अमित शाह……ब जी, अब सोशल मीडिया से इतनी बौखलाहट क्यों
नेताओं की सियासत -बोलो मत, सिर्फ झेलो।
राजनीति भी अजीब होती है। राजनेता तो उससे भी अजीब होते हैं। दरअसल राजनीति एक बिजनेस की तरह है। जैसे बिजनेसमैन कोई भी बात अपने नफे-नुकसान के आधार पर करता है ठीक उसी तरह स्वार्थी राजनेता भी किसी भी हद तक जा सकते हैं सिर्फ अपने नफे नुकसान को ध्यान में रखते हुए। ऐसे ही नफे-नुकसान का खेल गुजरात में खेला जा रहा है क्योंकि अब गुजरात में वोट लेने की बारी आ चुकी है, अब गुजरात में चुनाव आ रहा है, अब गुजरात में ऊना कांड को दबाए जाने की जरूरत आन पड़ी है। अब साहब को सोशल मीडिया से एलर्जी होने लगी हैं। क्या आप जानते हैं की इसकी असली क्या है? इसका असली वजह यह है कि सोशल मीडिया जन मीडिया है, समाज की मीडिया है, लोगों की आवाज है और हुक्मरानों को लोगों के बोलने से बड़ी तकलीफ होती है। शासकों की हकीकत होती है कि वह चाहते हैं कि जनता मत बोले। सिर्फ खेले… सिर्फ झेले।
अब सोशल मीडिया से इतनी परेशानी क्यों?
कितनी हैरत की बात है वह राजनेता जो इसी सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे देश में अपनी बात पहुंचाने की वकालत किया करते थे, वह राजनेता जिसकी पार्टी में देश की सबसे बड़ी IT सेल स्थापित है, वह पार्टी जिसके संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा विज्ञापन में जाता है, वह पार्टी जिसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पूरे चुनाव के दौरान सोशल मीडिया को युवाओं से जुड़ने का माध्यम बताया करते थे, आज उन्हें युवाओं के सोशल मीडिया में दिखाई जा रही है सच्चाई से समस्या होने लगी है। जी हां साथियों मेरा इशारा भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की तरफ है। हाल में अमित शाह जी ने गुजरात में युवाओं को संबोधित करते हुए यह कहा कि युवाओं को सोशल मीडिया पर बीजेपी विरोधी बातों एवं प्रचार प्रसार पर भरोसा नहीं करना चाहिए। शाहजी आगे बढ़ते हुए यह भी कहते हैं कि इस तरह के प्रचार-प्रसार के पीछे कांग्रेस का हाथ है। जब यही सोशल मीडिया जुमलेबाजी में आकर आपका प्रचार प्रसार कर रहा था तब आपको कांग्रेस क्यों दिखाई नहीं दिया जो आज दिखाई दे रहा है। आखिर क्यों अमित शाह….ब जी?
मोदी जी, सोशल मीडिया हमारे ‘मन की बात’ का अड्डा है।
जैसा कि हमने पहले ही बताया कि शासक हमेशा यही चाहता है कि उससे सिर्फ सुनने वाला भीड़ मिले बोलने वाला नहीं। अब मोदी जी को ही देख लीजिए। साहब सिर्फ ‘मन की बात’ करते हैं, केवल अपने मन की बात। किसी के मन की बात सुनते नहीं हैं। क्यों ? क्या मन की बात करने का अधिकार केवल प्रधानमंत्री के पास है? हमें आपके मन की बात से कोई समस्या नहीं है लेकिन आपको हमारे मन की बात से समस्या क्यों है? क्या इसलिए कि हम सवाल करते हैं? साहब इस देश का भिखारी भी भीख मांगने वाले कटोरे पर टैक्स देता है। फिर हम सवाल क्यों न करें ? साहब जी, आप में सवाल करने से नहीं रोक सकते हैं। आपको इस बात पर विचार करना चाहिए कि आखिर वह कौन सा गुजरात विकास मॉडल है जिससे जनता लाचार होकर आपके विरुद्ध अभियान चलाई हुई है।
मतलबपरस्त राजनीति ने राजनीति का स्तर गिरा दिया है।
राजनीति का गिरता हुआ स्तर किस हद तक पहुंच गया है कि चुनाव कोई भी पार्टी जीता बहुमत किसी भी दल का हो लेकिन ईवीएम के माध्यम से कभी भी पूरे जनमत को अपने पक्ष में किया जा सकता है। साम-दाम-दंड-भेद के माध्यम से किसी भी मुख्यमंत्री को हैक किया जा सकता है और मुख्यमंत्री भी इतने भी मतलबपरस्त होते हैं कि तुरंत उस सियासत के पाले में जाकर खीर पनीर खाने लगते हैं जिनके साथ न जाने के लिए मरने मिटने की कसम खाया करते थे। स्वार्थी राजनेताओं ने राजनीति का स्तर एक दम से गिरा दिया है। वह राजनेता जो चुनाव के समय लड़कियों को साइकिल लैपटॉप देने की वकालत किया करते हैं वही अनेकों नेतागण महिलाओं के साथ बलात्कार एवं छेड़खानी जैसे घटनाओं पर महिलाओं को दोषी करार देते हुए उनके रहन सहन एवं कम कपड़े पहनने के अधिकार पर सवाल उठाते हैं। आखिर जनता राजनीति की इस बिज़नेस को कब समझ पाएगी? आखिर नेतागण जनता के दर्द को, जनता के सवाल को कब तक नजरअंदाज करेंगे?
– सूरज कुमार बौद्ध,
( लेखक भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)
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