हरिजन नहीं हरिद्रोही बनो – सूरज कुमार बौद्ध


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अब संतोष नहीं संताप करो,
नवीन इतिहास का परिमाप गढ़ो।
अपने हक हुक़ूक़ हेतु आरोही बनो
विद्रोही बनो ! विद्रोही बनो !
गुलामी की अस्तबल से बाहर निकल
अटल अडिग अश्वरोही बनो।
विद्रोही बनो ! विद्रोही बनो !

वे सर्वोच्चता की ललक में
रक्तपिपासु हो गए हैं
एक एक करके बारी बारी
हमें काट खाए रहे हैं
और हम मासूम तीतर की तरह
अपने कटने का इंतजार कर रहे हैं।
क्या अब भी खामोश रहोगे?
क्या अब भी मदहोश रहोगे?
नहीं अब और नहीं !

हमारी आज की खामोशी
आने वाले नस्लों को
बेबस बेजुबान कर देगी,
जिनके सवालों की कड़ी
हमारा सर झुका देगी कि
इस गुलामी को हमने सहा कैसे?
इतना अपमान देख रहा कैसे?
नहीं था कोई संविधान फिर भी
हमारे पुरखे संघर्षरत रहे,
और हम विरत हैं संघर्ष से,
आज सबकुछ होते हुए भी।

आओ जाति भेद को ध्वस्त कर
निर्भय निर्भीक निर्मोही बनो।
विद्रोही बनो ! विद्रोही बनो !
हरिजन नहीं हरिद्रोही बनो,
विद्रोही बनो ! विद्रोही बनो !

– सूरज कुमार बौद्ध,
(रचनाकार भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव है।)

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