फर्जी गौरक्षकों की पोल खोलती यह कविता – गौरक्षक या नरभक्षक?
आज देश में गौ रक्षा के नाम पर गुंडागर्दी इस तरह से बढ़ चुकी है की अब आम नागरिक अब गाय के खरीद फरोख्त से भी डरता है। गाय के नाम पर आए दिन मजलूमों और मुसलमानों की हत्या की जा रही है। गाय खाना पाप है तो क्या इंसान का खून पीना पुण्य का काम है? अख़लाक़, ऊना, पहलु खान, जैसलमेर. जैसे अनेकों घटनाएं भारतीय संविधान को शर्मसार करते हैं। गौरक्षकों के इंसान विरोधी आतंक के इस मर्म को टटोलते हुए पढ़िए रूह को झकझोर देने वाली सामाजिक चिंतक सूरज कुमार बौद्ध
गौरक्षक या नरभक्षक?
क्यों बेजुबान गाय से राजनीति संवारते हो साहब?
त्रिशूल तलवार उठाकर काटते मारते हो साहब?
यह कैसी राजनीति है, कैसी दिलचस्पी !
खून चूसकर दिखाते हो स्वयंभू देशभक्ति?
मुझे गाय सहित सभी जानवरों से चाहत है,
तू ही इसे मजहबी रंग दिया करता नाहक है।
गौ रक्षक बनते-बनते नरभक्षक बन गए हो,
किस अधिकार से धर्म के संरक्षक बन गए हो?
तुम्ही गौमांस के सबसे बड़े दुकानदार हो,
तुम्हीं नस्लीय आतंकवाद के खुले ठेकेदार हो।
क्या अख़लाक़ के खून से पेट नहीं भरा,
जो ऊना में निहत्थों का खून चूसने चल दिए?
क्या पहलू खान की खून से प्यास न बुझी
जो रामगढ़ में नरभक्षक बनने चल दिए?
हमारे निजी जीवन में कोई अधिकार न जताए।
हम क्या खाएं क्या पहने, भक्त गंवार न सिखाए।
कौन कहता है कि तुम्हें गाय से मोहब्बत है?
कह दो तुम्हें मजलूमों-मुसलमानों से नफरत है।
जब तक गाय दूध दे पंडित जी पियें दूध,
गाय मरते ही बुलवाए सूरज कुमार बौद्ध।
तुम्हारी इस दोगली नीति को क्या कहा जाय,
पशु को राष्ट्रीय पशु या गौ-माता कहा जाए?
द्वारा – सूरज कुमार बौद्ध
(रचनाकार भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं)
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