मीडिया के बगैर यह काम संभव ही नहीं। 


21वी सदी के इस डिजिटल युग में अगर हम अपने महापुरुषों के सपनों को पूरा करना चाहते हैं, तो यह काम बगैर एक मज़बूत मीडिया तैयार किये कभी भी संभव नहीं हो पायेगा। किसी समय तक लोकतंत्र के तीन स्तम्भ माने जाते थे, न्यायपालिका(अदालते), कार्यपालिका(अफसरशाही) और विधायिका(विधान सभा और लोक सभा), लेकिन आज हम सबको पता है कि “मीडिया” इसके चौथे स्तम्भ के रूप में स्थापित हो चूका है। अगर यह कहा जाये कि मीडिया इन बाकि तीनों स्तम्भों से भी कही ज़्यादा असरदार और मज़बूत हो चूका है, तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिये। लेकिन बड़े ही अफ़सोस के साथ कहना पड़ता हैं कि भारत की 85% आबादी वाले OBC, SC और ST वाले मूलनिवासी बहुजन समाज के पास, आज भी कोई अंतर्राष्ट्रीय तो दूर रहा, बल्कि कोई राष्ट्रिय स्तर का भी मीडिया नहीं है। दूसरी तरफ अगर हम 15% वाले ब्राह्मणवादी समाज के मीडिया की तरफ देखे, तो उसकी तरक्की कि कोई सीमा ही नहीं है। सैकड़ों TV चैनलों, अख़बारों, पत्रिकाओं और सोशल मीडिया के ज़रिये वो पूरी तरह से इस क्षेत्र में छा चुका है और किसी भी मुद्दे को वो इसे जैसा चाहे तोड़-मरोड़ कर पेश करता है। कुछ ही गिने चुने एक ही समाज के लोग, पुरे भारत के हर मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष में बहस कर उसका फैसला कर डालते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। हमारा भोलाभाला ST, SC और OBC का समाज, उसी को सच मानकर अपना विचार बना लेता है, जैसे की उस बहस में हर एक पहलु को ईमानदारी से रखा गया हो।

 

भारत में ग़ैर-बराबरी कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था को हटाकर, एक मानवतावादी व्यवस्था लाने के लिये संघर्ष करने वाले हमारे महापुरुषों ने इस काम को करने के लिये मीडिया कि ज़रूरत को समझा और इस पर बहुत ज़ोर दिया। उस समय उनके पास बहुत थोड़े साधन होते हुए भी वो इसमें कभी पीछे नहीं रहे और जितनी उनकी ताक़त थी, उससे भी कहीं आगे जाकर उन्होंने इसे बढ़ाया। लेकिन आज के हालात बिलकुल उसके उलट हैं क्योंकि जहां एक ओर आर्थिक तौर पर OBC, SC और ST कि काफी तरक्की हुई है, खासकर OBC और SC की, लेकिन इसके बावजूद भी हम मीडिया में आगे बढ़ना तो दूर रहा, बल्कि आज के समय के हिसाब से जितना हमें आगे होना चाहिये था, उससे भी हम कहीं पीछे चले गये हैं। देश में सामाजिक क्रांति का बिगुल बजाने वाले महात्मा जोतीराव फुले ने 1875 में ही अपना अख़बार “दीन बंधू”(गरीबों का भाई) के नाम से शुरू कर दिया था, जबकि उस समय ब्राह्मणवादी लोगों के भी अख़बार नहीं थे और कुछ सालों बाद ही वो अपने कुछ अख़बार शुरू कर पाए थे। इसी तरह पेरियार ई.वी.रामास्वामी नायकर ने भी तमिल भाषा में “कुदी अरासु”(गणतंत्र), “विदुथलाई”(आज़ादी), “अनमाई”(सत्य) और अंग्रेज़ी में “Modern Rationalist”(आधुनिक तर्कवादी) पत्रिकायें चलाई। बाबासाहब अम्बेडकर ने भी 1920 में “मूकनायक”, 1927 में “बहिष्कृत भारत”, 1930 में “जनता” और 1955 में “प्रबुद्ध भारत” के नाम से अख़बार चलायें। अंत में साहब कांशी राम ने भी परिवर्तन कि इस लहर को आगे बढ़ाने में मीडिया की ज़रूरत को समझा और 1979 में “Oppressed Indian”(दबा हुआ भारतीय) शुरू करने के बाद “बहुजन संघठक”, “बहुजन नायक”, “बहुजन संदेश” आदि नाम से अनेकों राष्ट्रिय और क्षेत्रीय अख़बार चलाये।

