क्रांति की रुख का आह्वान करती हुई सामाजिक क्रांतिकारी चिंतक सूरज कुमार बौद्ध की कविता: हम बढ़ते चलेंगे
अगर मानव अधिकारों के उल्लंघन को एक आधार मानकर देखा जाए तो भारत की पहचान एक जातीय हिंसा और उत्पीड़नकारी देश के रुप में की जाती है। यहां प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक, पंचायत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक हर जगह जातिवाद समाहित है। यह जातिवाद का दंश ही है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के अनेकों एकलव्यों की मौत यहां के ब्राह्मणवादी द्रोणाचार्यों के जातिवादी रवैए की वजह से हुई है। ऐसे में द्रोणाचार्यों के जातिवादी मानसिकता को नकार कर आगे की लड़ाई लड़ने की जरूरत है। बहुजन समाज के योद्धाओं! अगर अब नहीं लड़े तो आने वाली नस्लें धिक्कारेंगी हम पर। अपने आप को अकेला मत समझो। हम तुम्हारे साथ हैं। कलम तुम्हारे साथ है। दूषित मानसिकता उत्पीड़न और लांछन को झेल रहे साथियों के.
हताश चेतना को अपने क्रांतिकारी शब्दों से क्रांति की रुख का आह्वान करती हुई सामाजिक क्रांतिकारी चिंतक
*हम बढ़ते चलेंगे*
तुम कदम तो बढ़ाओ हम बढ़ते चलेंगे।
गिरते ही सही संभालते ही सही
लड़ते ही सही लड़खड़ाते ही सही
लेकिन कभी भी रुकेंगे नहीं,
मिशन का कारवां हमारे हाथ है
लिहाजा कभी भी झुकेंगे नहीं।
लाख मुश्किल गर आए हम लड़ते चलेंगे,
तुम कदम तो बढ़ाओ हम बढ़ते चलेंगे…
चलो माना कि बहुत मुश्किल डगर है,
हम क्रांतिकारियों को किसका डर है?
वोट तक सिमट गयी हम मज़लूमों की जिंदगी,
और कब तक करोगे उनके सामने बन्दगी?
अगर पोगा पंडितों का खून है उनमें,
मत भूलना उधम सिंह का जुनून है मुझमें।
अंबेडकर या गोलवलकर दो विचारधारा है,
तुम किसे चुनोगे फैसला तुम्हारा है।
अब समानता की बात सबको मान लेना चाहिए,
‘भीम युग’ के आहट को पहचान लेना चाहिए।
सब को शिक्षित, संगठित कर हम संघर्ष करेंगे।
तुम कदम तो बढ़ाओ हम चढ़ते चलेंगे।।
द्वारा- सूरज कुमार बौद्ध,
रचनाकार भारतीय मूलनिवासी सं
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