का सफाया “तीसरा मोर्चा”(Non BJP, Non Congress) नहीं “महागठबंधन”(Non BJP + Congress) ही करेगा । चुनावों से पहले इसे लेकर राजनीतिक विशेलषकों में अलग-अलग राय थी। कुछ का मानना था कि BJP और Congress को छोड़ कर एक तीसरा मोर्चा बनना चाहिए, लेकिन कई चिंतकों की राय थी की ऐसा करने से RSS-BJP विरोधी वोटों का बटवारा हो सकता है, जिसका सीधा फ़ायदा BJP को होगा।

जैसे ही नतीजे आये, यह साफ हो गया कि सेक्युलर पार्टियों के वोटों के बटवारे का फ़ायदा RSS-BJP को ही हुआ। सिर्फ 36.2% वोटों के बावजूद भी वो न सिर्फ सबसे बड़ी पार्टी बनने में कामयाब हुए बल्कि सिर्फ 7 सीटों से मात खा गए वरना दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में वो सरकार बनाने में कामयाब हो जाते। कांग्रेस ने भी समझदारी दिखाते हुए बिना वक़्त गवाए जनता दल(सेक्युलर)+बसपा गठजोड़ को समर्थन देने कि पेशकश की। उनके ऐसा करते ही सिर्फ कर्नाटक ही नहीं बल्कि पूरे देश के राजनीतिक हालात बदल गए। बिहार में पहले ही लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रिय जनता दल, शरद यादव के जनता दल(यूनाइटेड) और कांग्रेस के महागठबंधन के आगे धराशाई हो चुकी मोदी-अमित शाह की जोड़ी को इस बार जनता दल(S), बसपा और कांग्रेस के “महागठबंधन” ने पटखनी दे दी।

Mulayam-Kashiram

बहुमत न होने और “महागठबंधन” के पास पूर्ण बहुमत होने के बावजूद भी भाजपा के नेता रहे गवर्नर वाजूभाई वाला ने येदयुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दे डाला। येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाया गया और जनता दल(S), बसपा और कांग्रेस के विधायकों को खरीदने की पूरी कोशिशें हुई, लेकिन इस बार उनकी दाल नहीं गली। इस सारी तोड़-फोड़ की कोशिशों के बीच जब आम जनता के इंटरव्यू किये गए तो बहुत सारे भाजपा समर्थकों ने ही इसकी जमकर निंदा की। किसी भी तरह सत्ता में पहुँचने के लालच को लेकर RSS-BJP की भारी किरकिरी हुई। अपनी हालत पतली देखते हुए भाजपा के मुख्यमंत्री ने इस्तीफा देने में ही भलाई समझी।

मज़बूरी में गवर्नर को कुमारस्वामी को सरकार बनाने का न्योता देना पड़ा। जब उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गयी, तो पुरे देश की लगभग सभी RSS-BJP विरोधी पार्टियां इसमें उमड़ पड़ी। बहन मायावती, अखिलेश यादव, अजित सिंह, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, शरद यादव, ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू, सीताराम येचुरी, जैसे कई बड़े नेता खुद पहुँचे। तेलंगाना के मुख्य मंत्री के.चंद्रशेखर राव और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी अपनी मुबारकबाद भेजी। मायावती कि सोनिया गाँधी के साथ सर-से-सर जोड़ कर मुस्कराते हुए और अखिलेश यादव के साथ लोगों को हाथ उठा कर स्वागत करने की फोटो भी सोशल मीडिया में वायरल हुई। इन्हें देखते ही पूरे RSS-BJP खेमे में सन्नाटा छा गया और उनके चेहरों पर इस बन रहे “महागठबंधन” के कारण हवाईआं उड़ने लगी।

RSS-BJP खेमे की घबराहट का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को खुद प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ी। उन्होंने इस बात को बार-बार दोहराया कि यह सभी पार्टियां तो 2014 में भी हमारे खिलाफ थी और तब भी हम ही जीते। लेकिन सवाल तो यह है कि तब यह पार्टियां आपस में बिखरी हुई थी और अब कर्नाटक के इस चुनाव ने इन सभी को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है। जहां इनके वोटों के बटवारे की वजह से RSS-BJP सिर्फ 30% वोट पाकर भी सत्ता में पहुँच गयी और 70% वोट वाली सभी पार्टियां विपक्ष में चली गई; अगर यह 70% वोट वाले दल “महागठबंधन” बनाते हैं तो फिर सिर्फ 30% वोट वाली RSS-BJP का क्या होगा ?

