बाबा साहेब अम्बेड़कर या भगवान अम्बेड़कर – तय करो क्या चाहिए
एक बडा सा छायादार वृक्ष, हर कोई उसकी छाया मे बैठ सके, आराम कर सके. फिर प्रवेश होता है परजीवियों का अमरबेल कह लो, वो धीरे धीरे सारे वृक्ष पर छाती चली जाती है. अब कुछ सालों बाद वृक्ष मर जाता है और छाया की बात तो अब अतीत भी नहीं लगती. बाबा साहेब अपने कामों की वजह से अमर हुए पर अब उनको मार देने का काम चल रहा है. विचारों का खत्म हो जाना मृत्यु ही तो है. बाबा साहेब विचारों के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करते आ रहें हैं. अब उनके विचारों को बिल्कुल ही बदला जा रहा है, मै इसे मृत्यु से कम कुछ और कह ही नहीं सकता. बाबा साहेब अम्बेड़कर या भगवान अम्बेड़कर? तय आपको करना होगा की कौन सा अम्बेडकर आपको चाहिए।
आपने अम्बेड़कर जयंती कैसे मनाई?
क्या आपने उनकी प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक किया? नहीं? ओ हाँ यह उनके विचारों के उलट है. ठिक वैसे ही जैसे मंदिर मे शराब और कबाब? ठीक है मंदिर में शराब नहीं पी जा सकती, मांस नहीं खाया जा सकता तो हिंदुत्व का झंडा उठाने वालों की हिम्मत कैसे हुई दूध से बाबा साहेब की प्रतिमा को नहलाने की? क्या एक अछूत को पवित्र किया जा रहा था? मै इसे एक अपराध ही मानता हूँ.
भीलवाडा मे काँग्रेस ने यह किया. इस घटिया काम के लिए 126 लीटर दूध जो की किसी और अच्छे काम मे लाया जा सकता था बेकार कर दिया गया. कहीं भजन संध्या का आयोजन हुआ, कहीं हिंदुत्व पर चर्चा, कहीं लड्डूओं का भोग. रायपुर मे सवर्ण महिलाओं ने 5100 कलशों की शोभा यात्रा निकाली.
लग रहा है जैसे हमे चिढाया जा रहा है की कर लो जो करना है हम बाबा साहेब का देवता बना कर ही रहेंगे.
आरएसएस ने बाबा साहेब का पुतला जलाया 1949 में, फिर आज क्यों उनको यह जयंती मनानी पडी? कुछ मित्र कह सकते हैं की वोट बैंक का लफडा है, कुछ कह सकते हैं की बाबा साहेब के विचारों के आगे उनको झुकना ही पडा. ये तो ठीक है की वोट बैंक के लिए यह किया जा रहा है पर भीतर कुछ और बात है और वो यह की बाबा साहेब के विचारों को बदला जा रहा है. जिस हिंदुत्व के खिलाफ बाबा साहेब लिखते और बोलते रहे आज उन ही हिंदुवादी आयोजनो मे बाबा साहेब की प्रतिमा या तस्वीरें देखने को मिल रही है वहाँ विचारों से लेना देना नहीं है.
आज से पांच सौ या हजार साल बाद बाबा साहेब अम्बेड़कर को किस तरह याद किया जाएगा? ये मेरा सवाल उन तमाम लोगों से हैं जो आज खुद को बाबा साहेब की विचारधारा का समर्थक मानते हैं, जो समानता की बात करते हैं, जो धर्म से आगे देश की बात करते हैं.
शायद कुछ सालों बाद बाबा साहेब को भगवान का दर्जा देकर उनके मंदिर भी बना दिए जाएंगे, भजन सत्संग होंगे और क्या, हम फिर खुश, कहेंगे हमारे बाबा साहेब भगवान हो गए.
फिर से गुलामी शुरू, समानता खत्म और सब कुछ फिर से भगवान भरोसे. भगवान यूँ ही बनाए जाते रहे हैं. ओर तब बाबा साहेब और उनके विचार पूरी तरह मर चुके होंगे. ऐसे मे कुछ दलित इतिहासकार अगर बचे होंगे तो बहस होगी की क्या अम्बेड़कर दलित थे.
जी हां आज सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक पर इस ही तरह की बहस होती है. क्यों की और कोई तरीका नहीं है उस क्रांतिकारी विचारक, नेता और समाज सुधारक को मार डालने का, आरएसएस और तमाम मनुवादी इस रास्ते पर चल पडे हैं. इससे वोट भी मिल सकता है और भगवाकरण तो हो ही गया.
