कौन डरता है कांचा इलैया से #StandWithKanchaIlaiah
कांचा इलैया की इस किताब पर सारा विवाद इसकी हिंदी कॉपी आने के बाद हुआ. इसका पहला मतलब यह है कि नौ साल से इसकी इंग्लिश कॉपी बिक रही है. अमूमन देश भर की लाइब्रेरी में है. लेकिन मूर्खों को कोई दिक्कत नहीं हुई. अब किताब आम जनता तक पहुंच रही है, तो उनको मिर्ची लग गई है.
इस किताब में आखिर ऐसा क्या है?
क्यों लग रही है मिर्ची?
किताब दरअसल भारत के आदिवासी, दलित और पिछड़े समुदायों के श्रम से उपजे ज्ञान का आख्यान है.
पहला चैप्टर बताता है कि किस तरह आदिवासियों ने ज्ञान का सृजन किया.
दूसरा चैप्टर चमार जाति की ज्ञान क्षेत्र में उपलब्धियों को बताता है.
तीसरा चैप्टर महार जाति के ज्ञान सृजन को रेखांकित करता है.
ऐसे ही एक चैप्टर यादव जाति के ज्ञान और अन्य चैप्टर नाई जाति की उपलब्धियों को दर्ज करता है.
कांचा खुद पशुपालक जाति से हैं और मानते हैं कि जो श्रमशील जातियां हैं. वही ज्ञान का सृजन कर सकती हैं. निठल्ले लोग ज्ञान की सृजन नहीं कर सकते.
यह विश्वस्तर पर स्थापित थ्योरी है और कांचा कोई नई बात नहीं कह रहे हैं.
इसलिए आप पाएंगे कि यूरोप में भी ज्यादातर आविष्कार वर्कशॉप और उससे जुड़ी प्रयोगशालाओं में हुए.
भारत में ज्ञान गुरुकुलों में रहा और इसलिए भारत आविष्कारों की दृष्टि से एक बंजर देश है. बिल्कुल सन्नाटा है यहां.
कांचा की किताब के आलोचक यह नहीं बता रहे हैं कि उन्हें मिर्ची किस बात से लग रही हैं. वे बस हाय हाय कर रहे हैं कि बहुत ज्यादा मिर्ची है.
यह सच भी है कि किताब में भरपूर मिर्च है. निठल्ले समुदायों की खाल खींचकर कांचा ने उस खाल को धूप में सुखा दिया है.
दिलीप मंडल जी
It is historical fact that awareness is very much helpful to bring the revolution in the country if injustice is going on in the country ,hence Kanchailliah has been aware the innocents who are suffering since century in the country due to Manuwad ,hence it is possible to come revolution in the country for justice .Hence it is better for Hindu people to abolish all old customs which are harmful for the nation and for certain community due to caste .