 

लेकिन साहब कांशी राम के वक़्त तक मीडिया, अख़बारों और पत्रिकाओं से आगे बढ़कर; TV चैनलों और एक इलेक्ट्रॉनिक युग में प्रवेश कर चूका था और अपने आखरी दिनों में उन्होंने इस बात पर बहुत ज़ोर दिया कि अगर हमें इस देश में परिवर्तन लाना है, तो हमारा मीडिया ब्राह्मणवादी समाज के मीडिया के बराबर का होना चाहिये। 2 अप्रैल, 1997 को नागपुर में “बहुजन नायक” के 17 साल पुरे होने के कार्यक्रम में उन्होंने अपने भाषण में मीडिया से जुड़े हुए पहलुओं पर बहुत विस्तार से अपने विचार रखे और सबको इस क्षेत्र में बहुजन समाज के पिछड़ने के बारे में गहरी चिंता जताई। उन्होंने बाबासाहब अम्बेडकर के बारे में भी बताया कि उनके साथ काम करने वाले साथियों ने उन्हें बताया था कि वो भी अपने आखरी दिनों में मीडिया में ज़्यादा आगे न बढ़ पाने को लेकर बहुत दुखी थे और महसूस करते थे की हमें मीडिया को बहुत ज़्यादा मज़बूत करने की ज़रूरत है। साहब कांशी राम ने इस भाषण में साफ़ कहा कि “मीडिया सब कुछ तो नहीं है, लेकिन आज के ज़माने में बहुत कुछ है” और अगर हमे दिल्ली के लैवल(स्तर) की मूवमेंट बनानी है, तो देश की सभी भाषाओं में हमारे डेली(रोज़ाना) अख़बार और TV चैनल होने चाहिये, तभी हम उस मंज़िल तक पहुँच सकेंगे। उन्होंने इस बात का भी ज़िक्र किया कि जब मीडिया वाले उनसे बात करते हैं तो वो हमेशा इस बात को देखकर दुखी होते हैं कि वो सब तो ब्राह्मणवादी मीडिया के लोग हैं, लेकिन बहुजन का मीडिया कही भी नज़र नहीं आता है। उनका यह मशहूर वाक्य कि “भारत के लोकतंत्र के लिये सबसे बड़ा खतरा बने हुए हैं यह तीन ‘M’, Money, Media और Mafia” इस बात को दर्शाता है कि उनकी नज़रों में मीडिया की कितनी अहमियत थी।

 

जब उन्होंने 1979 में अपना पहला मीडिया “Oppressed Indian” के नाम से शुरू किया, जोकि एक मासिक पत्रिका थी; तो उसमे अपने एक सम्पादकीय लेख में उन्होंने मीडिया के विषय पर बहुत ही विस्तार से लिखा, जिसके कुछ अंश मैं यहां “दि ऑप्प्रेस्सड इण्डियन, मान्यवर कांशी राम साहब के सम्पादकीय लेख” के पेज नंबर 28 से दे रहां हूँ।

 

