मान्यवर कांशीराम साहब की 05 पैसे की कहानी – प्रेरक प्रसंग
प्रेरक प्रसंग !
सन 1972 में हमने पूना में अपना छोटा सा कार्यालय खोला । शायद बहुजन समाज मूमेंट का वो पहला कार्यालय था । मैं उस समय रेलवे में नौकरी करता था ।
नौकरी के लिए मुझे रोज पूना से मुंबई जाना पड़ता था ।
साहब जी मेरे साथ मुंबई आना जाना करते थे। उस वक्त रेल के डिब्बे में ही हम योजनाएँ बनाते थे। साहब जी के पास पूना से मुंबई का रेलवे पास था।हम अपनी साइकलों पर पूना स्टेशन जाते थे और फिर मुँबई से आकर साइकल से कार्यलय पहुचते थे। हम स्टेशन के पास वंदना होटल पर खाना खाते थे।
आज भी में उस दिन को याद करता हूँ जब मैं और साहब मुंबई से पूना आये और साइकल उठाकर चल पड़े ।
उस दिन मेरे पास तो पैसे नही थे इसीलिए मैंने सोचा साहब जी खाना खिला देंगे मगर साहब भी नहीं बोले । मैंने सोचा की आज साहब का दूसरे होटल में खाना खाने का मूड है । वो होटल भी आ गया हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और आगे चल पड़े क्योंकि पैसे किसी के पास नही थे ।
हम दोनों रात को पानी पीकर सो गये । अगले दिन मेरी छुट्टी थी मगर साहब को मीटिंग के लिए जाना था | साहब सुबह उठे और नहा धो कर अटेची उठाकर निकलने लगे ।थोड़ी देर बाद वापिस आये और बोले यार मनोहर कुछ पैसे है क्या तुम्हारे पास ? मैंने कहा नहीं है साहब । तो साहब ने कहा देख कुछ तो होंगे ? मैंने कहा कुछ भी नहीं है साहब ।
“यार 05 पैसे तो होंगे “मैंने भी बैग में ढूंडा मगर नहीं मिले । मैंने पूछा क्या काम था साहब ? यार साइकल पंक्चर हो गयी है और ट्रेन का भी समय हो गया है । मैंने कहा तो क्या हुआ साहब आप मेरी साइकल ले जाओ …! साहब ने कहा अरे भाई तेरे वाली भी खराब है । 5 पैसे ना होने के कारण साहब पैदल ही दौड़ गये ।।
और पहली बार जब मैंने कांशीराम साहब को हेलिकोप्टर से उतरते देखा तो आँखों से आसूं निकल गये और मेरे मुँह से निकला “वाह साहब जी वाह…!”
लेखक – दीपक कुमार
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