एक टीवी चैनल ने बताया कि अगर 2019 लोक सभा चुनावों में सपा, बसपा और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में “महागठबंधन” बनाते हैं तो वो 81 में से 61 सीटें जित सकते है और भाजपा 2014 में जीती 73 सीटों से घटकर 19 पर आ सकती है। इसके अलावा और भी कई राज्यों के आकंड़े दिए गए कि अगर यह सभी विपक्षी पार्टियां अपने आपसी मतभेदों को भुला “महागठबंधन” कर ले तो 2019 में RSS-BJP के लिए सरकार बनाना तो बहुत दूर रहा; BJP सबसे बड़ी पार्टी बनने का ख्वाब भी नहीं ले पायेगी।

चुनावों पर रिसर्च करने वाली संस्था CSDS के डायरेक्टर संजय कुमार ने एक चर्चा में कहा कि मोदी-अमित शाह की जोड़ी चाहे जितनी भी प्रभाव रखती हो, अगर विपक्ष एक जुट होता है तो उसके गणित के सामने यह टिक नहीं पाएंगे। उन्होंने बताया कि अगर जनता दल(S), बसपा और कांग्रेस ने चुनाव से पहले “महागठबंधन” कर लिया होता तो वो 150 सीटें जीत सकते थे और भाजपा 70 से भी नीचे खिसक जाती। एक पत्रकार ने बताया कि BJP ने एक ऐसा आतंक का माहौल बना दिया है कि अब इन सभी विपक्षी दलों को इकठ्ठा होना ही होगा नहीं तो इन सबकी सिर्फ चुनावी हार ही नहीं बल्कि सफाया भी हो सकता है।

जब 2015 को हुए बिहार विधान सभा चुनावों में “महागठबंधन” की जीत हुई, तभी लालू प्रसाद यादव ने इसे दूसरे राज्यों में होने वाले चुनावों और फिर राष्ट्रिय स्तर पर दोहराने की कवायद शुरू की। उन्होंने साफ देख लिया था कि किस तरह पहले 1993 में “मिले मुलायम कांशी राम, हवा हो गए जय श्री राम” और फिर 2015 में बिहार चुनावों में इसने RSS-BJP को धूल चटा दी थी। इसी कड़ी में उन्होंने पिछले साल अगस्त में पटना के गाँधी मैदान में ऐतिहासिक “BJP भगाओ, देश बचाओं” रैली भी की। RSS-BJP इतनी घबराई कि उन्होंने न सिर्फ लालू प्रसाद यादव को जेल भिजवाया बल्कि वो बाहर न आ सके, इसका भी पूरा बंदोबस्त किया जा रहा है। इसके बावजूद कर्नाटक में “महागठबंधन” बना और उनका यह वार खाली गया। उनके बेटे तेजस्वी यादव भी “महागठबंधन” को लेकर पूरी तरह सक्रिय हैं।

कर्नाटक के इस ऐतिहासिक चुनावों ने देश को एक बहुत ही सुलझा हुआ राजनीतिज्ञ भी दे दिया, जिसका इससे पहले शायद किसी ने नाम भी नहीं सुना था। जनता दल(S) के महासचिव “दानिश अली” ने चुनावों से पहले बसपा से तालमेल करने और चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस से तालमेल करने में अपनी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने खुद कुमारस्वामी के साथ दिल्ली जाकर पूरे विपक्ष को बंगलुरु में इस ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा बनने का न्योता भी दिया। शपथ समारोह के दौरान भी मंच पर वो उन सभी नेताओं, जिनमें आपसी मतभेद हैं को पास लाने की कोशिशों में दिखे।

इस चुनाव में जहाँ BJP को सिर्फ 36.2 % ही वोट मिले, वहीं कांग्रेस को 38% और जनता दल(S), बसपा गठजोड़ को 18.3%. अगर हम कांग्रेस और जनता दल(S), बसपा के वोटों को जोड़ दे, तो यह आंकड़ा 56.3% हो जाता है और उसके सामने BJP के 36.2 % की क्या हालत होती, यह सबके सामने है।

कर्नाटक के इस ऐतिहासिक चुनाव ने 2019 को सही दिशा दे दी है कि RSS-BJP को पटखनी पूरा विपक्ष एकजुट हो “महागठबंधन” बना कर ही दे सकता है न कि “तीसरा मोर्चा” बना अपने वोटों को बटवा कर।

RSS-BJP मुक्त भारत बनाने की शुरुआत हो चुकी है और जल्द ही यह नारा चारों ओर गूँजने वाला है –

“BJP भगाओ, देश बचाओं”

लेखक – सतविंदर मदारा

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