रमाबाई अम्बेडकर को याद करते हुए


रमाबाई अम्बेडकर

जालिमों से लड़ती भीम की रमाबाई थी
मजलूमों को बढ़ के जो,आँचल उढ़ाई थी
जाति धर्म चक्की में पिसते अवाम को
दलदल में डूबते समाज को बचाई थी

एक-एक पैसे से,भीम को पढ़ाई थी
मेहनत मजदूरी से जो भी जुटाई थीं
गोबर इकट्ठा बना कण्डी के उपले
बज़ारों में बेच कैसे घर को चलाई थी

अमेरिका से लंदन,बैरिस्टर से डाक्टर
हौसला हर मोड़ पर रमाई बढ़ाई थी
भूखे पेट बच्चे कुपोषित ही मर गये
जब रोटी न पैसा न घर में दवाई थी

तड़पते मरते गये गोद में यूं लाल सभी
खुशी की उम्मीदों संग कैसी जुदाई थी
भूखी प्यासी वो बीमार कई रात रही
माँ ने लोगों के लिये खुद को मिटाई थी

रमा की आँसू में भीम विदेशों में बहते थे
मगर इस तूफान में भी कश्ती चलाई थी
विद्वान हो महान भीम रामू न भूल सके
तन और मन से जो उनकी सगाई थी

खून व पसीने से सींचती थी क्यारियाँ
हँसते चमन की कली जो मुरझाई थी
एक तरफ फूले सावित्री थे साथ लड़े
“बागी” भीम साथ वैसे मेरी रमाई थी.

रमाबाई अम्बेडकर को याद करते हुए

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आज हमारी महिलाओ (चाहे वे किसी भी धर्म या जाति समुदाय से हो) को उन पर गर्व होना चाहिए कि किन परिस्थितियों में उन्होंने बाबा साहेब का मनोबल बडाये रखा और उनका साथ देती रही। खुद अपना जीवन कष्ट में बिताये रखा और बाबा साहेब की मदद करती रही।
आज अगर भारत की महिलाए आज़ाद है तो उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ माता रमाबाई को जाता है।

हमारा फ़र्ज़ है उनको जानने का।

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Ramabai Ambedkar

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  1. 1
    pmilind

    Dear PradeepIt was so heartening to hear Mr Ravish Kumar, of NDTV India, mention your activism underlining your motto. I keep getting your alerts every time they get released. I do appreciate your ideas and think that the subscribers and readers going through your blogs would give the blogs, that are thought-provoking, a thought. Moreover, I feel, the care is to be taken of the fact that there are “a few” people from non-Ambedkarite background that can help the movement and some few others from inside, the white-collar underprivileged, that can leak or undermine it being tools of the radical establishment. Therefore, it can be a good deal to assimilate the former and sacrifice the latter, difficult to transform as the tools/stooges may be.  The best upload I found on your blog has been the “writings and speeches of Dr Babasaheb Ambedkar, vol.1-17”. I had already had them as both soft and hard copies yet got them downloaded. The best upshot the upload would afford for sure is that it would enlighten those, on Ambedkarism, that were inspired to be oblivious to it. Consequently, it would come in their own interest as the great good.  Keep it up! Wish you all well, ahead.  Dr Milind Pandit

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