शिक्षा की जाति


Article शिक्षा की जाति “Caste of Education” was written by me and one of my friends back in Aug. 2007 and appeared in Jan- Vikalp magazine Sept. 18th 2007 (Jan- Vikalp used to publish from Patna and now is publishing under the name of ForwardPress from Delhi) on . (Also, this is one of two articles I ever wrote in Hindi! I will also share the second one in coming days) This article still holds true, please read it below:

शिक्षा की जाति

मुचकुंद दूबे की अध्यक्षता में गठित ‘समान स्कूल शिक्षा प्रणाली आयोग`की अनुशंसायें पूरे देश में लागू हों।

मानव इतिहास में झांके तो शिक्षा पर अधिकार के अनुपात से ही समाज में लोगों की हैसियत भी अधिक याकमतर होती रही है। शिक्षा के ईद-गिर्द ही उच्चता या हीनता बोध विकसित होता है। ज्यादा शिक्षा प्राप्त कर सकने वाले लोग अन्य को अपने मुकाबले हीन ठहराते हैं। यही वजह है कि वर्चस्वशाली समूह किसी भी रास्ते से शिक्षापर कब्जा जमाए रखने की कवायद सदियों से करते रहे हैं। आज के तर्क प्रवण एवं विज्ञानपोषित समय में भी ज्ञान पर वर्चस्वशाली जातियों एवं तबकों का प्रभुत्व बरकरार है। आधुनिकता जनित पूंजीवाद भी ज्ञान-वंचना के इस शातिर खेल में प्रभुवर्ग के पक्ष में ही उतर आया है। उदारीकरण के इस दौर में पूंजीवाद एवं ब्राह्मणवाद शोषितवर्गों को ज्ञान से वंचित रखने के खेल में जुड़वा भाई सरीखी भूमिका निभा रहा हैं। ब्राह्मणवाद जहां प्रभु जातियों सेइतर जातियों को ज्ञानवंचित रखने का हिमायती है वहीं पूंजीवाद समाज के विभिन्न तबकों को महजटुकड़ा-टुकड़ा असंतुलित व अवसरवादी ज्ञान उपलब्ध कराने का पक्षधर है।

शैक्षिक विभेद के वर्णवादी रवैये को कुछ टटका उदाहरणों से भी समझा जा सकता है। आईबीएन चैनल की एकखबर के मुताबिक पानीपत के एक गांव में ‘सबके लिए शिक्षा` की अनिवार्य सरकारी नीति को धत्ता बताते हुए एक स्कूल के जातिगंधी प्राचार्य ने दलित छात्र का दाखिला लेने से मना कर दिया, कहा कि दलितों के लिए हमारे स्कूल में जगह नहीं है। इस न्यूज चैनल के ही एक और ताजे समाचार के अनुसार एक मुंबईया कॉलेज के सवर्ण शिक्षकों ने एक दलित छात्र को ‘शुद्ध` करने एवं उसमें घुसी बुरी आत्मा के प्रभाव को निकालने के नाम पर उसके ऊपर गाय का पेशाब छिड़का। शिक्षकों की इस बीमार मनस करतूत की शिकायत पर कालेज प्रशासन का जो बयान आया वह भी खासा आपत्तिजनक और रोचक था। बयान था कि ‘ये शिक्षक अंधविश्वासी जरूर हैं पर जातिवादी नहीं`!

सरकारी सूत्र भी अकादमिक संस्थानों में दलित दलन-उत्पीड़न की गवाही देते हैं। अपने जातिवादी पूर्वाग्रहों के कारण ‘एम्स` पिछले दिनों चर्चा में रहा है। कुछ नए तथ्यों ने उसके दामन को और दागदार बना दिया है। थोराट समिति द्वारा प्रस्तुत एक हालिया रपट के अनुसार ‘एम्स` में दलित तबके के मेडिकल छात्रों के साथ जातीय उत्पीड़न के चौंकाने वाले तथ्य मिले हैं। ‘एम्स` में नवागंतुक छात्रों की सीनियर छात्रों द्वारा जो रैगिंग की जाती हैवह शत-प्रतिशत जातीय आधार पर होती है। सवर्ण वर्चस्व वाली सीनियरों की मंडली द्वारा ली जाने वाली उस रैगिंग में सवर्ण तबके के ‘फ्रेशर्स` के साथ रियायत व नरमी बरती जाती है जबकि दलित छात्रों को अत्यधिक तंगव प्रताड़ित किया जाता है। दलित वर्ग के ८८ प्रतिशत छात्र वहां उपेक्षणीय परिस्थितियों में सामान्य छात्रों सेअलग-थलग कोटे के छात्रों हेतु आवंटित छात्रावास में रहने को मजबूर हैं। समिति को एम्स के ७६ प्रतिशत दलितछात्रों ने कहा कि छात्रावास के मेस में उनके साथ छुआछूत परक व्यवहार किया जाता है। खेलकूद में भी उनके साथ सवर्ण छात्र भेद बरतते हैं, उनके साथ खेलने से परहेज करते हैं। ८४ प्रतिशत दलित छात्रों का अनुभव था किसंस्थान की आंतरिक परीक्षाओं में भी उनकी क्षमताओं का नकारात्मक मूल्यांकन होता है अथवा उनकी परीक्षाकी कॉपियों का निष्पक्ष मूल्यांकन नहीं होता, उन्हें योग्यता से कम अंक दिए जाते हैं।

लब्बोलुबाब यह कि अभी भी हमारी शिक्षा व्यवस्था का चेहरा वर्णवादी और अलोकतांत्रिक है। इसे जनतांत्रिकबनाने की दिशा में हमें ठोस राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनानी होगी। जो विभेदक न हो और स्वस्थ सोच विकसित करनेमें सहायक हो। शिक्षा-संस्कृति में बड़े सुनियोजित तरीके से फेंटी गई द्विजवादी वर्णवादी अवधारणाओं एवं प्रतीकोंको बहिष्कृत कर नये सिरे से शैक्षिक पाठ्यक्रमों को स्वस्थ सोच विकसित करने योग्य बनाना होगा ताकि हमारीबुद्धि का स्वस्थ व वै ज्ञानिक अनुकूलन हो सके। गरीबों, धनाढ्यों एवं पूंजीपतियों के बच्चों के लिए वर्तमान कीअलग-अलग शिक्षा व्यवस्था को भी एक करना जरूरी है। इसके लिए बिहार सरकार द्वारा मुचकुंद दुबे कीअध्यक्षता में गठित ‘समान स्कूल शिक्षा प्रणाली` आयोग की अनुशाएं देश के लिए उपयोगी हो सकती हैं। अभावव उच्च सुविधा में मिलती विभेदी शिक्षा के बदले समभाव व समुचित सुविधा वाली शिक्षा सबको प्रदान कर ही हमएक राष्ट्र, एक समाज बनाने की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे। ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय` की समदर्शीज्ञान-व्यवस्था को अमलीजामा पहनाकर ही हमारी शिक्षा-संस्कृति सही मायनों में लोकतांत्रिक हो सकेगी।

By: मुसाफिर बैठा/ प्रदीप 

P.S.: You can read the same article from http://janvikalp.blogspot.com/2007/09/blog-post_6093.html#links 

P. P.S.: Please visit The Death of Merit blog for more updates on “Caste at College” 

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