आतंकवाद का हौव्वा बनाकर यूपीकोका लाने की फिराक में भाजपा सरकार – रिहाई मंच


लखनऊ 28 जुलाई 2017। रिहाई मंच ने कानपुर के मो0 आतिफ और आसिफ की गिरफ्तारी के बाद सुरक्षा एजेंसियों द्वारा कराए जा रहे मीडिया ट्रायल पर सख्त आप्त्ती दर्ज की है। मंच ने आरोप लगाया है कि सरकार द्वारा मकोका की तर्ज पर यूपीकोका लाने का माहौल बनाने के लिए ही आईएस के नाम पर मुस्लिम युवकों को पकड़ने और मीडिया ट्रायल के बहाने बहुसंख्यक हिंदुओं को डराने का नाटक सुरक्षा एजेंसियांे से कराया जा रहा है।

कानपुर से आसिफ और आतिफ की गिरफ्तारी के बाद एनआईए और एटीएस के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब उनके द्वारा 7 मार्च के बाद से ही लगातार पूछताछ की जा रही थी तब मुम्बई में बैठे उनके कथित आकाआंे के बारे में या रामलीला मैदान में मोदी के कार्यक्रम में इनकी विस्फोट की योजना बनाने, विस्फोट करने की बातें अब तक क्यों नहीं सामने लाई गई थीं। क्या इसकी वजह सिर्फ ये है कि जब जांच एजेंसियां उन पर गवाह बन जाने का दबाव डालने में सफल नहीं हो पाईं तो अब उन्हें आरोपी बनाने के लिए झूठी कहानियां मीडिया में प्रसारित करवा रही हैं।

गिरफ्तारियों पर एटीएस और एनआईए के अन्र्तविरोधी बयानों पर स्पष्टीकरण दें अधिकारी

रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि कभी एटीएस और एनआईए के हवाले से कहा जा रहा है कि लखनऊ रामलीला मैदान में जब मोदी आए थे तो इनकी ब्लास्ट की योजना थी, तो कभी ब्लास्ट का रिहर्सल करने की बात कही जा रही है तो वहीं अब यह भी कहा जा रहा है कि कम इंटेनसिटी का बम होने की वजह से विस्फोट का पता नहीं चला था। जब कि सच्चाई तो यह है कि मोदी के रामलीला कार्यक्रम के बाद कहीं भी किसी बम के पाए जाने या उसके फटने की कोई झूठी खबर भी या किसी पुलिस अधिकारी का बयान भी नहीं आया था।

मंच ने आरोप लगाया कि एटीएस और एनआईए के अधिकारी अभी तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि 9 महीने पुरानी मोदी की रैली में काल्पनिक बम विस्फोट की कहानी मीडिया में किस तरह बेचनी है। बम फोड़ने के लिए षडयंत्र रचने की कहानी बतानी है या उसे ‘फोड़वा’ ही देना है। यह कहते हुए कि बम इतना कमजोर था कि उसकी आवाज ही किसी ने नहीं सुनी ताकि मुसलमानों के खिलाफ बनाई गई आतंकी छवि को सच मानने वाली आम भीड़ कथित विस्फोट की आवाज सुने बिना भी इसे सच मान ले। मंच नेता ने कहा कि जांच एजेंसियों का यह मजाकिया और गैरपेशेवराना हरकत उनके साथ ही आतंकवाद जैसी गम्भीर समस्या को भी मजाक में तब्दील कर रहा है।

Read also:  Climate Change and Caste

शाहनवाज आलम ने कहा कि सैफुल्ला फर्जी एनकाउंटर के बाद से ही एजंेसियां इस मामले पर उठ रहे सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई हैं और इसीलिए इसे जायज ठहराने के लिए सैफुल्ला के परिचितों को आतंकी साजिश में शामिल बताने की कहानी गढ़ रही हैं। एनआईए और एटीएस में अभी भी आम सहमति नहीं दिख रही है कि वे सैफुल्ला के परिचितों को किस मामले में फंसाएं। इसीलिए जहां कुछ अधिकारियों के जरिए मीडिया के एक हिस्से में यह कहानी फैलाई जा रही है कि ये लोग मोदी की लखनऊ में रामलीला मैदान रैली में विस्फोट करने का षडयंत्र रचने में शामिल थे तो वहीं कुछ अधिकारियों ने यह अफवाह फैलवाई है कि पकड़े गए मोहम्मद आतिफ और आसिफ कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को हथियार सप्लाई करने में शामिल हैं। किसी को भी फंसाने से पहले एजेंसियां आपस में तय कर लें कि इन्हें किस मामले में फंसाना है क्योंकि ऐसा नहीं करने पर वो खुद अपने लिए हास्यास्पद स्थिति पैदा कर ले रही हैं जैसा कि इस मामले में हुआ है।

यूपीकोका साबित होगा मुसलमानों के दमन के लिए भाजपा का नया हथियार, विपक्ष करे अपनी स्थिति स्पष्ट

