मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्री राम


6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपा को रोकने के लिए बसपा और सपा का गठबंधन हुआ था। 1993 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव दोनों दलों ने एक साथ गठबंधन के तौर पर लड़े। गठबंधन को सफलता मिली और साझा सरकार बनी। तब नारा लगाया जाने लगा था “मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्री राम”। लेकिन कुछ समय बाद ये गठबंधन टूट गया। इससे भाजपा मजबूत स्थिति में पहुंच गई। बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के बीच में दूरियां इतनी बढ़ गई थीं कि ये नदियों के दो पाटों की तरह हो गए थे। जिनका मिलना असंभव था। लेकिन अब मुलायम सिंह का दबदबा नहीं रहा। अब उनके बेटे अखिलेश यादव के पास पार्टी की कमान है। अब जब देश के ज्यादातर राज्यों में भाजपा का शासन कायम हो गया है और इसके भयानक नतीजे सामने आने लगे हैं तो फिर महसूस किया जाने लगा है कि भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए दोबारा फिर से अखिलेश और मायावती के बीच में पहले जैसा गठबंधन हो जाए। आखिरकार इंतजार खत्म हुआ। बसपा प्रमुख मायावती ने रविवार की दोपहर बाद फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को बगैर शर्त समर्थन का ऐलान कर दिया। इसी के साथ यूपी की सियासत में एक नए अध्याय का दौर शुरू होने की संभावना है। उपचुनाव के नतीजे अनुकूल रहे तो वर्ष 2019 के आम चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन देखने को मिल सकता है। सपा को समर्थन का ऐलान करते हुए मायावती ने स्पष्ट कहा कि भाजपा को हराने के लिए गैर सांप्रदायिक दलों का एक मंच पर आना जरूरी है।

लक्ष्य मिशन-2019 में कामयाबी है, लेकिन दोस्ती को परखने के लिए उपचुनाव को जरिया बनाया गया है। बसपा ने शनिवार को ही गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के समर्थन का फैसला कर लिया था, लेकिन अखिलेश से चर्चा के बगैर मायावती ने समर्थन का औपचारिक ऐलान नहीं था। अब सीधा मुकाबला सपा और भाजपा के बीच हो गया है।

गठबंधन की निगाह वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर टिकी है। उपचुनावों में बसपा और सपा के गठबंधन से भाजपा बेचैन हुई है। भाजपा को इकतरफा जीत की उम्मीद थी, लेकिन अब ऐसा होता नजर नहीं आता है।

गौरतलब है कि विधान परिषद सदस्य बनने के बाद केशव प्रसाद मौर्य ने फूलपुर के सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के से गोरखपुर लोकसभा सीट खाली हुई है।

गोरखपुर हिंदू दबदबे वाली सीट है। 1952 में पहली बार गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए चुनाव हुआ और कांग्रेस को जीत मिली। इसके बाद गोरक्षनाथ पीठ के महंत दिग्विजयनाथ ने 1967 में निर्दलीय चुनाव जीता। उसके बाद 1970 में योगी आदित्यनाथ के गुरु अवैद्यनाथ ने निर्दलीय जीत हासिल की। 1989 के बाद से सीट पर साधू मंडली का कब्ज़ा रहा। महंत अवैद्यनाथ 1998 तक सांसद रहे। उनके बाद 1998 से लगातार पांच बार योगी आदित्यनाथ का कब्ज़ा रहा।

गोरखपुर और फूलपुर लोक सभा सीट के लिए मतदान 11 मार्च को होगा। चुनावों के परिणाम की घोषणा 14 मार्च को होगी। सरकार, साधन, पैसा, गुंडागर्दी या ईवीएम में गड़बड़ी के चलते चुनाव का नतीजा कुछ भी हो लेकिन लगता है कि ये चुनाव बड़ा दिलचस्प होगा।

बसपा द्वारा सपा को बगैर शर्त समर्थन से ये गठबंधन भले ही उत्तर प्रदेश में होने की संभावना बनी है लेकिन भाजपा को हराने के लिए ऐसा पूरे देश में हो, ऐसा ज्यादातर लोग चाहते हैं। शायद ऐसा संभव हो जाए।

Author – दर्शन सिंह बाजवा

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2 Comments

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  1. 1
    sumegh khobragade

    dear team,

    why not introduce Periyar’s thoughts and writing also..please introduce him to our people ..Not so many people aware about periyar and his association with Dr.

  2. 2
    DrLaxmi Berwa

    It was a good historical article but what happened now is anathema. Our so called Dalit-Bahujan have been mesmerized by “Hindutava forces and got sucked in to it.As a result they are paying a heavy price and Mulayam and Kansi Ramji are coming to the memories of the people.Akhilesh attenpted to make it a “Yadav Raj” during his tenure and in the end Dlit-Bahujan got sucked in to sweet talk of BJP( Brahaman-Bania Party) and you all know the consequences. Bakt Kabir ji said in Hindi,”Ab pachtawat kya hot hai jab chiria chug gai khet.”

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