“हमारी बहुत महत्वपूर्ण और तत्काल ज़रूरत है कि हम अपनी समाचार सेवा शुरू करे। जाने-अनजाने में समझी गयी इस ज़रूरत के आधार पर बहुत से लोग छोटे स्तर पर प्रयास शुरू कर देते हैं, लेकिन ज़रूरत इतनी बड़ी है कि छोटे स्तर पर कोशिष करने का कोई फ़ायदा नहीं होगा। यह उसी तरह होगा कि एक भूख से तड़प रहे आदमी को रोटी का एक टुकड़ा दे दिया जाये। तो एक पत्रिका यहां, एक छोटा पत्र वहां कुछ कर नहीं पायेगा, जब सारे देश के कोने-कोने में एक नेटवर्क के माध्यम से समान रूप से अपनी समाचार सेवा को फैलाया जाये। इसके अलावा समाचार सेवा केवल रिपोर्ट रखने या जानकारी तक सीमित न हो, इसको रचनात्मक तथा खोजी पत्रकारिता बनाना होगा। बाबासाहब अम्बेडकर ने इस आवश्यकता को 50 वर्ष पहले ही समझ लिया था और इस बड़े पैमाने वाली बड़ी आवश्यकता को  पूरा करने के लिए गुजरे समय में नवंबर 1931 में ही लोगों से बड़े पैमाने पर सहयोग का आह्वान किया था। लेकिन उस समय साधन बहुत सीमित थे; आज ज़रूरत वहीं की वहीं है, लेकिन साधन कई गुना बढ़ चुके हैं। साहब कांशी राम ”

 

उनके इन विचारों से हम देख सकते हैं कि मीडिया के क्षेत्र में हमारा समाज, उनके समय में भी कितना पीछे था और कितने बड़े पैमाने पर देश में OBC, SC और ST का अपना मीडिया होने की ज़रूरत थी। साथ ही छोटे-छोटे स्तर पर शुरू किये जाने की बजाये, एकजुट होकर एक राष्ट्रिय स्तर का मीडिया बनाने की ज़रूरत को भी उन्होंने ज़ाहिर किया, जोकि ब्राह्मणवादी मीडिया का मुहतोड़ जवाब दे सके और अपने महापुरुषों की विचारधारा को सही तरीके से अपने पुरे समाज तक पहुंचा सके। इसी कमी को पूरा करने के लिये साहब कांशी राम ने अपने आखरी दिनों में नोएडा, उत्तर प्रदेश में ज़मीन लेकर एक बहुत बड़ा मीडिया शुरू करने की कोशिष भी की; जिसमे भारत की कई भाषाओं में रोज़ाना अख़बार और कई टीवी चैनलों को शुरू करने का उन्होंने प्लान बनाया था।  लेकिन अफ़सोस की 2003 में उनके बीमार पड़ जाने के बाद वो भी अधूरा ही रह गया और मीडिया के क्षेत्र में बहुजनों की एक मज़बूत उपस्थिति बनते-बनते रह गयी। इसके अलावा उनका साप्ताहिक “बहुजन संघठक” जो दिल्ली से प्रकाशित होकर पुरे देश में पहुँचता था और जिसने लाखों बहुजनों को अपने महापुरुषों की विचारधारा से जोड़ा, वो भी उनके बीमार पड़ते ही बंद हो गया।

 

आज एक ओर तो बहुत ख़ुशी की बात है की OBC, SC और ST के लोग, अपने महापुरषों के बारे में जानने लगे है और उन्होंने उनसे जुड़े हुए महत्वपूर्ण दिनों को एक उत्सव की तरह मनाना शुरू किया है और भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बहुत से कार्यक्रम किये जाते हैं। लेकिन वहीं यह बहुत दुःख की बात है कि जहां वे करोड़ो-अरबों रुपये इन पर खरचते हैं, वहीं अपना राष्ट्रिय और अंतर्राष्टीय स्तर का मीडिया बनाने की दिशा में उन्होंने कोई ज़्यादा ध्यान नहीं दिया । मीडिया के क्षेत्र में काम करने वाले कुछ साथियों से बात करने पर पता चला कि आज OBC, SC और ST समाज में इतने पत्रकार हैं कि अगर हमारा समाज एक करोड़ रुपैया भी इकठ्ठा कर ले और उन्हें सहयोग करे, तो वो एक 24 घंटे का अव्वल दर्जे का न्यूज़ चैनल शुरू कर सकने की क्षमता रखते हैं जो पुरे देश ही नहीं बल्कि दुनिया में बहुजनों की आवाज़ बनकर उभर सकता है। भारत के जाने माने पत्रकार “उर्मिलेश” से जब पूछा गया कि आखिर इस देश में मूलनिवासी बहुजन समाज का अपना मीडिया क्यों नहीं है ? तो उन्होंने साफ़ लफ़्ज़ों में कहा कि भारत में आज OBC, SC और ST के बहुत से लोग हैं जो आर्थिक तौर पर काफी तरक्की कर चुके हैं और कई राज्यों में तो इनके नेतृत्व में सरकारें तक बन चुकी हैं, लेकिन यह हैरान कर देने वाली बात है कि इसके बावजूद भी ऐसे लोगों ने मीडिया कि अहमियत को नहीं समझा और अपना एक मीडिया तैयार करने कि कोशिश नहीं कि।

