साल 1981 में साहब कांशीराम ने स्वतंत्रता दिवस के 34वें वर्ष को फूलन देवी वर्ष के रूप में मनाया था
मान्यवर कांशीराम साहब ने 1981 में 34 वें स्वतंत्रता दिवस को फूलन देवी वर्ष मनाया था. बहुजन स्वतंत्रता आंदोलन उन्होनें गढ़ने की शुरूआत की. बिहार के सवर्णों के लिये कथित डकैत सुरेश पासी का आत्मसमर्पण कराकर चुनावी राजनीति में लाये. वह समय था कि सवर्ण दबंग थे. राजनीतिक सत्ता उनके पास थी. वे बहुजन समाज के विद्रोहियों को असानी से डकैत और अपराधी में नामित कर लेते थे. कांशीराम इन्हें स्वतंत्रता सेनानी कहते थे.
उनके इस राजनीति को मनुवादियों ने राजनीति का अपराधीकरण का नाम दिया. कांशीराम साहब इनके आरोपो से बेपरवाह अपना काम करते रहे.
सोचिये स्वतंत्रता सेनानी कैसे होते है. ठीक फूलन देवी जैसे, न कि कान से लेकर बदन पर जनेऊ बांधे धर्मान्ध मंगल पांडेय जैसा.
साल 1981 में साहब कांशीराम ने स्वतंत्रता दिवस के ३४ लें वर्ष को फूलन देवी वर्ष के रूप में मनाया था. बसपा १९८४ में बनी. उसके पहले डी एस ४ के बैनर तले फूलन देवी को पहली बार चुनावी राजनीति में उतारने वाले कांशीराम थे.
बिडबंना यह है कि कांशीराम ने जिस आंदोलन की शुरूआत कि उसको समाजवादियों ने गलत तरीके से इंटरप्रेट किया और चुनाव का सचमुच अपराधी करण कर दिया.
यह तो एक तथ्य है. दूसरा तथ्य यह भी है कि पूरा गूगल छान मारिये कांशीराम के साथ फूलन देवी का एक भी फोटो नहीं मिलेगा. वहीं पासवान, वीपी सिंह, मुलायम सिंह, लालू के साथ फूलन देवी का फोटो मिल जायेगा. कहने का तात्पर्य यह है कि जिस दर्शन को कांशीराम गढ़ रहे थे, उसका फल ये लोग फोटो खिंचवाकर खा रहे थे.
ठीक उसी तरह जैसे मीडिया से लालू को पता चला कि बसपा का नारा तिलक, तराजू और तलवार, इनके मारो जूते चार है, तो लालू दो कदम बढ़कर नारा लगाये कि भूराबाल साफ करो. दोनों नारों के निहितार्थ में जमीन -आसमान का फर्क है. फिर भी लालू जैसे स्लोगन मोंगर्स बहुजन आंदोलन को एप्रोप्रिएट कर रहे थे.
वैसे ही जैसे मोदी अपने को नीच जाति, नीच जाति कहकर २०१४ में प्रधानमंत्री बन गये.
लिख दिया ताकि सनद रहे कि आंदोलन कौन कर रहा है, उसका क्रीम कौन खा रहा है!
जाहिर है सिस्टम का चमचा.
लेखक – चाँद कुमार मनीष
वही दिलीप मंडल लिखते है –
वक़्त भी कहाँ-कहाँ से गुज़र गया!
मान्यवर कांशीराम ने फूलन देवी के नाम पर एक पूरे साल का नाम रखा था। वहीं, नेताजी ने फूलन को संसद भेजा और परिवार की सदस्य की तरह उनकी अर्थी को कंधा दिया।
एकता के वे सूत्र बिखर चुके हैं। दोष किसका है, इसकी अलग-अलग व्याख्याएँ हो सकती है।
लेकिन इस बीच सत्ता लुटेरों के हाथ में जा चुकी है।
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Bahut achi jankari h mne google par sub search kiya likin nhi mili jankari so thanks