सचिन वालिया को समर्पित कविता: सचिन की शहादत


Share

सचिन की शहादत

भीड़ की शक्ल में
तुम कायर राजपूतों ने
छिपकर गोलियां चलाई
भीम आर्मी सचिन पर।
तुम बहुत मुग़ालते में हो,
तुम्हें लगा कि हम वीरान हो गए
आसमां से गिरकर समशान हो गए।
सचिन की शहादत इंकलाब लाएगी
सचिन कुर्बान हो गए, और महान हो गए।
लड़ते हुए पहर दर पहर
सचिन जहां में अमर हो गए।

हड्डी हां रीढ़ की हड्डी,
झुक गई हमारी रीढ़ की हड्डी
तुम्हारी गुलामी करते करते
पर देखो हम अभी भी जिंदा हैं।

मगर अफसोस,
तुम न शर्मिंदा थे, न शर्मिंदा हो
अपने पुरखों के हैवानियत पर।
शोषण का वह धूर्त चेहरा
जो इंसानियत को शर्मसार करती है
तुम्हारा इतिहास… तुम्हारा वर्तमान…

हम ही इन महलों के शिल्पकार हैं,
पहरेदार मत समझना,
इस मुल्क के असली वारिस हैं,
किराएदार मत समझना।
हम लड़ेंगे, भिड़ेंगे, मारेंगे, मरेंगे
न्याय के सही अभिप्राय लिए।
रोहित-जुनैद-लंकेश-सचिन…..
शहादत की फेहरिस्त लंबी है
जो इस ब्राह्मणवादी सत्ता को
उखाड़ फेकेंगी, उखाड़ फेकेंगी।

– सूरज कुमार बौद्ध
(रचनाकार युवा बहुजन चिंतक एवं भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)

Read also:  The Half-Blood Prince Is Dead: Religion, Purity, And The Right-Wing Solution

Sponsored Content

Support Velivada

+ There are no comments

Add yours