दलित इतिहास महीना – ज्योतिराव फुले को याद करते हुए
आज का दलित इतिहास माह Dalit History पोस्ट हम महात्मा ज्योतिराव फुले जी को उनके जन्मदिन पर समर्पित करते हैं – जो की उनीसवीं सदी के महान कार्यकर्ता, बुद्धजीवी, तथा सामाजिक क्रन्तिकारी थे. हालांकि वे दलित समाज से नहीं, बल्कि शूद्र वर्ण से थे, उन्होंने फिर भी अपने कार्यों तथा विचारों द्वारा दलितों पर एक गहरी छाप छोड़ी।
११अप्रैल १८२७ को जन्मे ज्योतिराव फुले, भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने जाती के मूल को मूलनिवासियों पर विदेशियों का हमला और उसके बाद हुए उत्पीड़न से जोड़ा। उन्होंने जाती को ग़ुलामी के बराबर समझा, और उसकी तुलना अफ्रीकियों पर अमरीकियों द्वारा क्रूर गुलामी से की, जिसकी योजना शातिर थी और इसकी अनुमति धर्म थी.
उनके १८७३ में छपी क्रन्तिकारी पुस्तक “गुलामगिरी” में उन्होंने एक घोषणापत्र भी लिखा था जिसमें उन्होंने यह कहा की वे हर धर्म,जात, तथा मूल के व्यक्ति के साथ भोजन करने के लिए तैयार हैं, और असली मुक्ति तभी मिल सकती हैं जब दलितों और नारियों की मुक्ति संभव हो जाये. इस घोषणापत्र को तब के समय में बेहद विवादास्पद माना गया और कई अखबारों ने इसे छापने से साफ़ मना कर दिया.
उनका मानना था की दलितों को अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा क्योंकि एक समय में वे ब्राह्मणवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ी. उनके हिसाब से मुक्ति का मार्ग शूद्रों और अति-शूद्रों (दलितों) की एकता मे थी जब वे एक-जुट होकर एक शक्तिशाली राजनैतिक समूह के रूप में खड़े हो.
वे और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले नारी शिक्षा के मार्गदर्शक बन गये और उन दोनों ने मिलकर १ जनुअरी १८४८ को लड़कियों और महिलाओं के लिए भारत में पहली स्कूल पुणे के भिड़ेवाड़ा में शुरू की. उन्होंने ऐसे भी स्कूल शुरू किये जिन में लड़कियों और दलितों दोनों के लिए शिक्षा उपलब्ध थी.
ज़्यादातर दलित तथा जातिविरोधी क्रांतिकारियों की ही तरह उन्हें भी लगा की एक वैकल्पिक धर्म की स्थापना अनिवार्य है. इसी दौरान उन्होंने सत्य-शोधक समाज की रचना की, जिसके सिद्धांत शूद्रों और अति-शूद्रों की मुक्ति, ब्राह्मणों के शोषण को बंद करना और दोनों लिंगों में समानता लाना था.
उनके जीवन भर के समानता के संघर्ष ने उन्हें ११ मई १८८८ को सार्वजनिक रूप से “महात्मा” की उपाधि दी गयी और बाद में उनके जीवनी लिखने वाले धनञ्जय कीर ने उन्हें भारत का मार्टिन लूथर किंग भी कहा. डॉक्टर बी.आर. आंबेडकर ने उन्हें अपने आध्यात्मिक गुरुओं में माना। आज भी विश्व भर में दलित उनके जन्मदिन को महात्मा ज्योतिराव फुले जयंती के रूप में मनाते हैं.
— दलित इतिहास महीना समूह की तरफ से
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