आरएसएस-बीजेपी की पंचसूत्री राजनीति
आरएसएस-बीजेपी की पंचसूत्री राजनीति
- आर्थिक, राजनीतिक, बौद्धिक और न्यायिक क्षेत्र में, हर संस्थाओं में ब्राह्मणों का बोलबाला कायम करना है. अंतिम लक्ष्य यही है.
- बाकी सवर्णों को बताना कि इसी में आपका हित है, वरना SC, ST, OBC,, मुसलमान आपका सब ले लेंगे. काबू में कतई नहीं रहेंगे. बराबरी में आ गए तो आखिर में आपकी बेटी भी इनके साथ भाग जाएगी.
- SC, ST, OBC को बताना कि मुसलमानों से बचने का यही तरीका है कि ब्राह्मणों का नेतृत्व स्वीकार करो. यह नहीं बताना कि मुसलमानों ने उनका हक किस क्षेत्र में छीन लिया है. माहौल में इतना तनाव रखना है कि इस पर चर्चा न हो सके. इसलिए हमेशा सांप्रदायिक मुद्दों को अपनी मीडिया के जरिए चर्चा में रखना.
- उत्तर भारत में गैर जाटव दलितों को बताना कि तुम्हारा हक सवर्णों और ब्राह्मणों ने नहीं, जाटवों ने हड़प लिया है. लेकिन हकमारी का कोई आंकड़ा पेशन न करना, क्योंकि इससे पता चल जाएगा कि सारे उच्च पदों पर तो ब्राह्मण और दूसरे सवर्ण बैठे हैं. जाटव तो कहीं हैं ही नहीं.
- उत्तर भारत में पिछड़ों के एक हिस्से को समझाना कि तुम्हारा हक ब्राह्मणों और सवर्णों ने नहीं, यादवों, कुर्मियों और कुशवाहा ने हड़प लिया है. लेकिन हकमारी का कोई आंकड़ा पेशन न करना, क्योंकि इससे पता चल जाएगा कि सारे उच्च पदों पर तो ब्राह्मण और बाकी सवर्ण बैठे हैं. यादव, कुर्मी, कुशवाहा तो कहीं हैं ही नहीं.
इस पंचसूत्री कार्यक्रम से मैं मोदी सरकार की हर राजनीति को समझ पा रहा हूं.
भारत में इस समय…
उच्च न्यायपालिका, कॉरपोरेट बोर्ड रूम, बड़े बिजनेस हाउस, टॉप ब्यूरोक्रेसी, मीडिया में निर्णय लेने वाले पद, मी़डिया में बोलने वाले विश्लेषक, धर्म संस्थाएं, विश्वविद्यालयों में कुलपति और प्रोफेसर, कला-संस्कृति संस्थान, विज्ञान और शोध संस्थान, खेल प्रतिष्ठान, जांच एजेंसियों, PSU, बैंकिंग और वित्त संस्थाओं, नीति आयोग….
सभी जगह ब्राह्मणों के नेतृत्व में सवर्ण पुरुषों का लगभग पूर्ण नियंत्रण है.
कई जगह यह नियंत्रण 100% तक है. 80% नियंत्रण एक सामान्य स्थिति है.
अब अगर देश विकास नहीं करता है, तो इसका जिम्मेदार कोई SC, ST, OBC या माइनॉरिटी नहीं है. लगभग 90% जनता चूंकि इन संस्थाओं के संचालन और नीति निर्माण में शामिल ही नहीं है, तो उस पर जवाबदेही भी नहीं आती.
अब देश को 135वें नंबर से उठाकर दिखाओ, या इन संस्थाओं को छोड़ो. मान लो कि तुमसे नहीं हो पाएगा.
मुसलमानों से संघ को सिर्फ इतना लेना देना है कि हिंदू धर्म के अंदर ब्राह्मण वर्चस्व को कायम रखने के लिए मुसलमान उपयोगी हैं. उनका डर दिखाकर नीचे की जातियों को गोलबंद किया जाता है. वरना ब्राह्मणों ने लगभग हजार साल के मुस्लिम राज में मुसलमान शासकों का कब विरोध किया? वे तो हमेशा दरबार में रहे. नवरत्न बने रहे. सवर्ण शासकों का तो मुसलमान शासकों से विवाह का रिश्ता रहा है.
कुछ और है, तो आप बताएं.
लेखक – दिलीप मंडल, फेसबुक पोस्ट से
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