चाइनीज सामान के बहिष्कार के पीछे छिपी हुई तुच्छ राजनीतिक मंशा
चीनी सामान का बहिष्कार करो, चीनी झालर का बहिष्कार करो, मिट्टी वाले दिया जलाओ, स्वदेशी अपनाओ विदेशी भगाओ आदि। पिछले कुछ सालों से इस तरह की राजनीति खूब चमकाई जा रही है। जैसे दीपावली आती है तो कुछ चीनी झालर का विरोध करने लगेंगे, होली के आते ही चीनी रंगों का विरोध करने लगेंगे, रक्षाबंधन के अवसर पर चीनी रक्षा बन्धन का विरोध करने लगेंगे। कभी कभार थोड़ी राष्ट्रभक्ति ज्यादा उमड़ पड़ी तो बच्चों के खेलने के लिए बनी चाइनीज टेडी बियर का विरोध करने लगेंगे। यह भारत के अनेक बड़ी बड़ी कंपनियों की साजिश है। वह यह बात समझने में असफल रहे हैं कि शोषक शोषक होता है चाहे वह देशी कंपनियां हो या विदेशी। दोनों ही स्थितियों में सच्चाई यह है कि गरीब मजदूर आम अवाम का शोषण हुआ। इनका असली मकसद देश की जनता को इस तरह की संवेदनात्मक मुद्दों में फंसाए रखें। जैसे ही आप बेरोजगारी पर बात करेंगे तो ये भारत ‘माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ के नाम पर राजनीति करना शुरु कर देंगे। जैसे ही आप गरीबी पर बात करेंगे तो ये राम मंदिर के नाम पर राजनीति चमकाने शुरू कर देंगे। जब आप सरकार से सीमा सुरक्षा और सैनिकों की सुरक्षा पर सवाल करेंगे तो स्वघोषित राष्ट्रभक्त लोग 20 रुपए वाले चाइनीज झालर का विरोध करना शुरू कर देते हैं। इस तरह से जनता का ध्यान असली मुद्दों से बहुत ही आसानी से हटा दिया जाता है। मीडिया भी मुनाफाखोरी के लालच में इस तरह के दिखावे की राजनीति को खूब हवा देती है। राष्ट्रभक्ति अच्छी बात है लेकिन राष्ट्रभक्ति के नाम पर राष्ट्र को गुमराह करना एक साजिश का हिस्सा है। हमें इस तरह की साजिश से सतर्क रहना चाहिए।
चीन का भारत में बढ़ता हुआ निवेश
इस चकाचौंध भरे बाजार में अगर देश की बहुसंख्य जनता सस्ते सामान को प्राथमिकता न दे तो वह समाज से अलग-थलग पड़ जाएगा। भारत भी जब विदेश से कोई सामान आयात करता है तो जिस देश से उसे कम दाम पर अधिक गुणवत्तापरक सामान मिलता है वह उसी देश से आयात करता है। इस तरह से असली जिम्मेदारी सरकार की बनती है। अगर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आधार माना जाए तो चीन दिन-ब-दिन भारत का प्रमुख निवेशक देश बनकर उभरा हुआ है। भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में चीन वर्ष 2011 के 35वें स्थान और 2014 के 28वें स्थान से ऊंची छलांग लगाते हुए दिसंबर 2016में 17वें स्थान पर आ गया है। अप्रैल से दिसंबर 2014 के बीच जिन्होंने भारत में 0.453 बिलियन डॉलर निवेश किया था जोकि दिसंबर 2017 में बढ़कर 1.61 बिलियन डॉलर हो गई है। गौरतलब है कि चीन द्वारा भारत में निवेश उसके कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मात्र 0.5% हिस्सा है। 1,500 करोड़ रुपए की लागत से बनाई जा रही भारत की पहली नागपुर मेट्रो रोलिंग स्टॉक मैनुफैक्चरिंग यूनिट का निर्माण चीनी कंपनी चाइनीज रेलवे स्टॉक कॉर्पोरेशन के साथ एमओयू साइन किया है।(16 अक्टूबर2016 जनसत्ता) स्टेचू ऑफ यूनिटी के निर्माण के लिए 3000 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट का ठेका लार्सनएंड टूब्रो (एलएंडटी) नामक विदेशी कंपनी को दिया गया है। मूर्ति के विभिन्न हिस्सो का निर्माण चीन में होगा।(20 अक्टूबर 2015 जनसत्ता) ऑटोमोबाइल और स्मार्टफोन के क्षेत्र में भी चाइनीस कंपनियों का बोलबाला है। लेनेवो, श्योमी, अप्पो, वीवो, हायर, जिओनी आदि। इन कंपनियों के गुणवत्ता ने यह सिद्ध कर दिया है कि चाइना के ऊपर लगाया जा रहा कटाक्ष “लोकल चाइनीज माल” पूर्णतः बेदम है। नोटबंदी के दौरान जब सरकार के इस निरंकुश फैसले ने डेढ़ सौ से अधिक लोगों की जान ले ली थी उस वक्त भारत को बड़ी तादाद में पॉइंट ऑफ सेल मशीन के लिए चीन के भरोसे ही टिकना पड़ा था। यहां तक कि भारत सरकार ने आयात शुल्क हटा दिया था। तब सस्ते सामानों का बहिष्कार करने वाले कहां थे?
जनता बॉर्डर क्रॉस करके चीन नही जाती है
आम जनता को बोला जाता है चीनी सामान का बहिष्कार करो लेकिन कोई ये बताएगा की ये सामान देश में ला कौन रहा है? असली सवाल पर चोट कब मारा जाएग। हम भारतीय तो बॉर्डर क्रॉस करके चीनी सामान खरीदने चीन नही जाते हैं। अगर सच में चीनी सामान का विरोध करना है तो असली जड़ चीनी निवेश का विरोध करना चाहिए क्योंकि पत्ते तोड़ने से पेड़ नहीं सूखते हैं। क्या चीनी निवेश का बहिष्कार भारत सरकार कर सकती है? क्या चाइनीज चिप्स और नूडल्स का विरोध करने वाले चीनी निवेश का बहिष्कार करने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरेंगे?
सच्चाई छुपाई जा सकती है पर छुप नहीं सकती
उपभोक्ता तो विवेकशील होता है। प्रत्येक उपभोक्ता कम दाम पर अधिक संतुष्टि प्राप्त करना चाहता है। उसे जो सामान जहां सस्ता मिलता है वह खरीदता है। भारत की बहुसंख्यक जनता वैसे ही आर्थिक कंगाली में जी रही है। ऐसे में सरकार और मीडिया का यह फर्ज बनता है कि वह देश को गुमराह करने के बजाए भारतीय सीमा और सैनिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करे। चीन के साथ भारत का व्यापार भारत के पक्ष में नहीं है तो इसे भारत अपने द्विपक्षीय स्तर पर बातचीत करके व्यापारिक संतुलन को स्थापित करे। देश की प्रमुख समस्या जातिवाद, पाखंडवाद, गरीबी, बेरोजगारी, महिला उत्पीड़न को खत्म करने पर ध्यान दे। देशभक्ति के आड़ में जनता को गुमराह करने का खेल ज्यादा दिन नहीं चलेगा क्योंकि सच्चाई छुपाई जा सकती है पर छुप नहीं सकती।
द्वारा – सूरज कुमार बौद्ध
(रचनाकार भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)
Jay Bhim Jay Mulnivasi….Very true…but
You are correct & saying the right thing of above matter. this is understood by everyone by our Bahujan.
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Very true