 

आज अगर हम मीडिया की तरफ ध्यान से देखे तो पता चलेगा कि जिन TV चैनलों, अख़बारों या और दूसरे मीडिया संस्थानों को हम मुख्य धारा का मीडिया समझते हैं, उसे चलाने वाले ज़्यादातर लोग न सिर्फ ब्राह्मण-बनिया समाज से हैं, बल्कि वो RSS के कार्यकर्ता रह चुके हैं और लगभग सभी ने अपने विद्यार्थी जीवन में RSS की शाखाओं में भाग लिया है। हमारा भोला-भाला मूलनिवासी बहुजन समाज उनके ऊपर दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों और ख़बरों को यह समझकर देखता और पढ़ता है कि यह तो मीडिया के लोग हैं और इनका किसी राजनीतिक पार्टी या संघठन से कोई वास्ता नहीं होगा। इसी का फ़ायदा उठाकर उनके द्वारा पुरे देश की आँखों में लगातार धूल झोंकने का काम किया जाता है। उनके इस धोके का सबसे ज़्यादा शिकार, हमारे समाज की महिलायें और बच्चे होते हैं, जिन्हें इस ब्राह्मणवादी साजिश की रत्ती भर भी खबर नहीं होती और जाने-अनजाने में उनके विचारों को ब्राह्मणवादी बना दिया जाता है और उन्हें पता भी नहीं चलता। इस बात से हम सब वाकिफ़ हैं कि एक बार बचपन में ही जिस विचारधारा का प्रभाव किसी के ऊपर पड़ जाये, तो वो फिर उसे पूरी उम्र अपने से अलग नहीं कर पाता चाहे वो विचारधारा उसके समाज के खिलाफ ही क्यों न हो।

 

आज के इन गंभीर हालातों में जब बाबासाहब आंबेडकर द्वारा बनाये गये मानवतावादी संविधान पर RSS की तरफ से चौतरफा हमले हो रहे हैं और पुरे देश में ब्राह्मणवाद को क़ानूनी तौर पर लागु करने की साजिशे रची जा रही हैं; पुरे मूलनिवासी बहुजन समाज(OBC, SC और ST) को एक साथ मिलकर एक राष्ट्रिय स्तर का मीडिया बनाना हो होगा, अगर हम फुले-शाहू-अम्बेडकर की विचारधारा के आधार पर एक नया समाज बनाना चाहते हैं। आज न हमारे समाज के पास पैसे की कमी है न मीडिया के क्षेत्र में काम करने वाले बहुजन समाज के अनुभवी और मिशनरी पत्रकारों की, अगर कमी है तो वो हमारे समाज की इस ओर ध्यान देने की है। अगर हमनें अब भी इस ओर ध्यान नहीं दिया तो हमारे समाज का भविष्य अंधकारमय होगा, इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिये।

 

दुनिया के महान क्रन्तिकारी नेताओं में गिने जाने वाले अफ्रीकी मुल के अमरीकन नेता, Malcolm X(19/05/1925 – 21/021965) का यह कथन कि “मीडिया दुनिया की सबसे ताक़तवर चीज़ है और वो बेगुनाह को कसूरवार और कसूरवार को बेगुनाह बना सकती है क्योंकि वो लोगों के दिमाग पर नियंत्रण करती है”, आज भी पूरी तरह से एक हक़ीक़त बना हुआ है।

 

सतविंदर कुमार मदारा

 

स्रोत

1.मान्यवर कांशी राम साहब के संपादकीय लेख, संपादक: ए.आर.अकेला।

2.Saheb Kanshi Ram, Channel, YouTube.

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