क्यों ना बदली जाए ब्रह्मिणो दवारा प्रचलित विवाह प्रक्रिया?
विवाह का सीजन चल रहा है ,पर किसी आम हिन्दू से पूछा जाये की विवाह में क्या होता है तो उस को सबसे पहले याद आएगा विवाह में ब्राह्मण महाराज का विवाहिक मन्त्र पढना , वर-वधू का रात भर पंडित जी द्वारा उठक-बैठक , अग्नि के चक्कर लगाना, बीच -बीच में पंडित जी का चढ़ावे के लिए कहना, संस्कृत में जोर जोर से मंत्रो (?) को बोलना जिसको वंहा उपस्थित लोगो को समझ न आने के कारण उबासिया लेना या आपस में ही बाते करना। उन्हें कोई मतलब नहीं होता की पंडित जी क्या श्लोक-मन्त्र पढ़ रहे हैं, उन्हें तो बस इसका इन्तेजार रहता है की कब पंडित जी अपना कार्यकर्म ख़त्म करे, पर किसी को गरज नहीं रहती की ये पता करे की आखिर पंडित क्या बोल रहे हैं। विवाह जैसे पवित्र बंधन जिसमें दो मनुष्य जिन्दगी भर एक दुसरे के साथ बंधने जा रहे होते हैं फिर भी पंडित जी की बातो को आंख बंद कर के मानते रहते हैं, बिना ये जाने की पंडित जी आखिर मन्त्र कौन सा पढ़ रहे हैं और चढ़ावा क्यों चढवा रहे हैं?
पेश है इन्ही विवाहों में पढ़े जाने वाले कुछ मन्त्र और उनके अर्थ, ताकि आपको भी पता चले की इन मंत्रो का वर-वधु के वास्तविक जीवन में क्या महत्व होता है?
1- विवाह संस्कार के प्रथम चरण में पंडित जी “स्वस्ति न इंद्रो वर्द्धश्रवा: स्वस्तिन: पूषा विशवेदा: स्वस्ति नस्ताक्षायोअरिष्टनेमि: स्वस्तिनो बृहस्पतिदर्धतु”
उच्चारण करते हुए वरवधू तथा कन्या के माता पिता द्वारा इंद्र की पूजा करवाते है और चढ़ावा चढाने शास्त्रों के अनुसार इंद्र का चरित्र कुछ ठीक नहीं रहा है , तो फिर विवाह जैसे पवित्र बंधन में ऐसे देवता की स्तुति क्यों?
2- इसके बाद पंडित जी फिर कहते हैं “सुमुखशच एकदंतशच कपिलो गजकर्णक:,लम्बोदरश्च विकटो विघ्नाशो विनायक: धूम्रकेतु गर्णाअध्यक्षों भालचन्द्रो गजानन: द्वदशा एतानि नामानी य: पठते श्रंगयाद्पी, विद्याराम्भे विवाह च प्रवेशे निगमे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते”
यंहा पंडित गणेश के 12 पर्याय वाची नाम गिनवाते हैं और हर नाम पर कुछ न कुछ दक्षिणा रखवाते है।
पंडित जी कहते हैं की गणेश जी के बारह नाम लेने से सभी संकट मिट जाते है और विपत्ति पास नहीं आती, पर क्या सच में ऐसा होता है?
3- पंडित जी मन्त्र बोलते हैं “ऊं अपिवत्रा पवित्रो वा सर्वोवस्थ गतोsपि वा , य: स्मरेत पुण्डरीकक्षं स: ब्रह्मंभ्यन्त्र: शुचि:”
ये श्लोक कहता हुआ पानी की कुछ बुँदे छिड़क कर वर-वधु/यजमान को पवित्र हो गए ऐसा बोलते है और फिर चढ़ावा और फिर चढ़ावे के लिए प्रेरित करते हैं । अब सोचने की बात है की यदि पानी की कुछ बूंदों से पवित्रता कैसे आ सकती है?
4- नवग्रह पूजने के नाम पर पंडित जी विज्ञानं के सिद्धांत को भी नकार देते हैं, लकड़ी के फट्टे पर या किसी और समतल वास्तु पर नौ खाने बना कर प्रत्येक में चावल, टिल, दाले तथा अन्य सामग्री रख कर श्लोक पढता है ” ब्रह्मा , मुरारी, त्रिपुरांतकारी भानु; शशी; भूमि सुतोबुधास्च्य, गुरुशच ,शुक्र, रहू, केतव: सर्वे ग्रहा शांति करा भवन्तु ” बोल कर सभी ग्रहों को शांत करने का दावा करते है।
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पर पूछने की बात है की ब्रह्मा, विष्णु, महेश का ग्रहों से क्या सम्बन्ध?
सूर्य एक तारा है गृह नहीं, चंद्रमा प्रथ्वी का उपग्रह है गृह नहीं। वैज्ञानिक खोजो के आधार पर अभी 9 ग्रह हैं( मंगल, बुध, ब्रहस्पति,शुक्र, शनि, पृथ्वी , युरेनस, नेप्चून , प्लूटो ) जिसे दुनिया जानती और मानती है।
यही नहीं कई बार कई पंडित अधिक चढ़ावे के चक्कर में एक श्लोक को कई बार दोहराते हुए वर वधु से अधिक चढ़ावा ऐठ लेते है और वर वधु रात भर उसके कहे अनुसार उठक बैठक और जागरण करते रहते हैं।
विवाह जैसे सरल और आपसी सूझ-बूझ आधारित कार्य जिसमें वर वधू जीवन भर एक दुसरे के प्रति आदर, सहयोग , समर्पण के लिए प्रतिबद्ध हों उस कार्य को अत्यंत जटिल बना दिया गया है।
इसलिए होना ये चाहिए की वैवाहिक अवसर पर पंडित जी सही और सरल भाषा में विवाह का अर्थ वर-वधु को समझाए ताकि उनमें परस्पर सहयोग और समर्पण का भाव बने, नाकि ऐसे श्लोको से इसे जटिल बना दें जिनका उनके जीवन में कोई अर्थ नहीं होता।
आपको क्रांतिकारी जय भीम “नीला सलाम”
अप्प दीपो भव:
आपका भाई – William Thomas Jatt, Facebook post
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Who will take the trouble to change? 3% Brahm are the direct beneficiaries being the Pandits to conduct any marriages. In fact they are the ones who are inciting mob to demolish Masjids,Churches and to construct many more Hindu temples, Matha, Peethas, Asrams etcetc.
Next comes the Raj Ka Puts…They still claim they are the descendants of erstwhile kings and Queens and hence the palaces are their properties. They are also benefited by the rigid caste system by birth and always seen tagging with Ponga with Poite@9..the visible sign of casteism.
The Benias find marriage a very lucrative business. Infact somenof the lower castes by birth namely Modaks, Kumhars etc are also beneficiaries from lavish marriages..
Therefore there is no need ask or take permission from those ponga pandits or to wait for those jokers to match kundalis or fixed the auspicious time and date of marriage creating an artificial scarcities. Two consenting adults can tie the knot. If the parents are willing parters it is definitely an occasion to celebrate. Tie the knot, registrar and celebrate as you celebrate birthday parties.