गांधीवाद क्या है? डॉ. अंबेडकर ने “गांधीवाद” को कैसे परिभाषित किया
गांधीवाद क्या है? गांधीवाद का सिद्धांत अपने शब्दजाल में समाज की बुराईयों को अच्छाईयों के आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर लोगों को भ्रमित करता है। गांधीवाद ब्राह्मणवाद का एक उदारवादी चेहरा है। यदि साफ शब्दों हम कहें तो गांधीवाद कुछ और नहीं सिर्फ दकियानूसी विचारों का भण्डार है।
डॉ. अंबेडकर ने “गांधीवाद” को काफी अच्छी तरह से तथ्यों के साथ परिभाषित किया है। जिससे साफ-साफ पता चलता है कि गांधी स्वयं वर्णव्यवस्था का पक्का अनुयायी रहे हैं। वो अंतर्जातीय भोज व विवाह के भी प्रबल विरोधी रहे हैं। गांधी यहीं नहीं रुकते वो शूद्रों को अपनी पसंदानुसार व्यवसाय अपनाने की भी स्वतंत्रता प्रदान नहीं करते हैं बल्कि जन्म से ही निर्धारित पेतृक व्यवसाय अपनाने की सलाह देते हैं।
गांधी शूद्रों को तथाकथित पवित्र धर्मग्रंथों के कानून का हवाला देकर सम्पत्ति अर्जित करने से भी रोकते थे। इस तरह के बलपूर्वक निर्धनता थोपने वाले कानून को वो नैतिक बल प्रयोग कह कर सम्पत्ति का परित्याग करने के लिए प्रेरित करते थे। गांधी कहते हैं –
“शूद्र, जो केवल सवर्णों की सेवा करना अपना परम धर्म समझते हैं और जिनकी अपनी कोई सम्पत्ति कभी नहीं होती, जो वास्तव में किसी वस्तु को अपनाने की इच्छा भी नहीं करते अभिनन्दनीय है, देवतागण भी ऐसे पुरुषों पर पुष्प वर्षा किए बिना नहीं रह सकते”
इसी तरह गांधी भंगियों को सफाई कार्य के लिए प्रेरित करते हुए कहते हैं कि –
“भंगी को यह समझना चाहिए कि वो हिन्दू समाज की सफाई कर रहे हैं”
बाबासाहेब गांधी के इन विचारों पर भी जमकर बरसे हैं और उन्होंने कहा है कि –
“गांधी सफाई कार्य को गौरवपूर्ण कार्य बताते हैं परन्तु भंगियों को ही सफाई कार्य करते रहने में ही गर्व की अपील करते यह कहते हुए क्यों करते हैं कि यह सर्वोत्तम कार्य है और इसे करते रहने में किसी प्रकार की लज्जा का अनुभव नहीं करना चाहिए? इस प्रकार गांधीवाद द्वारा यह उपदेश कि सम्पत्ति का मोह त्याग और गरीबी केवल शूद्रों के लिए ही उत्तम है और किसी के लिए नहीं तथा सफाई कार्य केवल अस्पृश्यों के लिए ही अच्छी बात है अन्य लोगों के लिए नहीं। यह उनके जीवन का स्वयंसेवी कार्य बतला कर ऐसा कार्य उनपर थोपना निस्सहाय वर्गों के साथ दुष्टता का तांडव है और इस प्रकार का तांडव गांधी जैसा व्यक्ति ही कर सकता है।
इस संबंध में बाबासाहेब वाल्टेयर के कथन को उद्धृत करते हुए कहते हैं, जिन्होंने गांधीवाद के समान प्रचलित वाद का विरोध करते हुए कहा था – “यह कहना भौंडा मजाक है कि कुछ लोगों की पीड़ा से दूसरों को सुख मिलता है और संसार भर का इसमें कल्याण है। एक मरणासन्न व्यक्ति को इससे क्या सुकून मिल सकता है कि उसके रोगग्रस्त शरीर से हजारों कृमियों व कीड़ों का जन्म होता है”
बाबासाहेब आगे कहते हैं कि गांधीवाद में यह कारीगरी है कि किसी को सताया जाए और उसी से कहा जाए कि यह उसका विशेषाधिकार है। यदि कोई वाद है जो धर्म के नाम पर किसी को झूठे विश्वास से अचेतन कर दे, तो वह गांधीवाद है। शेक्सपीयर के कथन को यदि इस सन्दर्भ में लिया जाए, तो कहना पड़ेगा कि मक्कारी और धोखाधड़ी का नाम “गांधीवाद” है।
गांधीवाद में कौनसी ऐसी बातें हैं, जो रूढ़िवादी हिन्दू धर्म में न पाई जाती हों। हिन्दू धर्म में जातियां है, गांधीवाद में भी जातियां हैं। हिन्दू धर्म पैतृक व्यवसाय ग्रहण करने के कानून में विश्वास करता है और गांधीवाद भी। हिन्दू धर्म गौपूजा का आदेश देता है और गांधीवाद भी। हिन्दू धर्म, कर्म फल को, जन्म के पूर्व ही मनुष्य के भाग्य निर्धारित होना मानता है, गांधीवाद भी। हिन्दू धर्म शास्त्रों को प्रमाण मानता है और गांधीवाद भी। हिन्दू धर्म अवतारवाद में विश्वास करता है और गांधीवाद भी। हिन्दू धर्म मूर्तिपूजा में विश्वास करता है और गांधीवाद भी। गांधी ने जो कुछ भी किया वह अब हिन्दू धर्म का शास्त्रीय और सैद्धांतिक औचित्य सिद्ध करने के लिए किया। हिन्दू धर्म का नवीन संस्करण प्रस्तुत करके गांधीवाद ने हिन्दू धर्म की बड़ी सेवा की है। हिन्दू धर्म अपने पुराने रूप में अनपढ धर्म था, जिसमें कठोर और निर्दयी विधानों के कोंण बने थे। गांधीवाद ने हिन्दू धर्म की नग्नता को दार्शनिकता देकर ढक दिया।
– डॉ. अंबेडकर, व्हाट कांग्रेस एंड गांधी हेव डन टू अनटचेबल्स, चैप्टर – 11, गांधीज्म : द डूम ऑफ द अनटचेबल्स
Author – Satyendra Singh
यदि कोई वाद है जो धर्म के नाम पर किसी को झूठे विश्वास से अचेतन कर दे, तो वह गांधीवाद है। शेक्सपीयर के कथन को यदि इस सन्दर्भ में लिया जाए, तो कहना पड़ेगा कि मक्कारी और धोखाधड़ी का नाम “गांधीवाद” है।