दलित, बहादुर, जज कर्नन और भ्रष्टाचार
विधानसभा मे बैठ कर पोर्न देखना पाप नहीं है, अपराध नहीं है. यह किया जा सकता है. नेता सब कानूनों से ऊपर हैं इस देश में. जवान को समझना चाहिए था की ड्यूटी पर मोबाइल नहीं रखना होता है, और रखना भी है तो बिना दाल वाली दाल और उच्च कोटि के अतिस्वादिष्ट खाने का वीडियो तो नहीं ही बनाना था. ये मामला खाना बनाने की विधि को भी लीक करता है जो की सेना की गुप्त जानकारी हो भी हो सकती है और शायद दुश्मन इसका फायदा भी उठा सकता है.
तो इस तरह यह बहादुर तेज बहादुर यादव द्वारा किया गया जघन्य अपराध है. परिणामस्वरूप उनको घर भेज दिया गया. बहादुर तेज बहादुर साहब ने पूरा वीडियो सेना के बडे अधिकारियों के भ्रष्टाचार को दिखाने के लिए बनाया था. पर बहादुर तेज बहादुर साहब को समझना चाहिए की भ्रष्टाचार से पीएम लड रहे हैं छप्पन इंच की छाती लेकर, बहादुर साहब ने तो सिर्फ आतंकियों से ही तो लड़ना है, करना क्या है गन सरकार ने दी ही है उठानी है और चलानी है बस.
जवान माइनस तापमान में रहे या झुलसा देने वाले तापमान में दाल तो बिना दाल ही खानी पड़ेगी. लाला रामदेव भी बोलते हैं पतली दाल खाने से हाजमा ठीक रहता है. सैनिक बन्धूओं धन्यभागी हो के पानी से ही नहीं खानी पड रही है चपाती. दिक्कत क्या है तुम्हारे हिस्से की रसद सामग्री बेच कर साहब लोग अगर चार पैसे कमा लेते हैं, क्या हुआ जो तुम को भूके पेट सोना पड रहा है.
यही देश हित है, बोलोगे तो देशद्रोही कहलाओगे, पाकिस्तान का वीजा मिलेगा सो अलग. हाँ शहीद होते हो तब ही माना जाएगा की देश भक्त हो. उसके लिए जान देनी पड़ती है उसके लिए गन उठानी पड़ेगी तो चलो गश्त पर न जाने कौन सी गोली तुम्हारा इंतजार कर रही है.यानी छूट गया पीछा घटिया खाने से और यहाँ तो हाईकोर्ट जज की ही हालत खराब है तो सैनिक की तो सुने ही कौन.
कुछ ऐसा ही कलकत्ता हाईकोर्ट वाले दलित जज कर्नन साहब ने कर दिया. बोले पीएम से की सीजेआई समेत सात जज भ्रष्ट हैं कार्यवाही करो. सीजेआई ने उन से सारे अधिकार छीन लिए और जमानती वारंट भी निकाल दिया जज कर्नन के नाम का. फिर कर्नन साहब ने उन सातों जजो के विदेश जाने पर रोक लगा दी. बात बढती जा रही है नौबत कर्नन साहब की मानसिक जांच तक आ गई है.
यही तो होगा जब कोई दलित मनुवादियों से पंगा लेगा. बहादुर तेज बहादुर हों या जज साहब दोनो ही ने व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार को हटाने की बात की है. पर मिला क्या ? जांच इन ही के खिलाफ चल रही है. घर भी ये ही बैठे हैं.
सीजेआई पर तो वैसे औरों ने भी उंगली उठाई है, कहते हैं की उनके सुपुत्र ने फैसला करवाने की एवज में पैसा लिया है. पर यह चलता है इस देश में. बडा अधिकारी पैसा खाए चलता है, पर एक बाबू बीस रुपये की रिश्वत में नप जाता है. पर चलता है. कर्नन साहब सच बोलते हैं तो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हो जाती है, जज को पकड़ने के लिए पुलिस कई गाड़ियाँ लेकर पहुंच जाती हैं जैसे वीरप्पन को पकड़ने निकले हैं.
भ्रष्टाचार की शिकायत करना गुनाह-ए-अजीम है इस देश में. और आप को बता दूं की हाइकोर्ट के जज साहब पर महाभियोग ही चल सकता है और वह संसद का काम है और राज्यसभा में प्रस्ताव गिर जाएगा. उसके बाद जज कर्नन फिर से अपने काम से जुड जाएंगे और यही सीजेआई और बाकी का मनुवादी तंत्र नहीं चाहता इसलिए सीजेआई साहब ने कानून को कुचलना ही ठीक समझा क्योंकि अगर कर्नन साहब की बात मान ली जाए तो अच्छे अच्छो की जो है पतलून उतरने में टाइम न लगेगा.
पर ये सब नहीं चलने वाला, छोटा जज बडे जज को भ्रष्ट कहे तो पेल दिये जाएंगे. लड़ाई ऐतिहासिक है हर बार की तरह. जिगर शेर का चाहिए ऐसी लड़ाई लड़ने के लिए. जज साहब को पागल करार देने की योजना चल रही है, फिर आगे? ये मनुवादी पूरी ताकत से दलित जज को दबाएंगे और क्या. कर्नन साहब के साहस की प्रशंसा से ही काम नहीं चलने वाला उन्हे साथ की जरुरत है और वो बहुत थोडे ही लोग कर रहे हैं. ज्यादातर सुप्रीम कोर्ट से जुड़ा मामला देख दूर भाग रहे हैं उन से की कहीं माननीय सुप्रीम कोर्ट के गुस्से का शिकार वे खुद न हो जाएं. कोई खुल के नहीं कहता की वो जज कर्नन साहब के साथ है. उनकी मानसिक हालत पर सवाल करना क्या दलितों का अपमान नही? है तो उठते क्यों नहीं ?
हमारा छात्र स्कूल मे परेशान, कर्मचारी और अधिकारी ऑफ़िस में और जज कोर्ट में, क्यों? सोचो, पूछो खुद से?
लेखक – दीपक वर्मा
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