उन्होंने कहा कि सैफुल्ला मामले में यह हास्यास्पद स्थिति शुरू से ही रही है। मसलन, ठीक विधानसभा चुनाव के एक दिन पहले 7 मार्च को लखनऊ में हुए सैफुल्ला फर्जी मुठभेड़ जिसे दिन में ही मार दिया गया था की रात 3 बजे के करीब मुठभेड़ में मारने के दावे के साथ एटीएस अधिकारी असीम अरुण ने कहा था कि वह आईएसआईएस का है और सोशल मीडिया में बरामदगी के नाम पर आईएस का झंडा और असलहे का फोटो वायरल किया गया था। वहीं शाम को एटीएस एडीजी कानून व्यवस्था दलजीत चैधरी ने कहा था कि इन लड़कों का आईएस से कोई संबन्ध नहीं है।

ठीक इसी तरह बिजनौर से दो युवकों समेत महाराष्ट्र, पंजाब और बिहार से 9 लोगों के उठाए जाने के बाद एटीएस आईजी असीम अरुण ने इन गिरफ्तारियों को 7 मार्च को लखनऊ में हुए सैफुल्लाह फर्जी मुठभेड़ से जुड़ा हुआ बताया तो वहीं आईजी लोक शिकायत विजय सिंह मीणा ने असीम अरूण के उलट इन गिरफ्तारियों का लखनऊ में सैफुल्लाह या उसके गैंग से संबन्ध न होने का बयान दिया था। वहीं सैफुल्लाह मुठभेड़ पर जब ये सवाल उठा कि उसके पास घातक हथियार नहीं थे तो क्यों मार दिया गया तब असीम अरुण ने इसे पुलिस से हुई चूक बताया था। सैफुल्लाह फर्जी मुठभेड़ के वक्त भी मीडिया के जरिए असीम अरूण ने दावा किया था कि वह आईएस का खतरनाक आतंकी है जिसके पास से हथियारों, विस्फोटकों और आतंकी साहित्य का जखीरा बरामद हुआ है।

Read also:  Bangladesh Quota and Indian Quota - A Comparison

लेकिन इस जघन्य हत्या के दूसरे ही दिन असीम अरूण के दावों की पोल खुद पुलिस ने यह कहकर खोल दी थी कि सैफुल्ला के किसी भी आतंकी संगठन से जुड़े होने के कोई सुबूत नहीं मिले हैं। लेकिन लगातार मीडिया में सुरक्षा एजेंसियां आईएस का नाम ले रही हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने कहा कि कि सोशल साइड्स के जरिए ये लड़के रेडिकलाइज हो गए हैं यानी किसी संगठन से सीधे जुड़ने की बात नहीं है। इन अंतरविरोधों से साफ जाहिर होता है कि बिना किसी  बार-बार आईएस और खुरासान ग्रुप का आतंकी कहकर समाज में एक डर-भय पैदा करने और एक समुदाय को बदनाम करने का अभियान चलाया जा रहा है।

मंच प्रवक्ता ने कहा कि विधासभा चुनाव के ठीक एक दिन पहले राजधानी में हुए सैफुल्ला फर्जी मुठभेड़ पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं कि गुजरात की तरह यहां भी भाजपा को राजनीतिक लाभ देने के लिए सुरक्षा एजेंसियों के जरिए आतंकवाद के नाम पर राजनीति की जा रही है। आतिफ और आसिफ की गिरफ्तारी को अक्टूबर में रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री मोदी के आने पर हुए कार्यक्रम में कथित आतंकी वारदात से जोड़ा जा रहा है।

अगर प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के दौरान वहां विस्फोट या विस्फोटक होने की बात की जा रही हो तो यह सुरक्षा में भारी चूक है और उससे भी बड़ा सवाल यह है कि इसे 9 महीने बाद क्यों प्रसारित करवाया जा रहा है। मंच नेता ने कहा कि पिछले दिनों जिस तरह से विधानसभा में पीईटीएन नाम के किसी विस्फोटक के मिलने के नाम पर हंगामा हुआ जिसपर कभी कहा गया कि जांच एनआईए करेगी तो कभी आगरा लैब से रिपोर्ट लाने की बात की गई या फिर अब हैदराबाद से उस पदार्थ पर रिपोर्ट के आने का इंतजार किया जा रहा है वह साबित करता है कि प्रदेश की सुरक्षा के प्रति सरकार अगम्भीर ही नहीं है बल्कि सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों की गैरजिम्मेदारी और राजनीतिक इस्तेमाल से विधानसभा सत्र में मूलभूत सवालों को सरकार पीछे कर गई। जिस पर  विपक्षी दलों के विधायकों तक ने सवाल उठा दिया।

द्वारा जारी-

शाहनवाज आलम

प्रवक्ता रिहाई मंच

Sponsored Content

+ There are no comments

Add yours