बहुजनों एक हो जाओ क्योंकि अगला नंबर तुम्हारा है


हबीब जालिब साहब कहते हैं –

शेर से डरते हैं, शायरी से डरते हैं,
कम-नजर रोशनी से डरते हैं!

जी हां साथियों, अंबेडकरवाद की चोट ब्राहमणवाद पर दिन-ब-दिन तमांचे पर तमाचा मार रहा है। बहुजनों के “बोल कि लब आजाद हैं तेरे” से इनकी ब्राह्मणशाही सत्ता खतरे में नजर आने लगी है। यही वजह है कि बौखलाए मनुवादी सत्ताखोरों ने पहले नेशनल जनमत, फिर नेशनल दस्तक और अब बहुजन नायक दिलीप सी मंडल के फेसबुक अकाउंट को बंद कर दिया गया। अकेले बहुजनों पर ही हमला क्यों? क्या बहुजन समाज सामाजिक आंदोलन पर उतर आया है?

अगर हां तो बहुजनों के सामाजिक आंदोलनों पर इतनी पाबन्दी क्यों? फेसबुक टीम को इस बात का अंदाजा तो होगा ही कि सोशल मीडिया पर असली पहुंच बहुजनों की ही है। हम Facebook को आगाह कर देना चाहता हैं कि वह बहुजनों के खिलाफ की जा रही इस साजिश का हिस्सा न बने। वरना जिस दिन बहुजनों ने फेसबुक का इस्तेमाल करने पर हड़ताल कर दिया उस दिन पूरी दुनिया से फेसबुक की सल्तनत हिल जाएगी।

दरअसल यह एक बहुत बड़े साजिश का हिस्सा है। वो बारी बारी से सबको रोकेंगे। अगर रोकने में नाकामयाब रहे तो हिंसा पर उतर आएंगे। इस तरह की पाबंदियां तो आपातकाल में लगाई जाती है या फिर लोक शांति भंग हो जाने की आशंका पर लगाई जाती है। क्या फेसबुक इंडिया के अधिकारियों को बहुजनों की वकालत करने वाली विचारधाराओं से लोक शांति भंग होने का खतरा है ?

यह फेसबुक इंडिया की मनुवादी चरित्र नहीं तो और क्या है जबकि भोजपुरी फिल्म के महिला उत्पीड़न सीन को बंगाल में मुसलमानों द्वारा किए जा रहे अत्याचार बताकर हिंसात्मक जन-आमंत्रण करने वालों के खिलाफ फेसबुक इंडिया के अधिकारियों द्वारा कोई कार्यवाही नहीं होती है। मीडिया में जहर उगलने वालों का फेसबुक अकाउंट बंद नहीं किया जाता है। फेसबुक सोशल साइट पर ऐसे हजारों अकाउंट हैं जोकि महिलाओं के प्रति अश्लीलता का प्रचार प्रसार करते हैं, फेसबुक इंडिया उन अकाउंटों को बंद नहीं करता। तो फिर इसका मतलब क्या समझा जाए, क्या असली समस्या बहुजनों से ही है ?

असल में गुनाह उनकी आक्रमकता का नहीं है बल्कि गुनाह हमारे चुप्पी की है। जब तक हमारे ऊपर हमला नहीं होता हम सोचते हैं कि यह पड़ोसी का मामला है। अगर X पर हमला होगा तो Y चुप रहेगा क्योंकि उसे लगता है की Y तो सुरक्षित है। इसी तरह से जब Y पर हमला होगा तो Z चुप रहेगा क्योंकि उसे लगता है वह सुरक्षित है। यह सिलसिला इसी तरह से चलता रहता है।। इस संदर्भ में सामाजिक चिंतक सोबरन कबीर यादव जी की एक कविता मेरे जेहन को छूती है

“पहले वो यादवों को मारने आए..
मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं यादव नहीं था
फिर वो जाटवों को मारने आए..
मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं जाटव नहीं था”

अब तक खुद मेरे कुल छः फेसबुक अकाउंट को बंद कर दिया गया है। आए दिन सोशल मीडिया पर यह शिकायत देखने को मिलती है कि बहुजनों के फसबूक अकाउंट को बंद कर दिया जा रहा है। फेसबुक टीम को इस बात की खबर होनी चाहिए कि वह हमारी आवाज को नहीं रोक सकती है क्योंकि हमारी संख्या करोड़ों में है जो करीब-करीब एक अरब का आंकड़ा हो चुका है। ‘तुम कितने अकाउंट बंद करोगे, हर घर से अंबेडकर निकलेंगे।’

देश और दुनिया के सभी प्रगतिशील चिंतकों, बुद्धिजीवियों और समाज सुधारकों से मेरी अपील है कि वह सब एक साथ खड़े हों क्योंकि यह सवाल केवल नेशनल जनमत, नेशनल दस्तक, दिलीप सी मंडल, सूरज कुमार बौद्ध या फिर अन्य विशेष का नहीं है बल्कि सवाल संवैधानिक लोकतंत्र को बहाल करने की है, सवाल अभिव्यक्ति की आजादी को बरकरार रखने की है। अगर आप यह सोचते हैं कि आप सुरक्षित हैं तो यह आपकी भूल है क्योंकि अगला नंम्बर तेरा है!

Suraj Kumarद्वारा- सूरज कुमार बौद्ध
(राष्ट्रीय महासचिव, भारतीय मूलनिवासी संगठन)

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