आप को क्या जचता है बाबा साहेब अम्बेड़कर या भगवान अम्बेड़कर?
फर्क नहीं समझे? बाबा साहेब तो किताबों से बाहर आ जाएंगे आपकी समानता की वकालत करने पर याद रहे आपके हक मे भगवान अम्बेड़कर कभी नहीं निकलेंगे मंदिर से. भगवान अम्बेड़कर के यहाँ लाइन होगी गरीब, अमीर, वीआईपी इत्यादि की. क्यों की आप दलित हैं आपको तो मंदिर मे जाने ही नहीं दिया जाएगा और ब्राह्मण अम्बेडकर के नाम पर भी पैसा कमाएंगे।
वैसे जाकर करोगे भी क्या मंदिर मे? यदि गलती से भी भगवान अम्बेड़कर के मंत्र, चौपाई और भजन सुन लिए तो मार पडेगी मुफ्त मे. वैसे सुन कर करोगे भी क्या? ये जो अधिकारों की बात करने लगे हो ना सब भूल जाओगे.
अम्बेड़कर के जय करों के बीच गुलामों की आवाज दब कर रह जाएगी. हमे जो चाहिए वो ये की हम इस चाल को समझे, उन का जन्म दिवस हो या परिनिर्वाण दिवस, झूठे पांडित्य से दूर रखें व इस तरह के आयोजन का हर स्तर पर विरोध करें और मेरे ख्याल से न्यायालय भी इसका एक रास्ता है. थोडा थोडा बदलाव ही एक दिन बाबा साहेब का हर विचार बदल देगा. खतरा सामने है तय करो क्या चाहिए बाबा साहेब अम्बेड़कर या भगवान अम्बेड़कर.
लेखक – दीपक वर्मा
इस बार की अंबेडकर जयंती पर अंबेडकर की प्रतिमा को दूध से नहलाया गया, अगले साल हो सकता है कि गंगा जल
Dhammasheel ji, there was a reason why dr.Ambedkar gave those 22 vows.It ws because he studied Buddhism by going to various countries, Budhist ceremonies and he knew that his illiterate masses who have hard time coming out of the Hindu cob web of ritualism.Thus like a good surgeon who did a surgical strike on Budhism. I as a medical doctor know what that means. Buddhism too has become too ritualistic being in India ,it was hard to shake up the old Hindu ways . Whatever one calls it Ambedkaryan or Neo-Bushism, I strongly feel that these 22Vows are very critical for Dalits who wants to accept Buddhism.One can’t be half hearted Buddhist. It may take a few generations but Buddhism will liberate the low caste who have been suffering from the caste stigma for centuries, so long as they call themselves as Hindu of which whatever may be the reason.
इस बार की अंबेडकर जयंती पर अंबेडकर की प्रतिमा को दूध से नहलाया गया, अगले साल हो सकता है कि गंगा जल छिडका जाए और फिर हो सकता है कि भविष्य में अंबेडकर का कोई मंदिर भी बनवा दिया जाए। ब्राह्मणवादी लोग इस तरह के काम करते आए हैं।
जहां से भी कोई क्रांति और बगावत की बू आए तो उसे पूजा-पाठ में उलझा देना चाहिए- शायद अंबेडकर के साथ भी यही होने जा रहा है।
इसको रोकने का मुझे एक उपाय सूझ रहा है कि अंबेडकर जयंती पर जहां कहीं भी पोस्टर बनाए जाएंगे, तो उस पोस्टर में अंबेडकर की तस्वीर के साथ उनकी 22 प्रतिज्ञाएँ भी होनी चाहिए – जिस पोस्टर में 22 प्रतिज्ञाएँ नहीं होगी, वो पोस्टर स्वीकार नहीं किया जाएगा। तब पता चलेगा RSS, BJP और Congress वालों को, कि अंबेडकर जयंती कैसे मनाई जाती है। बाबासाहेब अंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ, सुरक्षा कवच का काम करेंगी।
बौद्ध विहार, पार्क या मैदान – जहां भी अंबेडकर जयंती मनाई जाएगी, वहाँ मंच से बाबासाहेब अंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ भी बोली जाएंगी – जब तक नहीं बोली जाएंगी, तब तक अंबेडकर जयंती का उत्सव पूरा नहीं माना जाएगा, यह कोई रामलीला नहीं हो रही कि आए, खाये-पिये और चल दिये।
*** धम्मशील ***