बौद्ध, अंबेडकर, गौतम, भीमपुत्र/भीमपुत्री जैसे सरनेम साहस की बात है – सूरज कुमार बौद्ध
सुबह सुबह उठकर जैसे ही WhatsApp खोला तो देखा कि तभी एक साथी ने मैसेज किया हुआ था कि वह लोग जो अपने नाम के साथ बौद्ध, गौतम, अंबेडकर, भीम पुत्र एवं भीमपुत्री जैसे सरनेम लगाते हैं वह ब्राह्मणवादी व्यवस्था से जकड़े हुए हैं। उस साथी ने आशंका जाहिर करते हुए यह भी कहा कि आने वाले दिनों में सवर्ण भी अपने नाम के साथ अंबेडकर सरनेम लगाने लगेंगे। लेकिन हद तो तब हो गई जब आवेशित मुद्रा में लिखते हुए वह यह भी लिखते जाते हैं कि “यह बाबा साहेब का अपमान है। किसी की इतनी औकात नहीं कि वह बाबासाहब अंबेडकर अथवा गौतम बुद्ध का सरनेम अपने नाम के साथ लगाए।” एक बात गौरतलब है कि साहब के नाम के साथ खुद ही “गौतम” सरनेम लगा हुआ है। एक बार के लिए मैं सोचा कि मैं उनके इस दृष्टिकोण को नजरअंदाज करूं लेकिन फिर मैंने दूसरे पक्ष पर विचार किया तो मुझे लगा कि अगर हम किसी वैचारिक लाचारगी से भरे सिद्धांतों का जवाब नहीं देते हैं तो उसका प्रचार प्रसार होने लगता है और धीरे-धीरे अफवाह के रूप में ही सही लेकिन एक सवाल खड़ा होने लगता है। लिहाजा उनके सवाल और आरोप का जवाब देना मैं वाजिब समझता हूं।
बात औकात की नहीं आदर की है
आपने कहा कि किसी की क्या औकात कि वह बाबासाहेब अंबेडकर का नाम अपने नाम के साथ जोड़े। आप गलती कर रहे हो साहेब क्योंकि बात औकात की नहीं बल्कि बात अनुयायी होने की है और आदर होने की है। हर बेटे का फर्ज होता है कि वह अपने बाप की विचारधारा को माने। अगर बेटा बाप के नाम को अपने सरनेम के साथ जोड़ता है वह औकात की वजह से नहीं है बल्कि आदर और सम्मान की वजह से जोड़ता है। एक बात गौरतलब है कि साहब अपने नाम के साथ खुद ही “गौतम” सरनेम लगाए हुए हैं। अजीब बात है कि लोग लाइक्स बटोरने के लिए कुछ भी लिखते रहते हैं।
बौद्ध, अंबेडकर… को जाति से न जोड़ें
आपने कहा कि अंबेडकर कोई जाति है क्या जिसे सरनेम लगाया जाता है। साहब सरनेम किसी जाति का पूरक नहीं होता है। सरनेम को जाति से न जोड़ें। सरनेम लगाने से जाति की उत्पत्ति न तो हुई है और न ही सरनेम हटा देने से जातिवाद समाप्त हो जाएगा। हमारी लड़ाई जातिवाद से है न कि सरनेम लगाने और हटाने-हटवाने वाली मानसिकता से। असली लड़ाई तो उस मानसिक बीमारी के खिलाफ है जो “पूरा नाम बताओ” के पीछे छिपी हुई है। आपने कहा कि आप गलत के विरोधी हैं। यह बहुत अच्छी बात है और मैं आपके इस सोच के आगे नतमस्तक हूँ। साहब, गलत चीज का विरोधी जरूर बनें लेकिन अपने अंदर समाए हुए गलत विचारधारा और संकुचित मानसिकता को निकालकर विरोधी बनें अन्यथा आप विरोधी बनने से पहले खुद ही गलत हैं।
कपोल कल्पित दूरदर्शिता त्याग दें।
मुझे आपकी दूरदृष्टि पर तरस आता है कि आपने लिखा कि कल सवर्ण भी अपने नाम के साथ अंबेडकर लिखेंगे। इस तरह की कपोल कल्पना आप कैसे कर सकते हैं । इस देश का बहुत बड़ा हिस्सा अपने नाम के साथ पासी, गौतम, जाटव, यादव, मौर्या…. आदि लगाता है तो क्या सवर्ण भी अपने नाम के साथ इस तरह के सरनेम लगाने लगे? वैसे भी अंबेडकर और भीम किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं बल्कि एक विचारधारा का नाम है। जय भीम एक विचारधारा का है जो हर तरह के जुल्म, ज्यादती, शोषण- उत्पीड़न को खत्म कर स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारे पर आधारित समतामूलक समाज बनाने की ओर अग्रसर है। आप इसे जाति से जोड़कर कैसे देख सकते हैं? बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की लड़ाई को आप खुद ही एक जाति विशेष की लड़ाई से जोड़ रहे हैं जो की गलत है।
साहसिक कदम का सदैव स्वागत
वैसे अगर कोई SC ST OBC समाज का बंदा अपने नाम के साथ बौद्ध जोड़ता है, अंबेडकर जोड़ता है, भीम पुत्र जोड़ता है, भीमपुत्री जोड़ती है तो यह बेहद गर्व की बात है क्योंकि उसके अंदर हौसला है ऐसा करने की। यह हौसला एक भीमपुत्र, एक अंबेडकरवादी तथा एक सामाजिक न्याय के पुरोधा के अंदर ही हो सकता है। बैठ कर तमाशा देखने वाले कायरों के अंदर नहीं। और एक बार पुनः आपसे निवेदन कर रहा हूं कि आप अपने नाम के साथ अंबेडकर, बौद्ध, गौतम या कुछ और जोड़ने वालों को उनकी औकात से मत देखें। उनकी अपनी बेमिशाल औकात है इसीलिए वह अपने नाम के साथ अंबेडकर जोड़ रहे हैं।
खैर आप के अंदाज में बुरा लगा हो तो माफी। बाकी मैं बाबा साहेब अम्बेडकर के अनुयायियों के विषय में फैलाए जा रहे वैचारिक लाचारगी से ग्रस्त गलतियों का विरोध करता हूँ। गलत लोगों के गलत सोच का जवाब देना जरूरी समझता हूँ।
सूरज कुमार बौद्ध,
राष्ट्रीय महासचिव
भारतीय मूलनिवासी संगठन
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